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आत्मानुशासनं
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आदरार्ह
आत्मानुशासनं (नपुं०) आचार्य गुणभद्र की रचना, संस्कृत
रचना। आत्मिक (वि०) स्वात्म सम्बंधी, निजात्मक। (जयो० वृ० आत्मिकसुखं (नपुं०) निजात्मानुभूति जन्य सुख। (मुनि० २६) आत्मीय (वि०) स्वकीय, निजात्मक, आत्मिक, अपनी। 'इत्यात्मीयमलोत्कारं च भवतैकान्ते तथा त्यज्यताम्।'
(मुनि १३) आत्मीयमञ्चेदथसन्निधानम्। (भक्ति० २९) आत्मीयगुणं (नपुं०) निजात्मक भाव। (सुद० १२१) आत्मीय-निन्दा (स्त्री०) ०अपनी गर्हा, अपनी निन्दा स्वकीय
गुणों की आलोचना। (सुद० १२४) आत्मीयपदं (नपुं०) निजात्मक पद, स्वकीय चरण। (वीरो०
१/३) सुखञ्जनं संलभते प्रणश्यत्तमस्तयाऽऽत्मीयपदं समस्य।
(वीरो० १/३) आत्मीयभावः (पुं०) स्वकीय भाव, मैत्री भाव। सिंहो
गजेनाखुरथौतुकेन वृकेण चाजो नकुलोऽहिजेन स्म स्नेहमासाद्य वसंति तत्र चात्मीय भावेन परेण सत्ता। (वीरो०
१४/५१) आत्मोपयोगः (पुं०) आत्म उपयोग, निज उपयोग। (जयो०
१/ मुनि०) आत्मैक कविः (पुं०) आत्मध्यानी/रवेरिवात्मैककवेरुदारभूते
स मुदोऽधिकारः। (समु० ६/३४) आत्मोकर्षि (वि०) आत्म विस्तार। (जयो० १/६०) आत्मन
उत्कर्ष आत्मोकर्ष। (धव० ७७३) आत्मोपासित (वि०) आत्मा से उपासित, अपने निजभाव से
आराधित। (मुनि० १) आत्मोपासितयैहिकेषु विषयेष्वाशाधुता
साधुता। (मुनि० २) आत्यंतिक (वि०) [अत्यन्त ठन्] १. निरंतर, अबाध, प्रवाह
युक्त, स्थायी, अनंत, २. मरण विशेष। ३. अत्यधिक,
प्रचुर, सर्वाधिक। ४. सर्वोच्च, सम्पूर्ण, पूर्ण। आत्ययिक (वि०) [अत्यय+ठक्] १. नाशकारी, घातक, विध्वसंक, विनाशक। २. पीडाजन्य, दु:ख युक्त
अशुभकारक, हानिकारक, आत्रिक (वि०) ऐहिक, लौकिक। (जयो२/३९, २/९८) आत्रिकस्थितिः (स्त्री०) अत्र भवा आत्रिकी स्थितिर्ययोस्तौ
लौकिक सौख्यसम्पादकौ स्तः। (जयो० २/१०) आत्रिकेष्ट (वि.) लौकिकेप्सित, लौकिक सफलता। (जयो०
२/३९) आत्रिकेष्टिनिरत (वि०) व्यावहारिक नीति से युक्त, गृहस्था
(जयो० २/११)
आत्रेय (वि.) [अत्रि ढक्] अत्रि का वंशज। आत्रेय (पुं०) आर्यखण्ड का एक देश। आत्रेयिका (स्त्री०) [आत्रेयी+कन्+टाप्] रजस्वला स्त्री। आथर्वण (वि०) [अथर्वन्+अण] अथर्ववेद ज्ञाता, अथर्ववेदी,
अथर्वविद। आथर्वणः (पुं०) अथर्ववेदरध्यायी विप्रा आदंशः (पुं०) [आ+दंश्+घञ्] डंक, घाव. दांत। आदत्त (वि.) अप्रदत्त, बिना दी गई। न चादत्त मधावृत्तिम्।
(समु० ९/५) स हितस्करतां गतः। आदरः (पुं०) [आ+दु+अप्] १. सम्मान, पूजाभाव, २. व्यन्तरदेव।
२. प्रीतिभाव-कोमुदादरपदाति शयायां, प्रेक्षिणी नतु नृणामुदितायाम्। हर्षसम्मान स्थानस्य। (जयो० १०५/६७) नानुयोगसमयेष्विवादरः। (जयो० २/६४) क्षणादुरीरयन्नेवं
करव्यापारमादरात्। (सुद० ७८) आदरणं (नपुं०) ०आदर, सम्मान, सत्कार, ०सेवा पूजा।
(जयो० वृ० १/१६) आदरणविषय (नपुं०) सर्वोत्तम पूजनीय, ०भाव (जयो०
१/१६) आदरणीय (वि०) सम्माननीय, पूजनीय, अहयोग्य।
वासनाभरणौरादरणीयाः सन्तु मूर्तयः किन्तु न हीयान्।
(सुद० ७५) आदरदा (वि०) प्रतिष्ठाप्रदायिनी, सम्मान देने वाली। 'नापि
नाथ दरदाऽऽदरदा।" (जयो० २०/२६) 'आदरं ददातीत्याद
रदा' (जयो० वृ९२०/२६) आदर-भाव-कर्ता (वि०) सम्मान प्रकट करने वाला। प्रत्यादरस्य
भावस्य प्रकटयिता। (जयो० १७/११) आदरवादः (पुं०) नम्रवचन, पूज्यवाद, सम्माननीय वाणी।
साम-दाम-विनयादर-वादैर्धामनाम च वितीर्य तदादैः। (जयो०
आदरशालिनी (वि०) विनयान्वित, नम्रस्वभाविनी। (जयो० ७०
१२/३०) आदरसात् (अव्य०) नम्रतापूर्वक, विनयगत। चक्रिसुतादींश्च
रसाद् राजतुजो भूचरानथाऽऽदरसात्। (जयो० ६/१३) आदरिणी (वि०) सम्मान प्रकट करती हुई, पूज्यभाविनी।
(सुद० १२४) 'सम्प्राहाऽऽदरिणी गुणेषु।' आदरी (वि०) समादरी, आदर योग्य। (सुद० १/५) यदादरी
तच्छिशुको मुदेति। आदरार्ह (वि०) समादर योग्य, पूज्य। (जयो० ५/१०४)
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