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इत्थभूतः
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इन्दीवरिणी
(मुनि० २३) इत्थं चिंतनमस्तु'। 'तत्कृत्यमित्थं च १०५) पुं०-अयम्। स्त्री इयम्। 'प्रस्तुताऽस्मै सदा स्फीतिः' तदित्युपायपरो नरो' (जयो० २७/५५) स्पृशेदपीत्थं (सुद० ८२) 'चाण्डाल एव स इमं लभतामिदानीम्' बहुधान्यराशिम्' (सुद० २/२१) उक्त पंक्ति में 'उइत्थं' (सुद० १०५) 'चेतनाऽस्याः समावृता' (सुद० १०१) अव्यय का अर्थ क्योंकि है। 'गुणावलीत्थं सहसाशयाभ्याम्' 'इमामिदानीं मम सोमनास्यं सुधाधुनीमेतितरामवश्यम्' (सुद० २/३०) 'स्यादित्थं परेण प्रकृता समस्या' उक्त (जयो० ११/७४) 'अस्या हि सर्गाय' (जया० ११४८४) पंक्ति 'ऐसा है' वह अर्थ व्यक्त हो रहा।
'रूपामृतस्त्रोतस एव कुल्यामिमामतुल्याम्' (जयो० ११/१ ) इत्थं उक्तरीत्या उक्त प्रकार। 'इत्थं वारिनिवरङ्करयन्' 'अस्मिन्नरेश, सुरसाया:। (जयो० ३/६९) 'अदभुतोऽय (जयो० ३/९२)
चरणानुयोग:' (जयो० १४२२) इयान (सु०) अनेन (जयो० इत्थभूतः (पुं०) एवम्भूतनय, क्रियाश्रय नय।
१/१९) जयकुमारस्य राज्ये। इत्य (वि०) [इण् क्यप्, तुक्] जिसके पास जाया जाय। इदंकर (वि०) ऐसा ऐसा करो। 'इदंकरमिदं वेदिा नैव किन्तु इत्यतः (अव्य०) इधर, यहां, जो कि जैसा कि, बल्कि, लेकिन स्वयंवरम्।' (जयो० ७/३)
'भवत्कमत्युत्तममित्यतोऽहं' (सुद० १२०) 'शिवायन इत्यतः' इदानीम् (अव्य०) [इदम्+दानीम् ] अब. उस समय, इस (सुद०८३)
विषय में, अभी। 'काञ्चोफलवदिदानों द्विवर्णता विभ्रमादति' इत्यथ (अव्य०) इधर, यहां, 'पुत्तलमुत्तक्तमित्यथ कृत्वा' (जयो० ६/३५) 'अस्मिन्निदानीमजडेऽपि काले' (सुद०१/६) (सुद०९२)
इदानीमपि (अव्य०) अब भी, इस समय भी। (वीरो० २२/२८) इत्यदः (अव्य०) ऐसा, इस प्रकार। 'अल्पाद्वारत इत्यदो वदितवान्।' इदानीन्तन् (वि०) आधुनिक, प्रभ्युपन्न, वर्तमान कालिक। (मुनि० १०)
इद्ध (भू० क० कृ०) [इन्ध+क्त] १. जला हुआ, प्रभा युक्त, इत्यत्र (अव्य०) यहां, इधर, 'रज्यमानोऽत इत्यत्र' (सुद० प्रकाशवान्, आभा जन्य। २. दीप्ति, चमक, प्रभा, कान्ति। ४/८)
(जयो० २३/८४) इत्यर्थः (अव्य०) ऐसा अभिप्राय, (जयो० १/७) इस तरह का इध्मं (नपुं०) [इध्यतेऽग्निरनेन-इन्ध्। मक] इंधन, लकड़ी, अग्नि प्रयोजन। (जयो० वृ० १/७)
इन्ध्या (स्त्री०) । इन्ध् + क्यप+ टाप] चमक, दीप्ति, इंधन इत्येवं (अव्य०) इस तरह, इस प्रकार, ऐसा ही, इस प्रकार प्रभा, कान्ति।
ही। 'इत्येवं सकलं चरित्रमचिरादेवात्मनः संभवे' (मुनि० । इनः (पुं०) १. सूर्य, दिनकर, रवि। (जया० २०/२१) २. ५३) 'इत्येवमुक्त्वा स्मरवैजयन्त्याम्' (सुद० २/२०)
स्वामी, मालिक, राजा, महाराज। (जयो० २०/२१) दिन इत्वर (वि०) [इण+क्वरप् तुक्] १. घृणित, निन्दनीय, अहितकर। एनमिन : समीक्षते। (दयो० १०५) २. कठोर, कठिन, उग्र।
इन: (पुं०) [इण+नक्] बल, शक्ति, योग्य, साहसी, बलिष्ठ। इत्वर-अनशनं (नपुं०) परिमित काल तक आहार, अभीष्ट २. परमात्मन्। (जयो० ४/६५) आहार
इनदेव (पुं०) [इनश्चासौ देवश्चेति इनदेव:] सूर्य। इत्वर-परिगृहीतागमनं (नपुं०) १. व्यभिचार जन्य गमन, इनदेवता (पुं०) [इनदेव एव इनदेवता, स्वार्थे तल्] सूर्यदेव। मैथुन सेवन गमन। २. ब्रह्मचर्य व्रत का अतिचार।
(जयो० २०/८३) इत्वरसामायिकः (पुं०) अवधि जन्य सामायिक।
इन्दिन्दिरः (पुं०) [इन्द+किरच् नि] मधुमक्खी। इत्वरिका (स्त्री०) घृणित. निन्दित, कुटला, अधर्म, नीच। इन्दिरा (स्त्री०) लक्ष्मी। (सुद० १/१२) त्रिशलाया उदितं व्यभिचारिणी (जयो० वृ० १८/३)
शचीन्दिरा (वीरो० ७/१४) 'मुदिन्दिरामङ्गलदीपकल्प:' (सुद० इत्वरिकागमनं (नपुं०) ब्रह्मचर्य को दृषित करने वाला गमन। १/१२) 'किमिन्दिराऽसौ न तु साऽकुलीना।' (जयो० ५/८७) इत संज्ञकः (पुं०) 'अइ, उ ण' यहां अन्तिम 'ण' इत् संज्ञक इन्दीवरः (नपुं०) नीलोत्पल. नीलकमला नीलाम्बुरुहः (वीरो०
है। (जयो० वृ० २८/३१) 'इता अप्रयोगिवर्णेन स आदे: २/१६) रुदत्तदिन्दीवरमेव शापश्रिया (जयो० १६/३७) शब्दस्योपयोगवान्। (जयो० २८/३१)
इन्दीवरिणी (स्त्री०) [इन्दीवर-इनि डीप] नीलोत्पल ओध, इदम् (सर्व०) नपुं-इदम-यह। राज्या इदं पूंत्करण। (सुद० । नीलकमल समूह।
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