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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आय-व्ययः १६१ आरण्य | आय-व्ययः (पुं०) आय व्यय, खर्च। (जयो०२/११३) आयस (वि०) लोह, धातुविशेष। (जयो० ४/६६) आयासस्थितिः (स्त्री०) लोहसत्ता। (जयो० ४/६६) आयानं (नपुं०) [आ+या+ ल्युट्] आना, पहुंचना, जाना। आयात (भू०) आया, पहुंचा। (जयो० ३/३) आयात-तमस् (नपुं०) आया हुआ अन्धकार, व्याप्त अन्धकार। (सुद० २/३३) आयामः (पुं०) [आ+यम्+घञ्] विस्तृत, विस्तार, प्रसार, फैलाव। आयामवत् (वि०) [आयाम-मतुप्] विस्तारित, लम्बित, विस्तारयुक्त आयासः (पुं०) [आ+यश्+घञ्] प्रयास, प्रयत्न, श्रम, उपयोग, दु:ख युक्त चेप्टा। आयासिन् (वि०) परिश्रान्त, थकावट, प्रयत्नशील, प्रयासरत। आयित (वि०) आया, प्राप्त हुआ। (सुद० १०७) आयुः (पुं०) भव, कर्मागत जन्म, जीवन। (जयो० १/७६) आयुक्त (भू० क० कृ०) [आयुज्+क्त] नियुक्त, कार्यरत। आयुक्तः (पुं०) १. मन्त्री, सचिव। २. अभिकर्ता, कमिश्नर। आयुकर्म (पुं०) आयुकर्म, नारकादि भव को प्राप्त कराने वाला कर्म, अवधारण। नारकादिभवमिति आयुः। (स० सि० ८/४) यस्य भावात् आत्मनः जीवितं भवति। (त० वा० ८/१०) आयुरिति अवस्थितिः। भवधारणं प्रतीति आयुः। (धव० १३/३६२) आयुतनेत्रिन् (वि०) सहस्त्र नेत्रधारी। (सुद० ३/९) आयुधः (पुं०) शस्त्र, हथियार, अस्त्र [आ+युध्+घञ्] प्रपक्षयोरायुधसन्निनाद। (जयो० ८/१२) आयुधिन् (वि०) आयुध धारक, शस्त्री, शस्त्रधारक। (जयो० २/४१) शाणतो हि कृतकार्य आयुधी। (जयो० २/४१) आयुधान्यस्य सन्तीत्यायुधी। (जयो० वृ० २/४१) आयुर्विगत (वि०) आयु समाप्ति, विगतजीवन। तम मम तव __ मम लपननियुक्त्याऽखिलमायुर्विगतम्। (जयो० २३/५६) आयुवेदिक (वि०) चरककार्य में तत्पर। (जयो० वृ०८/१६) आयुर्वेदः (पुं०) व्याधि प्रतिकारक शास्त्र, शरीरसम्बन्धीशास्त्र। (जयो० २/५६) ०शरीर शास्त्र, कायिक विधि ग्रन्थ। आयुर्वेदशास्त्रं (नपुं०) शरीर सम्बन्धी शास्त्र। आयुर्वेदिन् (वि०) आयुर्वेदज्ञ, शरीरशास्त्रज्ञ। भालानलप्लुष्ट मुमाधवस्य स्वात्मानमुज्जीवयतीति शस्य। प्रसूनवाणः स कुतो न वायुर्वेदी त्रिवेदी विकल्पनायुः। (जयो० १/७६) आयुष् (वि०) प्रमाणा (जयो० पृ० १/५) आयुष्मत् (वि०) [आयुस्+मतुप्] जीवित, जीता हुआ, जीवन युक्त, दीर्घायु वाला। आयुष्य (वि०) [आयुस्+यत्] जीवन युक्त, प्राणधारक। आयुस् (नपुं०) [आ+इ+उस्] जीवन, प्राण, भव। आये (अव्य०) सम्बोधनात्मक अव्यय। आयोगः (पुं०) [आ। युज्+घञ्] कार्य सम्पादन, नियुक्ति, क्रिया। आयोच्चाल (भू०) पहुंचाया, भेजा गया। (सुद० १२५) सम्पतति शिरस्येव सूर्यायोच्चालितं रजः। (सुद० १२५) आयोजनं (नपुं०) [आ+ युज्+ ल्युट्] १. प्रयत्न, प्रयास। २. ग्रहण करना, पकड़ना। ३. सम्मिलित होना, एकत्रित। आयोधनं (नपुं०) युद्धस्थल, संग्राम। 'आयोधनं धीरबुधाधिवासम्।' (जयो०८/७) आरः (पुं०) [आ+ऋ+घञ्] १. पीतल, अशोचित लोहा। २. कोण, किनारा। आरः (पुं०) ग्रह विशेष, मंगल ग्रह। शनि 'आरः शनिस्तस्य'। (जयो० पृ० ११/५२) आरक्तः (पुं०) लोहित, रक्त, लाल। (वीरो० ६/१५) (जयो० १५/) आरक्तवर्णं (नपुं०) लालवर्ण, लोहित रूप। अरविंदस्य रक्तकमलस्य वेष इव लोहितभावमुपैति प्राप्नोति आरक्तवर्णोऽवलोक्यते। (जयो० वृ० १५/१) आरक्ष (वि०) [आ+र+अच्] परिरक्षित, रक्षा युक्त। आरक्षः (पुं०) रक्षण, संरक्षण, सुरक्षा। आरक्षक (वि०) [आ+रक्ष्+ण्वुल] ०पहरेदार, ०सन्तरी, द्वारपाल, सिपाही, सुरक्षाकर्मी, आरक्षी। आरघट्ट (वि०) कसाई। (दयो० ५७) आरटः (पुं०) [आ+रट्+अच्] नट, पात्र विशेष, जो हास्य, नृत्यादि में प्रवीण हो। आरण (वि०) नाशक, घातक, विध्वंसक, नाश करने वाला। (जयो० वृ० १९/८०) आरणिः (नपुं०) [आ+ ऋ+अनि] भंवर, जलावर्त। आरण्य (वि०) [अरण्य+अण] जंगली, वनोत्पन्न, वनोपगत। 'अरण्यस्य भाव आरण्यम्। 'अरण्यमेवारण्यं' जंगल में रहने वाला। "आरण्यमुपविष्टोऽपिश्रीमान् समरसङ्गतः।" उक्त पंक्ति में कवि ने 'आरण्य' की दो निरुक्ति की हैं, दोनों ही समभावधारी के समत्व का निर्देश करती हैं। For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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