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आस्थानं
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आस्थानं (नपुं० ) [आ+स्था+ ल्युट् ] स्थान, जगह, डेरा, तम्बू, आलप (वीरो० १५/३९) आधार, आश्रय, ठहरने का स्थान, विश्रामस्थल, (जयो० १३ / १६ ) आस्थानशालिनी (वि०) निवेश युक्त (८/१६) आस्थित (भू० क० कृ० ) निवसित, स्थित, रहने वाला । आस्थिति (स्त्री०) योग क्षेम, अप्राप्त की प्राप्ति । आस्पदं (नपुं०) स्थान, निवास, डेरा, आवास, स्थान। १. आसन, मदास्पदोऽसावधुनोदियाय' (जयो० १६ / ४० ) २. मर्यादा, उचित पद, विशेष आश्रय । आस्पन्दनं (नपुं० ) [ आ स्पन्द्• ल्युट् ] कांपना, धड़कना, हिलना। आस्पर्धा (स्त्री०) प्रतिद्वंद्विता, टक्कर समान द्वंद्विता, परस्पर समान भिड़ंत ।
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आस्फाल: (पुं० ) [ आ + स्फल् + णिच्+अच्] १. स्खलिन्, टूटना, गिरना। २. मारना
आस्फालनं (नपुं०) [आ+स्फल् + णिच् + ल्युट् ] हिलना, टूटना, गिरना, नष्ट होना, फड़फड़ाना, घर्षण करना, रगड़ना । आस्फोट: (पुं०) (आ+स्फुट्+अच्] १. आक वृक्ष, मदार वृक्ष। २. ताल पीटना ।
आस्फोटन (नर्पु० ) [आस्युष्ट्-ल्युट् ] आस्फालन, फड़फड़ाना, फटकना, उड़ाना, फुलाना, शब्द करना। 'स्वीय बाहुबलगर्विता भुजास्फोटनेन परिवर्तितस्वजाः।' (जयो० ७/९३) आस्माक (वि० ) [ अस्मद् +अण्] हमारा, हम सभी का । आस्माकी (स्त्री०) हमारी, हम सब की । आस्माकीन् (वि०) हमारा सभी का ।
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आस्यं (नपुं० ) [ अस्ण्वत् ] मुंह, जबड़ा चेहरा बदन आस्यन्दनं (नपुं० ) [आ+स्यन्द्+ ल्युट् ] बहना, झरना, टपकना, रिसना आस्यन्धय (वि०) [आस्यं धयति] मुख चुम्बन करने वाला। आस्यविषः (पुं०) आसीविष, उत्कृष्ट ऋद्धि या तप बल से
प्राप्त बल, जिसमे कहने से व्यक्ति मरण को प्राप्त हो जाता है। 'प्रकृष्ट- तपोबला यतयो यं ब्रवते मियस्वेति स तत्क्षण एवं महाविषपरीतो म्रियते ते आस्याविषाः' (To वा० ३/३६)
आस्या (स्त्री०) [आस्+क्यप्] आसना।
आस्रवः (पुं० ) [ आ + सु + अप्] १. बहाव, आना, बहना, टपकना। २. दुःख, पीड़ा, कष्ट, व्याधि ३. अपराध, आक्रमण। ४. मन, वचन और काय की क्रिया का योग । 'काय वाङ्मनः कर्मयोग' (१० सू० ६/९) । ५. नवीन कर्मों के आगमन का रास्ता । (त० सू० ६) आस्र - १.
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आहार:
कषायसहित और २ अकपाय रहित आस्रवन्ति समागच्छन्ति संसारिणां जीवानां कर्माणि यैः येम्यो वा ते आम्रवा रागादयः' (सिद्धिविनश्चयः पृ० २५६) आस्रवति अनेन आस्रवणमात्रं वा आस्रवः' (त० वा० १/४) आस्रवनिरोधः (पुं०) कर्मागम के कारणों का अप्रादुर्भाव आस्रव-भावना (स्त्री०) आर्त- रौद्र परिणाम रूप भावना । आम्रवानुप्रेक्षा (स्त्री०) दोषानुचिन्तन (स० सि० ९/७ ) आस्राव (पुं०) [आ+सुधञ्] १. घाव, छिद्र २. बहना, झरना, टपकना।
आस्वादः (पुं० ) [आ+स्वद्+घञ्] चखना, चबाना । (दयो० १/४ ) आस्वादु (वि०) चखने योग्य। (वीरो० २२/३४) आस्वाद्य (पुं०कु० ) [आस्वद् क्यप्] आस्वादन करके, चख
करके (दयो० १/४) (जयो० ९/१७)
आस्वादन (नपुं०) चखना, खाना, (जयो० ३/६१) मिष्टं सितास्वादन आस्यमस्तु' (सुद० १११ ) आश्वादनार्थ (वि०) चखने योग्य ( चीरों० २ / १३) आश्वासित (वि०) रसित, स्वाद युक्त।
आश्वासित (भू० क० कृ०) चखा, आस्वादन किया। 'सा यावद्रसिताऽऽरवादिता श्रुता" (जयो० वृ० ३/२९)
आह (अव्य०) (आ+हन्+इ] १. कठोरता, कर्कशता, २. आजा, कहना, निर्देश करना 'आदिराज इदमाह' (जया० ४ / १) आहत (भू० क० कृ०) [आन्क्त] १. घायल पीड़ित, दु:खित ताडित (जयो० २/१४१) २. पीटा गया, रौंदा गया, विक्षिप्त किया गया।
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आहतिः (स्त्री० ) [ आ + न् + क्तिन्] १. घात, प्रहार, हनन, दुःख, पीड़ा। २. हत्या करना, मारना पीटना । आहर (वि०) [आहअच्] ग्रहण करने वाला पकड़ने वाला, ले जाने वाला ।
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आहरणं (नपुं०) [आ+ह+ ल्युट् ] १. ग्रहण करना, पकड़ना।
२. दृष्टान्त - साध्य-साधन के अन्वयव्यतिरेक के दिखलाने का साधन । २. निकालना, दूर हटाना। ३. आभूषण, आभरण। आहरत्व (वि०) आहरण करने वाला (जयो० २/१०८) आहव: (पुं०) [आ+ह्न+अप्] युद्ध, संग्राम, लड़ाई, ललकार. चुनौती, चेतावनी
आह्वानं (नपुं० ) [आ+हु+ ल्युट् ] आहूति, निक्षेपण | आनीय (सं०कृ०) आहूति देने योग्य।
आहार (पुं०) [आह+घञ्] लाना, ले जाना, निकट आना, समीप जाना।