________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
आरता
१६२
आराध्यतम
आरता (वि०) कोप रहित, क्रोधमुक्ता। (जाये०११/९४) आराडटती (वि०) उतरी हुई, नीचे आगत। (दयो० ४२) आरतिः (स्त्री०) [आ+रम् क्तिन्] १. विश्राम, रोक, आराम। आरात् (अव्य०) इस समय, अब। 'आराम आरात्परिणामधाम' २. रतिजन्य। ३. आरती।
(जयो० १९८३) आरनालः (पुं०) [आ+ऋ+नल+घञ्] मांड।
शीघ्र ‘पय आरात्स्तनयोस्तु पायित।' (सुद० ३/२६) आरब्धः (पुं०) [आ+रभ्+क्त] प्रारम्भ, शुरु, समारब्ध, रचित 'आरादघावृतपयोधरसेवा।' (जयो० ४/५७)
कृपालतात: आरब्धं तस्येदं मम कौतुकम्। (सुद० १३६) तभी से-' यदादिदृष्टाः समदष्टसारास्तदादिसृष्टा हृदि कृपा रूप लता से रचित यह भी निबन्ध कौतुक बढ़ाएगा। मुन्ममारात्। (सुद० २/१९) 'आरात्' का अर्थ दूर, दूरस्थ, समारब्धः आरब्धः पापपथस्य। (जयो० वृ० २/११६)
दूर से निकट, समीप आदि भी है। (जयो० १/४, १/३) आरब्धवती (वि०) प्रारम्भ करने वाली, प्रयत्नशील। आरातिः (पुं०) [आ+रा+क्तिच्] शत्रु, प्रतिपक्षी, वैरी। __'उपसर्गमुपारब्धवती कुर्वतिहासती।' (सुद० १३३) आरातीय (वि०) [आरात् छ] निकट, समीप, आसन्न, आरभटः (पुं०) [आरभ+ अट] विश्वास, दृढ़ प्रतीति।
दूर का। आरभटा (स्त्री०) दोष विशेष, उपेक्षणीय क्रिया, विधिवत आरात्रिकं (नपुं०) [आरात्रवपि निर्वृत्तम् ठञ् | रात्री सम्बन्धी क्रिया न करना।
आरती, उपासना के लिए भगवत् आरती। आरम्भः (पुं०) [आ+र+घञ्] ०प्रारम्भ, समारम्भ, रचित, आराध् (सक०) ० आराधना करना, सेवा करना, संतोष
० शुरु क्रियाशील, कार्य, व्यवसाय, व्यापार। करना, उपासना करना, पूजा करना, अर्चना करना। 'सदारम्भादनारम्भाद- घादप्यतिवर्तिनी।' (सुद० ४/३२) (वीरो०८/४३) आराधयामि 'परोपकारैक-विचार हाराग्रन्थारम्भसमये- परिग्रहव्यापाररूपे।' (जयो० वृ०१/११०) त्कारामिवाराध्य गुणाधिकाराम्।' (जयो० १/८६) आराध्यप्रक्रमः आरंभः (स० सि० ६/८) आरम्भः प्राणि
संपूज्य आराधयेत् (जयो० वृ० २/४१) पीडाहेतुव्यापारः। (स० सि० ६/१५) प्राणि-प्राण-वियोज- आराधक (वि०) उपासक, सेवक। (भक्ति०२४) नमारम्भो नाम। (धव० १३/४६) प्राणियों के प्राणों का आराधनं (नपुं०) आराधना, अर्चना, पूजा, सत्कार, उपासना। वियोजन/घात का नाम आरम्भ है।
(सुद० २/३०) आरम्भ-कथा (स्त्री०) प्राणिविघात सम्बन्धी कथा।
आराधनकाक (वि०) भटकने वाला पर सेवा तत्पर। स आरम्भकोपदेशः (पुं०) पाप जन्य क्रियाओं का उपदेश, प्रतिहारमाराधनकारक। (जयो० २/३१) आराधनकारकं पर 'अनर्थदण्ड' सम्बन्धी कथन।
सेवा तत्पर। आरम्भक्रिया (स्त्री०) छेदन, भेदनादि की क्रिया, प्राणिघात आराधना (स्त्री०) उपासना, अर्चन, भक्ति, सेवा। पारणमस्याः
का कार्य। पाप जन्य क्रियाओं का देखकर हर्षित होना। किं भवेत्तामाराधनामुदस्य। (सुद० ९४) आराध्यन्ते सेव्यन्ते आरम्भणीय (वि०) हिंसाजनीय, प्राणिघात उत्पन्न करने स्वार्थप्रसाधनकानि क्रियते। (भ० आ०१) वाली। (दयो०६)
आराधना-कथाकोषः (पुं०) एक कथा ग्रन्थ का नाम। (वीरो० आरम्भिक (वि०) संहारक, दूषित, विघात। जिससे घर के १७/२०)
खान-पान, लेन-देन, वाणिज्य-व्यापार आदि के करने से | आराधनीय (वि०) सेवनीय, पूजनीय, अर्चनीय। (जयो० वृ० होने वाली हिंसा हो। (सुद० ४/३२)
२७/८) सम्मानीय। आरम्भिकी (स्त्री०) प्राणिघातक क्रिया। आरम्भः प्रयोजन | आराधनीयदलं (नपुं०) समाराध्य समूह, पूजनीय दल। (जयो० __ कारणं यस्याः सा आरम्भिकी।
१२/१३४) सुखादि समाराध्यं सौधसम्पद्दलं कया। आरम्भ-विरत (वि०) हिंसा रहित, प्राणिघात रहित, आरम्भ आराधित (वि०) वंदित, पूजित, सेवित, समाराधित। (जयो०
परित्याग ०'अष्टम प्रतिमा विशेष'-सर्वतो देशतश्चापि १२/१, जयो० ३/५) वदितमाराधितं भवति। (जयो० वृ० १२/१) यत्रारम्भस्य वर्जनम्। अष्टमी प्रतिमा सा (ला०संहिता आराध्य (वि०) सेवनीय, पूजनीय, वंदनीय। (जयो० १/६२) ७/३१)
आराध्यतम (वि०) अत्यन्त आराधनीय, विशेष वंदित। (जयो० आरा (स्त्री०) आवाज, चिल्लाना। चीखना।
२७/८)
For Private and Personal Use Only