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आभियोग्यभावना
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आमपात्रं
वाहनादि कर्मणि प्रवृत्ताः।' (स० सि०४/४) 'अभियुज्यन्त इत्याभियोग्या: वाहनादौ। दासप्राया आभियोग्या। (लक्षणावली
पृ० २०३) आभियोग्यभावना (स्त्री०) भूतिकर्म की भावना, सेवाकर्म
की दृष्टि। आभिरूपकं (नपुं०) [अभिरूप+वुञ्] लावण्य, सौन्दर्य, रूप। आभिरूप्यं (नपुं०) [अभिरूप ष्यञ्] लावण्य, सौन्दर्य, रूप। आभिषेचनिक (वि०) [अभिषेचन ठ] राज्याभिषेक सम्बन्धी। आभिहारिक (वि०) [अभिहार+ठब] उपहार योग्य, प्रदान
योग्य, देय योग्य वस्तु। आभीक्ष्ण्यं (नपुं०) [अभीक्ष्ण्यस्य भावः] सतत् आवृत्ति,
निरन्तर प्रयास। आभीरः (पुं०) [आ समन्तात् भियं राति] ग्वाला, अहीर,
अमीर। आभीरी (स्त्री०) अहीरनी, ग्वालिनी। आभीरीपल्ली (स्त्री०) अहीरों का स्थान। आभील (वि०) [आभियं लाति ददाति ला+क] भयानक, भीषण। आभूषणं (नपुं०) अलंकरण, गहना। (जयो० वृ० २२/५) आभूषणता (वि०) अलंकरणपन। (वीरो० २/२१) आभोगः (पुं०) [आ+भुज+घञ्] १. परिसर, पर्यावरण। २.
विस्तारण, परिधि, घेरा, विस्तार। ३. लम्बाई-चौड़ाई परिमाण। ४. उपभोग, तृप्ति, विषय भोग। ५. सर्प का फन। ६. अकार्य का सेवन। आभोगनमाभोगः, आभोगो उपयोगा ज्ञात्वाप्यकार्यासेवनमाभोगः। (ल०२०३) ७. परिपूर्ण"आभोगस्य परिपूर्णत्वस्य विस्तारस्या" (जयो० वृ०
२४/३५) आमन्त्रणदाता (वि०) आमन्त्रणकी, निमन्त्रण देने वाला।
'आमन्त्रदाता किमु देवताहमहो।' (जयो० २६/८३) आमन्त्रणार्थ (वि०) सम्बोधनार्थ, निमन्त्रणार्थ, आह्वानार्थ।
आमन्त्रणार्थमिति चन्द्रमसो रसेन। (जयो० १८/४९) आभ्यन्तर (वि०) [अभ्यन्तर+अण्] आत्मभूत, आत्मगत. __अन्तर्भूत, भीतरी, आन्तरिक। आभ्यन्तर-तपः (पुं०) ०अन्तरतप ०आत्मसम्बन्धी तप,
० अन्त:करण के तप। प्रायश्चित्तादितप। 'अन्त:करण व्यापारात् प्रायश्चित्तादितपः अन्त:करण व्यापारालम्बनम्
ततोऽस्याभ्यन्तरत्वम्।' (त० वा० ९/२०) आभ्यन्तरनिर्वृत्तिः (स्त्री०) आन्तरिक अवस्थान, आत्मप्रदेशों
का अवस्थान।
आभ्यन्तरप्रत्ययः (पुं०) जीव प्रदेशों के साथ एकता। आभ्यन्तर-प्रवेशः (पुं०) अन्तर प्रवेश, हृदय प्रवेश। (जयो०
वृ० १४/५८) आभ्यवहारिक (वि०) [अभ्यव्यहार+ठक] भोज्य, खाने योग्य। आभ्यासिक (वि०) [अभ्यास-ठक] अभ्यासजन्य, संलग्नता
युक्त। आभ्युदयिक (वि०) [अभ्युदय ठक्] १. मांगलिक, शुभकारी,
कल्याणकारक। २. गौरवमयी, महत्त्वपूर्ण, उन्नतशील। आमः (पुं०) आम्र, रसाल। (दयो० ५३) आम् (अव्य०) [अम्+णिच] अंगों के विविध भाव से युक्त
अव्यय। १. अङ्गीकृत, स्वीकरण, ओह, हाँ, अब पता
लगा, अवश्य ही। आम (वि०) [आम्यते ईषत् पच्यते -आ+अम्। कर्मणि। घञ्]
कच्चा, अपक्व, विपाक, पाक रहित, अनपका। आमः (पुं०) आमरोग, अजीर्ण, कब्ज। (वीरो० १९/३) पेट
विकार अजीर्णकर। (जयो० ६/६३) आममन्नमतिमात्रयाऽ
शित। आमञ्ज (वि०) प्रिय, इष्ट, रमणीय, रम्य, मनोहर। आमंडः (पुं०) एरंड वृक्ष, अरण्डीतरु। आमन् (सक०) उतारना, आगे करना। आमनस्य (नपुं०) [अमनस्+घ्यञ्] दुःख, पीड़ा, कष्ट, शोक,
मानसिक व्याकुलता, थकान। आमन्त्र्य (सक०) निमन्त्रण देना, बुलाना। (जयो० ४/२४) आमन्त्रणं (नपुं०) [आ+मन्त्र+णिच्+ ल्युट्] अनुज्ञा देना, बुलाना,
अभिवादन, अनुमति, निमन्त्रण। (जयो० ४/१३)
कामधारानुज्ञा। आमन्त्रणपत्रिका (स्त्री०) निमन्त्रणनातिः निवेदन पत्र (जयो०
१/१९) आमन्त्रणी भाषा (स्त्री०) अभिमुख करने की भाषा। 'आगच्छ
भो देवदत्त' इत्याद्याह्वान भाषा आमन्त्रणी।' (गो०जीव०२२५) 'यथा वाचा परोऽभिमुखीक्रियते सा आमन्त्रणी' (भ०मा० ११९५) 'गृहीत-वाच्य-वाचक-सम्बन्धो व्यापारान्तरं
प्रत्यभिमुखीक्रियते यया आमन्त्रणीभाषा।' (मूला० ११८) आममौरः (पुं०) रसालकोरक आम्र गुच्छक आम्र तरु में
लगने वाले पुष्प। (दयो० ५३) आमंद्र (वि०) [आ+मन्द्र+अच्] गम्भीर स्वर। आमपात्रं (पुं०) [आ+मी-करणे अच्] १. रोग, आमय-पेट
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