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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आहार: www.kobatirth.org आहार : ( पुं०) भोजन, भूख शान्ति का उपाय । आहार : ( पुं०) शरीर क्रिया, औदारिक, पारिणामिकादि तीन शरीर और छह पर्याप्तियों के योग्य पुद्गलों के ग्रहण करने को 'आहार' कहते हैं। १. जिसके आश्रय से श्रमण सूक्ष्म तत्त्वों को आत्मसात् करता है। 'शरीर प्रायोग्य- - पुद्गल-1 -पिण्ड-ग्रहण माहारः । (धव० ७/पृ० ७) शरीर रचना, संक्लेश रहित शरीर । आहारकं (नपुं०) सूक्ष्म पदार्थों के निर्धारण के लिए जो शरीर रचा जाता है। 'प्रमत्तसंयतेनाहिते निर्वर्त्यते तदित्याहरकम्' (स० सि० २३/३६) शुभं विशुद्धमव्याघाति चाहारकम् । (त० सू० २ / ४९ ) आहारक - जीव: (पुं०) आहार को ग्रहण करने वाला जीव । आहारक-बन्धनं (नपुं०) आहारक शरीर के योग्य सम्बन्ध । आहारक-योगः (पुं०) तत्त्व विषयक योग, संदेह के निर्णय हेतु योग । आहारपर्याप्तिः (पुं०) आहार वर्गणा को परिणमन कराने वाली शक्ति आहारय् (अक० ) भोजन करना, आहार लेना। (मुनि० ३) आहारशरीर (नपुं०) नौकर्म प्रदेश समूह | आहारसंज्ञा (स्त्री०) आहार की अभिलाषा ( भक्ति० ४७) 'आहाराभिलाष आहारसंज्ञा आहारसंज्ञाऽऽपि किलोपवासे (भक्ति० ४७) आहारे या तृष्णा काङ्क्षा सा आहार संज्ञा' (व० २/४१४) आहारसंपदा (वि०) आहार सामग्री, भोजन सामग्री (जयो० २२/४९) आहार्य (सं०कु० ) [आ.ह. ण्यत्] १. ग्रहण करने योग्य, पकड़ने योग। २. नैमित्तिक, कृत्रिम । आहाव: (पुं० ) [ आ + ह्वे+घञ्] १. कुंड, नाद, जो पशुओं के पानी पिलाने के लिए बनाई जाती है। २. संग्राम, युद्ध । ३. आह्वान निमन्त्रण। 6 + आहिण्डिक (०) [आहिण्ड ठक्] परिभ्रमण । आहित (भू० क० कृ० ) [आ+घा+क्त] १. आसक्त, प्राप्त, स्थापित निरूपित (जयो० ४५) २. सम्पन्न किया, अनुभूत आहितुण्डिकः (पुं० ) [ अहितुण्डेन दीव्यति ठक् ] बाजीगर, ऐन्द्रजालिक जागूदर सपेरा आहुति: (स्त्री०) [आ+हु+क्तिन्] पूजासामग्री निक्षेपण, देव समीप पुण्य एवं पूज्य भाव व्यक्त करना। आहुति: (स्त्री० ) [ आ + + क्तिन्] आह्वान, आमन्त्रण। आहेतु (वि०) प्रयोजन सहित । , १७५ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आहो (अव्य०) संदेह, विकल्प प्रायः आत्मप्रशंसा । आनं (नपुं० ) [ अह्नां समूहः -अञ्] बहुत दिवस दिवस ओघ । " इ • आह्निक ( वि०) दैनिक प्रतिदिन का किया गया कार्य, धार्मिक दिवस रूप कार्य । For Private and Personal Use Only अल: (पुं०) सुन्दर, उचित, ठीक। (जयो० १ / ६१ ) आह्लादः (पुं०) [आ + हलाद् + ल्युट् ] हर्ष, प्रसन्नता, खुशी, आनन्द | 'आह्लाद - मधुरताभ्यामनुगृहीतो द्वितीय' (दयो० ५५) आह्लाद - कारिन् (वि० ) प्रसन्नता देने वाला। 'अप्रमादितया पूर्णचन्द्रस्याह्लादकारिणः' (समु० ४/३९) आह्लाद कारिणी (वि०) प्रसत्ति - विधायिनी, आनन्दायिनी, हर्षप्रदात्री (जयो० ३/४१) प्रसन्न करने वाली 'अधासी चन्द्रलेखेव जगादाह्लादकारिणी (जयो० ३/४१ ) आह्लादित (वि०) हर्षित, आनंदित, प्रफुल्लित, हर्ष जन्य (जयो० ० १/१० ) आह्लादित चित्तं (नपुं०) हर्षितमानस | आह्न (वि०) [आहे ] बुलाने वाला आह्वय आहे) बुलाना, आमन्त्रण देना। शृङ्गोपात्त-पताकाभिराह्वयन् स्फुटमङ्गिनः । (जयो० ३ / ७४ ) आह्वयत्- आमन्त्रयदिति' (जयो० वृ० ३/७४) स्त्रैणं तृणं तुल्यमुपाश्रयन्तः शत्रुं तथा मित्रतयाऽऽह्वयन्तः' (सुद० ११८ ) आयनं (नपुं० [आ+हे+णिच् + ल्युट्] १. नाम अभिधान २. आमन्त्रण। आह्वानं (नपुं०) [आ+हे+ ल्युट् ] आमन्त्रण निमन्त्रण, प्रसत्ति (जयो० वृ० ५ / ११) आह्वाननं (नपुं०) आमन्त्रण, निमन्त्रण (जयो० २४/१२१ ) आह्वाय: (पुं० ) [आ+ह्न+घञ्] बुलाना, आमन्त्रण करना। आह्वायक: (पुं० ) [ आ + + ण्वुल्] दूत, संदेशवाहक । 9 इ इ (पुं०) वर्णमाला का तीसरा स्वर है। इसका उच्चारण स्थान तालु है तथा प्रयत्न विवृत है। इ (अव्य०) १. वाक्य की शोभा हेतु इसका प्रयोग किया जाता है, इसके विविध अर्थ हैं तथा, और या, किन्तु परन्तु आदि । २. क्रोध, सन्तापादि के रूप में भी इसका प्रयोग होता है।
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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