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आमोषिन्
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आयय
आमोषिन् (पुं०) [आ+मुष्+णिनि] चोर। आम्नात (भू० क० कृ०) [आ+म्ना+क्त] १. कथित, प्रतिपादित,
विचारित, चिंतित। २. अधीत, परम्परा प्राप्त। आम्नानं (नपुं०) [आ+म्ना+ ल्युट्] सस्वर स्मरण, सस्वर
अध्ययन। आम्नायः (पुं०) [आ+म्ना+घञ्] १. सिद्धान्त, शिक्षण, आगम।
२. परम्परा प्राप्त, कुलगत, ०वंशानुपूर्वी ०आनुपूर्वी, ० परिवर्तन। ३. स्वाध्याय का एक भेद। घोषविशुद्धपरिवर्तनमाम्नायः (त० वा० ९/२५) आम्नायो गुणना। (भ०आ०१०४) आम्नायो स्वाध्यायो भवत्येव।
(भ० आ०१३९) आम्नायार्थवाचकः (पुं०) आगम प्ररूपित आचार्य, परमागमार्थ
वाचक। आम्रः (पुं०) रसाल, आम। आनं नारंग पनसं वा। (सुद०७२) | आम्रकाम्रता (वि०) आम्र सरसता। (जयो० १२/१२७) आम्रकटः (पुं०) आम्रकूट नामक पर्वत।। आम्रतरु (पुं०) आम्रवृक्ष, रसालतरु। (जयो० १४८६) आम्रतरुस्थ (वि०) आम्रवृक्ष गत, आम्रवृक्षाधीन। (जयो०
९/६९) 'द्युतिरुताम्रतरुस्थपिकानने।' (जयो० ९/६९) आम्रदायिनी (वि०) चूतदा, आम्रदात्री, रसालप्रदायिनी। (जयो०
वृ० १२/१२७) आम्रपेशी (स्त्री०) आमचूर, अमावट। आम्रमञ्जरी (स्त्री०) माकन्दक्षारक, रसाल वौर, आम्रकोरक।
(जयो० १०६/१०१) आम्रवृक्षः (पुं०) ०आम्रतरु, रसालवृक्ष ०मञ्जरीङ्गित। 'आम्रवृक्ष--
वत्सरसता सम्पादकतया।' (जयो० वृ० २०/८५)
सद्रसालेनामवृक्षण सहितो अवलोयते। (जयो० वृ० २१/३१) आम्रातः (पुं०) [आनं आम्रारसं अतति अत्+अच्] अमरतरु,
आम्र की तरह खट्टा वृक्ष, जिसे राजस्थान में 'केर'
कहते हैं। आम्रस्तकः (पुं०) [आ+मिड्+णिच्+ क्त] ध्वनि आवृत्ति, शब्द
गुञ्जार। आमेडनं (नपुं०) [आ+म्रिड्णिच्+ल्युट] पुनरुक्ति, शब्द
प्रतिध्वनि, गूंज। आमेडितं (नपुं०) [आ+म्रिड्+णिच्+क्त] शब्द प्रतिध्वनि,
आम्लिक (स्त्री०) देखो ऊपर। आयः (पुं०) [आ+ इ+अच् अय+घञ् वा] १. आ जाना,
पहुचना, २. सम्यग्दर्शनाद्यवाप्तिलक्षण: आय:। ३. धनागम, राजस्व प्राप्ति, द्रव्य लाभ, धन उपलब्धिा (जयो० ११/३८)
आयषष्ठांशं वा समर्पयिष्यतीति। (जयो० वृ० ११/३८) आय (सक०) [आ+इ] प्राप्त होना, पहुंचना। (सुद० ५.१)
(जयो०२/२३) 'अभ्यच्यार्हन्तमायान्तम्।' (सुद० ७६) बलाहकबलाधानान्मयूरा-मदमाययुः। (जयो० ३/१११)
आययुः प्रापुः। 'पिता पुत्रत्वमायाति' (सुद० ४/९) आयकः (पुं०) उद्देश सिद्धिधारक, शुभावह, शुभभाग्य धारक।
सहसैवाभिललाष चायक:। (जयो० २५/८६) 'चन्द्रमस इवाय एवायकाशुभावहो विधिर्यस्य स चन्द्र इवाह्लादकः।'
(जयो० वृ० २५/८६) आयत (भू० क० कृ०) [आ यम् + क्त ] सविस्तार, विस्तार,
लम्बा, विशाल, बड़ा, विस्तृत, बृहत्। "तरलायतवर्तिरागता सा" (जयो० १८/११४) मौक्तिकालिरिवायतवृत्ता। (जयो०
वृ० २५/८६) आयतनं (नपुं०) [आयतन्तेऽत्र आयत्+ ल्युट्] १. घर, स्थान,
०आवास, निवास, आश्रय, आधार, सहारा, निमित्त। (भक्ति० १६) २. देवायतन, देवगृह। ३. सम्यक्त्वादिगुणों
का आधार। आयतनेत्रं (नपुं०) विस्तृत आंखें। आयत-लोचनं (नपुं०) विस्तारजनित नयन। आयत-विस्तारः (पुं०) लम्बाई-चौड़ाई। अमितोन्नतिमन्ति
निर्मलान्यभ्युचितायत-विस्तराणि वा। (जयो० १३/६५) आयतवृत्तः (पुं०) १. वर्तुलाकार, २. श्रेष्ठाचरण। 'आयतं
विस्तृतं चरित्रं यस्याः।' 'आयताः सविस्तारा चासौ वृत्ता
वर्तुलाकारा चेति।' (जयो० वृ० ५/५/३१) आयता (वि०) दीर्घता, विस्तृत युक्ता। (जयो०१३/४६) आयताभ्युदित (वि०) असमुचित। (जयो० ५/४७) आयतिः (स्त्री०) [आ+ यत् क्त] आश्रित, आधीन, आधारित। आयतिक (वि०) आधीन, आश्रित। आयत्त [आ+ यत्+क्त] आश्रित, आधीन, आधारित। आयत्तिः (स्त्री०) [आ-यत्+क्तिन्] आधीनता, आश्रयभूत। आयथातथ्यं (नपुं०) [अयथा तथा प्यञ्] अनुपयुक्त, अनुचित,
अयोग्य। आयनं (नपुं०) गमन, विचरण। (जयो० वृ० १८/४६) आयय (भू०) आए, पधारे। 'वसन्तवदाययावुपनं' (सुद०४/१)
आम्लः (पुं०) इमली का वृक्ष। आम्लिः (स्त्री०) १. इमली का वृक्ष। २. पेट का विकार।
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