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आश्रम-स्थान
१७१
आश्विनः
आश्रम-स्थान (नपुं०) 'कोऽथ तत्र किमितीक्षक्षमो यत्न एव
भविनां शुभाश्रम:।' (नयो० २।८५) 'शुभास्याश्रमः स्थान-- मस्ति।' (जयो० वृ०२/८५) २. जिनाश्रम- 'वर्णि-गेहिवनवासि-योगिनामाश्रमान् परिपठन्ति ते जिना:।' (जयो० २/११७) वर्णि ब्रह्मचर्य-आश्रम, गेहि-गृहस्थाश्रम्, वन
वासि वानप्रस्थाश्रम और योगी-संन्यास-आश्रम। आश्रमवासिन् (पृ०) आश्रम निवासी। आश्रमिक (वि०) [आश्रम+ठन्] संयममार्ग से सम्बन्ध रखने वाला। आश्रमित (वि०) स्थित, बहरा हुआ। 'क्षणमिहाश्रमितोऽस्मि'
(जयो० ५/६८) आश्रमित्व (वि०) आश्रम में रहने वाले १. अनिल
ज्ञानमथाश्रमित्वम् (भक्ति०८) . आश्रय (सक०) १. प्राप्त करना, ग्रहण करना। 'चदाश्रयिष्यदास्वादियष्यता'
(जयो० वृ० ११/५६) २. सेवन करना. आचरण करना। 'को नु नाश्रयति वा स्वतो हितम्।' (जयो० २/१८) ३. रहना, निवास करना- 'किं जीवनोपायमिश्रयामि प्राणाः पुनः सन्तु कुतो वतामो।'
(दयो०२/५) आश्रय् (सक०) अनुकरण करना। सेवन करना। आश्रयेत्-सेवेत
(जयो०२/४०) आश्रयः (पुं०) [आश्रि+अच्] अवलम्वन। १. निवास, घर, स्थान,
आवास, मदना 'चम्पापुरी नाम जनाश्रयं तं' (सुद० १/२४) २.. विश्रामस्थल, शरणस्थान। ३. अधिकार, सम्बन्ध। (जनो० २/११०) आश्रयणं (नपुं०) [आश्रि ल्युट] युक्त प्राना (तीरा०
६/१६) (जयो०४/१८) संरक्षण प्राप्त, शामत आधारभूत। आश्रयत्व (वि०) आश्रयता, आधारभूत-शदेव गत्वा
सुहृदाश्रयत्वम्। (जयो० ३/३७) आश्रयदानं (नपुं०) आधारभृत धन, मननीय धनः (दयो०
११२) आश्रयिन् (वि०) [आश्रय इनि] आश्रित, संबद्ध एक-दूसरे
के आधीन रहने वाला। आश्रव (वि०) [आ+श्रुअच] आज्ञाकारी, प्रतिज्ञाबद्ध, नियम
युक्त। 'आत्मविधानकथाश्रवः' (जयो० ॥७) आश्रित (भृ० क० कृ.) [आश्रि+क्त] अधिकृत। १. आधारभृत,
अनुरत्त, आश्रय जन्या 'स पाशुपत्यं महदाश्रितोऽपि' (सुद० २/३) २. स्वीकृत 'आश्रितं स्वीकृत हदयतः।' मान लिया ( जया वृ० ४/२५) ३. युक्त-'श्रियाश्रितं सन्मतिमात्य
युक्त्या ' (जया० १/१) आश्रितः (पुं०) अनुचर, भृत्य, सेवक।
आश्रित कामः (पुं०) काम-वासनातुर, कामासक्त। (जयो०
२३/६२) आश्रितिः (स्त्री०) अवलम्बन, आश्रय, आधार, स्थान। (जयोल
९/९) 'निपतते हततेजस. आश्रितिः।' (जयो० ९/८) आश्रित्य (संकृ०) अवलम्बन करके, आधार बनाकर। (जयो०
वृ० १/२२) आश्रुत (भू० क० कृ०) [आ+श्रु+क्त] १. स्वीकृत अंगीकृत,
मान्य, प्राप्त, प्रतिज्ञात, सहमत। २. सुना हुआ। आश्रुत-चारुवारि (नपुं०) स्नेहसूचक जल, नेत्रजल,
अश्रुप्रवाह, आंखों में आंसुओं का क्रम। (जयो० १३/१७) आश्लिष्ट (वि०) आलिंगित। (सुद० ८५) सुदर्शन भुजाश्लिष्टा। आश्लिष्टवती (वि०) लिपटी हुई, आलिंगित। 'पादमाश्लिष्टवतो
वल्ली' (जयो० १४/१७) आश्रुतिः (स्त्री०) [आ+श्रु+क्तिन्] १. सुनना, २. अंगीकृत,
स्वीकृत। आलेण (स्त्री०) एक नक्षत्र। आश्लेषः (पुं०) [आ+श्लिष्+घञ्] १. आलिंगन, मिलन, ___ एक दूसरे के गले मिलना। (सुद० ३/३८) अहो किलाश्लेषि
मनोरमायाम। २. संपर्क, सम्बन्ध। आश्लेषि (वि०) समालिंगित। (जयो० १७/३६) आश्व (वि०) [अश्व+अण] घोड़े से सम्बंधित। आश्वभू (स्त्री०) अनुभाग। (वीरो० २२/८) आश्वयुज (वि०) [अश्वयुज्+अण्] आश्विन मास से सम्बंधित। आश्वसित (वि०) आश्वासन युक्त, प्रोत्साहन जन्य। (जयो०
वृ० २६/२४) आश्वासः (पुं०) [आ+श्वस्+घञ्] १. सांस लेना, २. प्रोत्साहन,
३. अनुच्छेद, अनुभाग, गद्य पुस्तक का एक अंश। आश्वासनं (नपुं०) [आश्वस् णिच् ल्युट्] १. प्रोत्साहन।
(वीरो० १९/४०) २. समाश्वास, उत्साहित करना। (जयो०
वृ० २६/२४) आश्वासनावस्था (स्त्री०) आशा, इच्छा, अभिलाषा, वाञ्छा।
(जयो० वृ० २३/६५) आश्वित (वि०) आशीर्वाद युक्त, प्रोत्साहन युक्त।
_ 'किलांशिकवाश्विति तेन मुक्ता।' (सुद० २/२०) आश्विनः (पुं०) [अश्+विनि ततः अण] आश्विनमास।
'तमाश्विनं मेघहरं' (सुद० ४/१४) श्रितस्तदाऽधियोऽपि दासांवृषभस्य सम्पदाम्। मयूरमन्मौनपदाय भन्दतां जगाम दृष्ट्वा जगतोऽप्यकन्दताम्।
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