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आसाद्य
१७३
आस्था
मासादनम्।' (त० वा० ६/१०) 'आयं सादयतीति आसादनम्' | आसेधः (पुं०) [आ+ सिध्+घञ्] प्रतिबन्ध, रोक, बन्धन। (जैन०लः २२०)
आसेव (अक०) विपरीत आराधना करना। (वीरो० २२/३६) आसाद्य (सं०कृ०) प्राप्तकर, ग्रहणकर। (सुद०३/१०, २/२८) आसेवनं (नपुं०) १. असंयम का सेवन, विपरीत आराधना, आसाम्परायः (पुं०) कषाय अवस्था तक। आसाम्पराय कुशील भावना। 'आसेवना संयमस्य विपरीताराधना तया
सदृशोप्यबोधसंचेतनेत्यर्हदधीतिबोधः (सम्य० ११७) १. कुशील आसेवनाकुशी:।' २. क्रियाशीलता, अभ्यास जन्य अपगत, प्राप्त, निकट, सन्निहित।
प्रवृत्ति, सतत् अभ्यास। आसारः (पुं०) [आ+स+घञ्] १. अत्यधिक वर्षा, धारावाहिक | आसेवना (स्त्री०) विपरीत आराधना।
वृष्टि। १. आक्रमण, धावा, आघात। २. प्रसार-प्रसरण आसेवित (वि०) पूजित, सेवा जन्य। (भक्ति० २२) समूह, पंक्ति-(जयो० ३/७६, ६/५१)। 'कर्बुरासारसम्भूतं आस्कन्दः (पुं०) [आ+स्कन्द्+घञ्] १. आक्रमण, धावा, पद्मरागगुणान्वितम्।' (जयो० ३/७६) 'आसारस्तु प्रसरणे आघात। २. चढ़ना, आरोहण करना। ३. दुर्वचन, निन्दा।
धारावृष्टौ सुहृदयबले' इति विश्वलोचनः। (जयो० ६/२१) आस्कन्दन (नपुं०) [आ+स्कन्द्+ल्युट] १. आक्रमण, धावा, आसिक (वि०) [असि ठक्] असिधारी, तलवार युक्त, आघात। २. आरोहण, चढ़ना, सवारी करना। खङ्गधारी।
आस्कंदित (वि०) आरोहित, चढ़ा हुआ, सवारी जन्य। आसिका (स्त्री०) आसन। (जयो० ३/२२)
आस्तरः (पुं०) [आ+स्तृ+अप्] १. चादर, २. दरी, ओढ़ने का आसिधारं (नपुं०) [असिधारां इव अस्यत्र अण] असिधाराव्रत, वस्त्र। ३. विस्तरण, प्रसरण, फैलाव। कठिन व्रत, दृढ़ नियम।
आस्तरणं (नपुं०) १. झूल, हस्तिकुथ। पथि सादिवरः कृतेक्षण: आसी (स्त्री०) आशीष, आशीर्वाद। 'उत्तमाङ्ग सुवंशस्य हस्तिपोष, हाथी की जीन, हस्ति पर लटकती हुई झूल। यदासीद्दपिपादयो:।' (सुद० ४/४)
कृतवानास्तरणं तु वारणे।' (जयो० १३/४) २. बिछावन, आसीविषः (पुं०) दंत विष, दाढ विष, भुजंगविष। 'आस्यो दरी, साज, सामान। 'आस्तरणं संस्तरोपक्रमणम्'
दंष्ट्रास्तास विप येषां ते आसीविष:।' (जैन ल०२२०) (सा०ध०५/४०) 'णमो आसीविसाणं. इदं चिद्वेषनाशनार्थम्।' (जयो० ७० आस्तारः (पुं०) [आ+ स्तृ+घञ्] बिछाना, फैलाना, प्रसारण। १९/१७) जो विद्वेष को दूर करने वाला है वह 'आसीविष' आस्तिक (वि०) ईश्वर या पूर्वजों पर विश्वास नहीं करने कहलाता है।
वाले। (जयो० वृ० ४/६४) आसुतिः (स्त्री०) [आ+सु+क्तिन्] अर्क, काढा, रस, निचोढ़। आस्तिकजनः (पुं०) पूर्वज, पितर लोग। 'आश्विनकृष्णपक्षे आसुरः (पुं०) राक्षस।
पूर्वजानां प्रीत्यर्थमास्तिकजनैः श्राद्धानि विधीयन्ते' (जयो० आसुर (वि०) असुर से सम्बन्ध रखने वाला, राक्षसी, अमानवीय। ४/६४) * श्रद्धाशील व्यक्ति। आसुर-विवाहः (पुं०) वर से द्रव्य लेकर कन्या का विवाह आस्तिकता (वि०) विश्वास करने वाला, श्रद्धास्पद जन्य। ___ अमानवीय विवाह।
आस्तिक्य (वि०) आस्तिक्य बुद्धि विशेष। ईश्वर-परलोका दौ आसुरिकी (वि०) प्राणि पीड़न की दृष्टि रखने वाला, दया विश्वासः। (जयो० वृ० २/७४) जीवादि पदार्थ यथायोग्य रहित भावना वाला।
अपने स्वभाव से संयुक्त हैं, इस प्रकार की बुद्धि। आसुरी (स्त्री०) शल्यचिकित्सा।
'जीवादयोऽर्था यथास्वं भावैः सन्तीति मतिरास्तिक्यम्।' आसूचन (नपुं०) विशेष सूचना।
(त० वा० १/२) आसूत्रं (नपुं०) १. सूत्र पर्यन्त, आगम विषय पर्यन्त। २. सूत्र युक्त। | आस्था (स्त्री०) [आ+स्था+अङ्] श्रद्धा, पूजा, आदर, सम्मान। आसूत्रिक (वि०) [आ सूत्र+ क्त] सूत्रधारक।
'सोमे सुदर्शने काऽऽस्था समुदासीनतामये' (सुद० ८७) आसेकः (पुं०) [आ सिच्+घञ्] खींचना, 'डालना, ऊपर 'त्वमिमां शेचनीयास्थामाप्तो नैष्ठुर्ययोगतः।' (सुद० १३४) फेंकना।
नवें सर्ग की उक्त पंक्ति में 'आस्था' का अर्थ 'अवस्था' आसेचनं (नपुं०) [आ+सिप्ल्यु ट] सिंचन करना, छिड़कना, है। २. आशा, दशा, अवस्था, परिणति भाव। आस्थातुमबिखेरना, सींचना।
निवस्तुम्। स्थान पाने के लिए
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