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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आमोषिन् १६० आयय आमोषिन् (पुं०) [आ+मुष्+णिनि] चोर। आम्नात (भू० क० कृ०) [आ+म्ना+क्त] १. कथित, प्रतिपादित, विचारित, चिंतित। २. अधीत, परम्परा प्राप्त। आम्नानं (नपुं०) [आ+म्ना+ ल्युट्] सस्वर स्मरण, सस्वर अध्ययन। आम्नायः (पुं०) [आ+म्ना+घञ्] १. सिद्धान्त, शिक्षण, आगम। २. परम्परा प्राप्त, कुलगत, ०वंशानुपूर्वी ०आनुपूर्वी, ० परिवर्तन। ३. स्वाध्याय का एक भेद। घोषविशुद्धपरिवर्तनमाम्नायः (त० वा० ९/२५) आम्नायो गुणना। (भ०आ०१०४) आम्नायो स्वाध्यायो भवत्येव। (भ० आ०१३९) आम्नायार्थवाचकः (पुं०) आगम प्ररूपित आचार्य, परमागमार्थ वाचक। आम्रः (पुं०) रसाल, आम। आनं नारंग पनसं वा। (सुद०७२) | आम्रकाम्रता (वि०) आम्र सरसता। (जयो० १२/१२७) आम्रकटः (पुं०) आम्रकूट नामक पर्वत।। आम्रतरु (पुं०) आम्रवृक्ष, रसालतरु। (जयो० १४८६) आम्रतरुस्थ (वि०) आम्रवृक्ष गत, आम्रवृक्षाधीन। (जयो० ९/६९) 'द्युतिरुताम्रतरुस्थपिकानने।' (जयो० ९/६९) आम्रदायिनी (वि०) चूतदा, आम्रदात्री, रसालप्रदायिनी। (जयो० वृ० १२/१२७) आम्रपेशी (स्त्री०) आमचूर, अमावट। आम्रमञ्जरी (स्त्री०) माकन्दक्षारक, रसाल वौर, आम्रकोरक। (जयो० १०६/१०१) आम्रवृक्षः (पुं०) ०आम्रतरु, रसालवृक्ष ०मञ्जरीङ्गित। 'आम्रवृक्ष-- वत्सरसता सम्पादकतया।' (जयो० वृ० २०/८५) सद्रसालेनामवृक्षण सहितो अवलोयते। (जयो० वृ० २१/३१) आम्रातः (पुं०) [आनं आम्रारसं अतति अत्+अच्] अमरतरु, आम्र की तरह खट्टा वृक्ष, जिसे राजस्थान में 'केर' कहते हैं। आम्रस्तकः (पुं०) [आ+मिड्+णिच्+ क्त] ध्वनि आवृत्ति, शब्द गुञ्जार। आमेडनं (नपुं०) [आ+म्रिड्णिच्+ल्युट] पुनरुक्ति, शब्द प्रतिध्वनि, गूंज। आमेडितं (नपुं०) [आ+म्रिड्+णिच्+क्त] शब्द प्रतिध्वनि, आम्लिक (स्त्री०) देखो ऊपर। आयः (पुं०) [आ+ इ+अच् अय+घञ् वा] १. आ जाना, पहुचना, २. सम्यग्दर्शनाद्यवाप्तिलक्षण: आय:। ३. धनागम, राजस्व प्राप्ति, द्रव्य लाभ, धन उपलब्धिा (जयो० ११/३८) आयषष्ठांशं वा समर्पयिष्यतीति। (जयो० वृ० ११/३८) आय (सक०) [आ+इ] प्राप्त होना, पहुंचना। (सुद० ५.१) (जयो०२/२३) 'अभ्यच्यार्हन्तमायान्तम्।' (सुद० ७६) बलाहकबलाधानान्मयूरा-मदमाययुः। (जयो० ३/१११) आययुः प्रापुः। 'पिता पुत्रत्वमायाति' (सुद० ४/९) आयकः (पुं०) उद्देश सिद्धिधारक, शुभावह, शुभभाग्य धारक। सहसैवाभिललाष चायक:। (जयो० २५/८६) 'चन्द्रमस इवाय एवायकाशुभावहो विधिर्यस्य स चन्द्र इवाह्लादकः।' (जयो० वृ० २५/८६) आयत (भू० क० कृ०) [आ यम् + क्त ] सविस्तार, विस्तार, लम्बा, विशाल, बड़ा, विस्तृत, बृहत्। "तरलायतवर्तिरागता सा" (जयो० १८/११४) मौक्तिकालिरिवायतवृत्ता। (जयो० वृ० २५/८६) आयतनं (नपुं०) [आयतन्तेऽत्र आयत्+ ल्युट्] १. घर, स्थान, ०आवास, निवास, आश्रय, आधार, सहारा, निमित्त। (भक्ति० १६) २. देवायतन, देवगृह। ३. सम्यक्त्वादिगुणों का आधार। आयतनेत्रं (नपुं०) विस्तृत आंखें। आयत-लोचनं (नपुं०) विस्तारजनित नयन। आयत-विस्तारः (पुं०) लम्बाई-चौड़ाई। अमितोन्नतिमन्ति निर्मलान्यभ्युचितायत-विस्तराणि वा। (जयो० १३/६५) आयतवृत्तः (पुं०) १. वर्तुलाकार, २. श्रेष्ठाचरण। 'आयतं विस्तृतं चरित्रं यस्याः।' 'आयताः सविस्तारा चासौ वृत्ता वर्तुलाकारा चेति।' (जयो० वृ० ५/५/३१) आयता (वि०) दीर्घता, विस्तृत युक्ता। (जयो०१३/४६) आयताभ्युदित (वि०) असमुचित। (जयो० ५/४७) आयतिः (स्त्री०) [आ+ यत् क्त] आश्रित, आधीन, आधारित। आयतिक (वि०) आधीन, आश्रित। आयत्त [आ+ यत्+क्त] आश्रित, आधीन, आधारित। आयत्तिः (स्त्री०) [आ-यत्+क्तिन्] आधीनता, आश्रयभूत। आयथातथ्यं (नपुं०) [अयथा तथा प्यञ्] अनुपयुक्त, अनुचित, अयोग्य। आयनं (नपुं०) गमन, विचरण। (जयो० वृ० १८/४६) आयय (भू०) आए, पधारे। 'वसन्तवदाययावुपनं' (सुद०४/१) आम्लः (पुं०) इमली का वृक्ष। आम्लिः (स्त्री०) १. इमली का वृक्ष। २. पेट का विकार। For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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