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आरामः
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आर्तध्यानं
आरामः (पुं०) [आ+रम्+घञ्] आगत्य रमन्तेऽत्र स आरामः।
१. बगीचा, उद्यान, उपवन। कदाचिदा रामममुष्य। (जयो० १/७७) २. प्रीति, स्नेह, रुचि, प्रसन्नता, हर्ष, प्रमोद। (सुद० ८३) 'आसीत्तदाराम-ललाममञ्चमहो' (जयो० १/४९) उक्त पंक्ति में 'आराम' का अर्थ 'विश्राम' है।
लक्ष्मी के विश्राम करने का सुन्दर मञ्च। आराम-धाम (नपुं०) १. बगोचा, उद्यान, उपवन। 'आराम
धामधनतो धरणीं समस्तां।' (सुद० १/३५) २. विश्राम
स्थान, आरामगृह। आराम-रामणीयक (वि०) उद्यान की रमणीयता। 'आरामस्य
उद्यानस्य रामणीयकं सौन्दर्यमनुवदता वनपालेन। (जयो०
पृ० १/९०) आराम-वर (वि०) उत्तम बगीचा 'यस्मैकिलारामवरेण' हर्ष-वरेण
पुष्पाञ्जलिरर्पितोऽपि। (समु० ६/३२) आरामिकः (पुं०) माली, बगीचे का रक्षक। आरालिकः (पुं०) रसोइय। पाचक। आरार्तिकावतरणं (नपुं०) नीराजन पात्र, आरती भाजन।
(जयो० वृ० १२/१०५) आरु (पुं०) [ऋ+उण] १. सूअर, सूकर। २. केकड़ा। आरु (अक०) बैठना, स्थापित होना, पहुंचना। (जयो० ११/३) आरुह (अक०) बैठना, स्थापित होना, पहुंचना। (जयो० ११/३) आरू (वि०) [ऋ+ऊ+णित्] भूरे रंग का। आरूढ (भू० क० कृ०) [आ+रूह्+क्त] सवार, चढ़ा हुआ,
बैठा, हस्ति आदि पर स्थित। 'हस्त्यारूढः।' (जयो० वृ०
८/११) 'रुढमक्रमामत्' (जयो० वृ०८/११) आरूढिः (स्त्री०) [आ+रूहक्तिन्] स्थित, आरोपित, उन्नयन। आरेकः (पुं०) [आ+रिच्+घञ्] रिक्त करना, संकुचित करना। आरेचित (वि०) [आरिच्+ णिच्+क्त] संकुचित, उदासीन,
उन्मीलित, निमीलित भौंह। आरोग्यं (नपुं०) [आरोग्+ष्यञ्] स्वस्थ, निरोग, हृस्ट-पुष्ट
रोग मुक्त। 'औदार्य रूपमारोग्यं दृढत्वं पटुवाक्यता।' (दयो०
पृ०७०) आरोप (सक०) ०डालना, निक्षेप करना, ०मान लेना,
० मढ ना, रोपना, गाड़ ना। व्यञ्जने विव सौन्दर्यमात्रारोपावसानकौ।' (जयो० ३/४९) 'तत्करोमि किल सा सहजेनारोपयेद्विभुगले तदनेना।' (जयो० ४/३३) 'आरोपयेत् निक्षिपेत्।' (जयो० वृ०४/३३) 'चापार्थमारोपितशस्यनासा' (जयो० ५/८४)
आरोपणं (नपुं०) [आ+रूह+णिच्+ ल्युट्] रखना, जमाना,
डालना, रोपना। आरोपण-परिणामः (पुं०) निक्षेपण भाव। (जयो० पृ० ३/४९) आरोपित (वि०) उपात्त, समङ्कित, स्थापित, रखा गया, अंकित
किया गया। (जयो० वृ० ३/७४) 'आरोपितोऽन्येन च
दन्तमूले।' (जयो० वृ० १३/१०१) आरोपितवती (वि०) स्थापित करने वाली। (वीरो० ३/२२) आरोहः (पुं०) [आ रूह्+घञ्] १. सवार, बैठा हुआ, स्थित,
आरूढ। २. संगीतविधा का एक स्वर, जिसमें ऊपर की ओर तान लिया जाता है। ३. ऊभार, ऊँचा स्थल, पहाड़।
४. आरोहः शरीरोच्छ्रायः शरीर की ऊँचाई। आरोहकः (पुं०) [आ+रूह्+ण्वुल्] सवार, चालक, रथ या
अश्व सवार। आरोहणं (नपुं०) [आ+रूह+ल्युट्] ऊपर चढ़ने की क्रिया
'कुरुतात् सदनुग्रहं हि तु, स्वयमारोहणतः परीक्षितम्।'
(समु० २/२३) आर्किः (पुं०) शनिग्रह, अर्कपुत्र। आर्भ (वि०) [ऋक्षा अण्] तारकीय, नक्षत्र सम्बन्धी। आर्गड (वि.पुं०) सांकल, आगल। (जयो०८१) आy (नपुं०) [आर्घा+यत्] जंगली शहर। आर्च (वि०) भक्त, पूजक, आराधक। आर्चिक (वि०) [ऋच्+ठञ्] पूजक, वंदक। आर्जवं (नपुं०) १. सरलता, मृदुता ०ऋजुभाव, निर्मल
प्रवृत्ति। (त० सू० ९/६)। योगस्यावक्रता आर्जवम्। (त० वा० ९/६) ऋजो वं आर्जवम्। (मूला०वृ० ११/५) २. स्पष्टता, सद्व्यवहार, ०सदाचरण, निष्कपटा, ०अवक्रता,
०अकुटिलता। आई (वि०) उत्कण्ठित, द्रवीभूत। 'आर्द्र भूमिपतेर्मनस्थलमलं
काशीति संस्त्रोतसा।' (जयो० ३/९८) आर्त (वि०) [आ+ऋ+क्त] १. पीड़ित, बाधा, दुःखित, कष्ट।
२. आर्तध्यान विशेष, जिसमें अनिष्ट का संयोग होने पर पीड़ा होती है। 'ऋतं दु:खम्, अर्दनमतिर्वा, तत्र भवमार्तम्।' (स० सि० ९/२५) ३. रोग, दु:खजन्य। ४. नाद विशेष,
जिसमें कष्टदायी स्वर ध्वनित हो। आर्तदीनं (नपुं०) पीडाजन्य। (समु० ३/३६) आर्तध्यानं (नपुं०) ध्यान का एक भेद, जिसमें अनिष्ट का
संयोग होने पर पीड़ा होती है। (समु०८/३५) आर्तध्यानमिदं समाह भगवास्त्याज्यं सदा योगिता। (मुनि० २१)
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