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आदिपुरुषः
१५१
आद्योतः
आदिपुरुषः (पुं०) आदिब्रह्मा, आदिनाथ, जैनधर्म के आदिसृष्टा (वि०) प्रारंभिक सृष्टि वाला। (सुद० २/१९)
आद्य प्रवर्तक, प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव। (जयो० पृ० आदीपनं (नपुं०) [आ+दीप्+ ल्युट्] ज्वलन पैदा करना, आग ३/३)
लगाना। आदिपरं (नपुं०) प्रथम स्थान। (सम्य० ११०)
आदीनव (वि०) संक्लिष्ट। (जयो० २७/५३) 'आदीनवस्तु आदिबलं (नपुं०) प्रारम्भिक शक्ति।
दोषे स्यात् परिक्लिष्टदुरन्नयोः' इति विश्वलोचनः। आदिबन्धुः (पुं०) बड़ा भाई, ज्येष्ट भ्राता। स आदि आदीश: (पुं०) आदीश्वर, आदिनाथ, प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव। प्रथमजातश्चासौ बन्धू(ता। (जयो० ३० ३/६८)
(वीरो० ११/२१) आदिभव (वि०) सर्वप्रथम उत्पन्न, पहले उत्पन्न, प्रथमजात। आदीशपौत्रः (पुं०) मरीचि जीव। स आह भो भव्य। पुरूरवाङ्गआदिभृत् (वि०) प्रथमजात। (जयो० वृ० १/१)
भिल्लोऽपि सद्धर्मवशादिहाङ्ग। आदीशपौत्रत्वमुपागतोऽपि आदिम (वि०) [आदौ भव:-आदि डिमच्] प्रथम, आदि, कुदृक्प्रभावेण सुधर्मलोपी। (वीरो० ११/२)
०प्रारंभिक, पुरातन, प्राचीन, ०पुरा, ०पहला आद्य। आदेर्नः (पुं०) श्री नाभेय, नाभिराज, आदिनाथ के पिता। "द्राक्षेवमृद्धी प्रथिताऽऽदिमस्य।" (समु० १/२३) प्रधान. (जयो० २६/७०) सर्वप्रथम
आदेवनं (नपुं०) [आ+दिव्+ ल्युट्] जुआ खेलना, जुआ खेलने आदिमतीर्थनाथः (पुं०) आद्य तीर्थकर, प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव, का पासा।
जैनधर्म के आद्य प्रवर्तक। जयत्यहो आदिमतीर्थनाथ। आदेश: (पुं०) [आ+दिश+घञ्] भेद, अपरः (धव० १/१६०) (जयो० २७/७१)
निर्देश: आदेशेन भेदेन विशेषेण प्ररूपणं। आज्ञा, निर्देश, आदिमवर्णता (वि०) ब्रह्मणवर्णयुक्त। (जयो० १/५४)
उपदेश, विवरण, सूचना, संकेत, कथन। (जयो० आदिराजः (पु०) अर्ककीर्ति राजा। अकंपनदेश के आदिराज १/९०) आदेश एवास्ति यतो गुरुणा अर्ककीर्ति। (जयो० ४/१)
फलप्रदोऽस्मभयमहापुरूणाम्। (समु० ३/२) बड़े लोगों आदिवर्णः (पुं०) क्षत्रियवर्ण, प्रथम वर्ण, वर्ण व्यवस्था का का आशीर्वाद ही हम लोगों को सफल बनाने वाला होता
प्रारम्भिक चरण क्षत्रिया "आदिवर्ण-क्षत्रियभावाद् अस्यापि है। उक्त पंक्ति में 'आदेश' का अर्थ आशीर्वाद है। आदेशं क्षत्रियत्वाद् अयमिवैवास्ति।" (जयो० पृ० ४.१०८)
कुरुतान्महन् भो सुखप्रवेशनकस्य। (सुद० ७/४) आदिश् (सक०) ०कहना. संकेत करना, प्रदान करना. आदेशो भवतामस्ति, न परप्रत्यवायकृत्। (समु०७/३४)
०अर्पण करना, ०आदेश देना, ०आज्ञा देना, ०सौंपना। 'आदेश' का अर्थ अनुशासन भी है। पृष्ठवानिति सप्ततमाय, आदिश त्वदनुकूलकराय। (समु० आदेश-युत् (वि०) अनुशासन सहित, निर्देश, उपदेश।
५/२) स्वावलम्बनं ह्यादिशंस्तवं शान्तये सुवेश। (सुद०७४) आदेशविधिः (स्त्री०) आज्ञा का पालन। त्वदादेशविधिं कर्तुं आदिष्ट (भृ०कृ०) [आ+दिश् क्त] दिखलाया, ०संकेत कातरोऽस्मीति वस्तुतः। (सुद० ७९) किया, प्रदर्शन किया, निर्दिष्ट किया। स्मरादिष्टमथाह | आदेशिन् (वि.) [आदिश् णिनि] आज्ञा देने वाला, अनुशासित शस्तम्। (जयो० १/७५) क्षेमप्रश्नानन्तरं बूहि करने वाला।
कार्यमित्यादिष्टः। प्रोक्तवान् सागरायः। (सुद० ३/४५) आदोहणात्मक (वि०) दोहन करने योग्य। आदिसुतः (पुं०) आदिनाथ का पुत्र भरत, जिसके नाम से इस | आद्य (वि०) [आदौ भव-यत्] प्रथम, (दयो० ३४) प्रधान,
देश का नाम भारत पड़ा। आगमों, पुराणों में जंबूद्वीप में पुरातन, प्राचीन, प्रमुख, नायकः (मुनि० २) आग्रणी। भरतक्षेत्र या भारतवर्ष का नाम विशेष उल्लेखनीय है। (सुद०४/४०) (जयो० ४/४६) आदिदेवस्य सुतो भरतसम्राडपि। (जयो० आद्यक्रिया (स्त्री०) प्रारंभिक क्रिया। (जयो० २१) वृ० ४/४६)
आद्यदेवः (पुं०) आदिदेव, प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव। आदिसुनूः (पुं०) आदिनाथ का पुत्र भरत। भरतचक्रवर्ती। आद्यमूलगुण (नपुं०) प्रथममूलगुण। (मुनि० २)
(जयो० २४/४५) 'किमादिसूनोः सुकृतोच्चमोदयः।' (जयो० आधून (वि०) [आ+दिव्+क्त] बहुभोजी, अधिक भुंजी। २४/४५) 'आदिसूनोर्भरतमहाराजस्य-' (जयो० वृ०२४/४५) | आद्योतः (पुं०) [आ+द्युत+घञ्] कान्ति, प्रभा, चमक, प्रकाश।
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