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आदर्शः
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आदिपर्वन्
३/३)
आदर्शः (पुं०) [आ+दृश्+घञ्] दर्पण, शीशा, आईना। आदर्श २. प्रधान, प्रमुख। सुरादिरेवाद्रियते मयाऽऽदौ। (सुद० इव तस्यात्मन्यखिलं बिम्बितं जगत्। (सुद० १३५)
२/१४) ०ग्रहण ग्रहणस्यादौ परमो भविनोरभिविश्रम्भम। आदर्शः (पुं०) १. प्रशस्त, योग्य, उचित, प्रामाणिक। (सुद० (जयो० ११/११९)
७६) २. छवि, अनुसरणस्थान। निजमादर्श इवाङ्गजन्मनि। । आदि (पुं०) आदिनाथ, आदिब्रह्मा, नाभिराय पत्र ऋषभ। श्री (सुद० ३/८) आदर्शमङ्गष्ठनखं च। (जयो० १/५७)
प्रजाकृति निरीक्षणे न्वतः। (जयो० ३/३) 'प्रातः काले आदर्शतलं (नपुं०) दर्पण प्रान्त, दर्पण भाग। स्वमास्यमादर्शत
आदिपुरुषस्य ऋषभ तीर्थंकरस्य पद- पदायाः। (जयो० वृ० लेऽभिपश्यस्तल्पोत्थितो नैश्यरहस्यमस्यन्। (जयो० २७/५०) आदर्श-दर्शनं (नपुं०) अनुकरणीय दर्शन, उचित अवलोकन। आदिक (वि०) ०अन्तिम, प्रधान, प्रमुख, प्रारम्भिक
'आदर्शस्य अनुकरणीयस्य महर्षेर्दशनेऽवलोकने जाते सति।' (सुद० ३/३) (जयो० वृ० १/९१)
आदिकर (वि०) आदिकर्ता. प्रारम्भिक प्रतिपादन करने आदर्शनं (नपुं०) [आ+ दृश्+ल्युट] प्रदर्शन, दिखावा।
वाला। आदर्श-वर्मन् (पुं०) प्रशस्त मार्ग, अनुकरणीय पथा (जयोल आदिकविः (पुं०) आदिकवि, प्रथम कवि, ऋषभदेव। २/११९)
आदिकाण्डं (नपु०) प्रथमकाण्ड, प्रारंभकाण्ड। आदहनं (नपुं०) [आ दह् ल्युट] १. जलन, तपन, २. पीड़ा, आदिकरणं (नपुं०) प्रथम परिणाम। कष्ट, ३. प्रतिघात।
आदिकाव्यं (नपुं०) प्रथम भाग, पहला हिस्सा। आदानं (नपुं०) [आ+दा+ल्युट्] १. लेना, स्वीकार करना, आदिज (वि०) प्रथम वर्गोत्पन्न। अशिष्टमन्त्यजं स्पृष्ट्वा वर्णतो
(सम्य० १९) ग्रहण करना, उठाना। (मुनि० १२), २. यस्तदादिमः। (जयो० २८/२०) "आदौ जकारो यस्य एतादृशो
उपार्जन करना, ३. उच्चारण का पद, ४. समिति विशेष। य: यकारोऽर्थात् जयः।" (जयो० वृ० २८/२०) आदान-निक्षेपण-समिति (स्त्री०) ग्रहण एवं निक्षेपण में | आदितः (अव्य०) [आदि+ तसिल] आरंभ से लेकर, सबसे
समभाव। साधु की क्रिया। जिसमें वह शस्त्र रखते, उठाते पहले। समय यत्नाभाव धारण करता है। रात्रेया॑ग-निमित्तमासनमपि आदित्यः (पुं०) १. सूर्य, रवि. दिनकर। ( २, देवता, ३. राजा, संशोधयेद्योगिराट् सूर्यास्तात्प्रथमं ततश्च तदसौ प्रातः ४. लौकान्तिक देव। आदौ भव आदित्या। प्रकाशेऽचिरात्। आदानेऽप्युपरक्षणेऽपि कुरुताद् ग्रंथादिकानां आदित्यगतिः (पुं०) राजा. पुण्डरीकिणी नगर के विजयार्ध तथा, यत्नं यत्नवतो हि संवर इति प्राप्ताः प्रणीतेः पृथा।। पर्वत का एक राजा। (जयो० २३/५) तद्गत-खगसानुमति (मुनि० १२) धर्मोपकरणानां ग्रहणं विसर्जन प्रति ह्यादित्यगतिनगतिः। (जयो० २३/५) यतनमादाननिक्षेपणसमितिः। (त० वा० ९/५)
आदित्यवारः (पुं०) रविवार, सूर्यवार। (जयो० ११/७२) आदानपदं (नपुं०) विवक्षा में जो पद दिया जाए, आगम आदित्यवेगः (पुं०) धरणीतिलक नाम के नगर का राजा,
अध्ययन्त का प्रारम्भिक पद। आदानपदं नाम आत्तद्रव्यनिबन्धनम्। जिसकी रानी सुलक्षणा थी। पत्तनस्य धरणीतिलकम्या(धवला १/७५)
दित्यवेगनरपो विजयाद्धे। (समुः ५/१७) आदानभयं (नपुं०) जो ग्रहण किया जाता है, इसके लिए भय। आदित्यसूक्तं (नपुं०) सूर्यस्तवन। आदित्यस्य सूर्यस्य सूक्तं
आदीयत इत्यादानम् इत्यर्थं चौरादिभ्यो यदुभयं तदादानभयम्। - स्तवनं विपदोपहतप्रकार:। (जयो० १८ आदासादित (वि०) प्राप्त, उपलब्ध, गृहीत। एतद् | आदिदेवः (पुं०) १. आदिब्रह्मा, आदिनाथ, आदिपुरुप,
गुणानुवादादासादितसम्मदेव सा तनया। (जयो०६/७०) | २. जैनधर्म के प्रथम प्रवर्तक ऋषभदेव, जो नाभिराय के आदाय (सं०कृ०) लेकर, ग्रहणकर। (जयो० वृ० १/१९)
पुत्र थे। (जयो० ४/४६) आदिप्रभु, नाभेयज। आदायिन् (वि०) [आ+ दा+णिनि] ग्रहण करने वाला, प्राप्त | आदिदृष्टा (वि०) प्रथम दृष्टा, प्रारंभ उपदेष्टा। (सुद० २/१९) करने वाला।
यदादिदृष्टाः सम दृष्टसारा:। (सुद० २/१९) आदि (वि०) [आ+दा कि] १. प्रारम्भ, (सम्य० ११०) आदिनाथः (पुं०) आदिपुरुष, प्रथम तीर्थकर। प्रथम, प्राथमिक, ०पहला,
आदिपर्वन् (पुं०) आदिखण्ड, प्रथम अंश।
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