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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आत्मानुशासनं १४९ आदरार्ह आत्मानुशासनं (नपुं०) आचार्य गुणभद्र की रचना, संस्कृत रचना। आत्मिक (वि०) स्वात्म सम्बंधी, निजात्मक। (जयो० वृ० आत्मिकसुखं (नपुं०) निजात्मानुभूति जन्य सुख। (मुनि० २६) आत्मीय (वि०) स्वकीय, निजात्मक, आत्मिक, अपनी। 'इत्यात्मीयमलोत्कारं च भवतैकान्ते तथा त्यज्यताम्।' (मुनि १३) आत्मीयमञ्चेदथसन्निधानम्। (भक्ति० २९) आत्मीयगुणं (नपुं०) निजात्मक भाव। (सुद० १२१) आत्मीय-निन्दा (स्त्री०) ०अपनी गर्हा, अपनी निन्दा स्वकीय गुणों की आलोचना। (सुद० १२४) आत्मीयपदं (नपुं०) निजात्मक पद, स्वकीय चरण। (वीरो० १/३) सुखञ्जनं संलभते प्रणश्यत्तमस्तयाऽऽत्मीयपदं समस्य। (वीरो० १/३) आत्मीयभावः (पुं०) स्वकीय भाव, मैत्री भाव। सिंहो गजेनाखुरथौतुकेन वृकेण चाजो नकुलोऽहिजेन स्म स्नेहमासाद्य वसंति तत्र चात्मीय भावेन परेण सत्ता। (वीरो० १४/५१) आत्मोपयोगः (पुं०) आत्म उपयोग, निज उपयोग। (जयो० १/ मुनि०) आत्मैक कविः (पुं०) आत्मध्यानी/रवेरिवात्मैककवेरुदारभूते स मुदोऽधिकारः। (समु० ६/३४) आत्मोकर्षि (वि०) आत्म विस्तार। (जयो० १/६०) आत्मन उत्कर्ष आत्मोकर्ष। (धव० ७७३) आत्मोपासित (वि०) आत्मा से उपासित, अपने निजभाव से आराधित। (मुनि० १) आत्मोपासितयैहिकेषु विषयेष्वाशाधुता साधुता। (मुनि० २) आत्यंतिक (वि०) [अत्यन्त ठन्] १. निरंतर, अबाध, प्रवाह युक्त, स्थायी, अनंत, २. मरण विशेष। ३. अत्यधिक, प्रचुर, सर्वाधिक। ४. सर्वोच्च, सम्पूर्ण, पूर्ण। आत्ययिक (वि०) [अत्यय+ठक्] १. नाशकारी, घातक, विध्वसंक, विनाशक। २. पीडाजन्य, दु:ख युक्त अशुभकारक, हानिकारक, आत्रिक (वि०) ऐहिक, लौकिक। (जयो२/३९, २/९८) आत्रिकस्थितिः (स्त्री०) अत्र भवा आत्रिकी स्थितिर्ययोस्तौ लौकिक सौख्यसम्पादकौ स्तः। (जयो० २/१०) आत्रिकेष्ट (वि.) लौकिकेप्सित, लौकिक सफलता। (जयो० २/३९) आत्रिकेष्टिनिरत (वि०) व्यावहारिक नीति से युक्त, गृहस्था (जयो० २/११) आत्रेय (वि.) [अत्रि ढक्] अत्रि का वंशज। आत्रेय (पुं०) आर्यखण्ड का एक देश। आत्रेयिका (स्त्री०) [आत्रेयी+कन्+टाप्] रजस्वला स्त्री। आथर्वण (वि०) [अथर्वन्+अण] अथर्ववेद ज्ञाता, अथर्ववेदी, अथर्वविद। आथर्वणः (पुं०) अथर्ववेदरध्यायी विप्रा आदंशः (पुं०) [आ+दंश्+घञ्] डंक, घाव. दांत। आदत्त (वि.) अप्रदत्त, बिना दी गई। न चादत्त मधावृत्तिम्। (समु० ९/५) स हितस्करतां गतः। आदरः (पुं०) [आ+दु+अप्] १. सम्मान, पूजाभाव, २. व्यन्तरदेव। २. प्रीतिभाव-कोमुदादरपदाति शयायां, प्रेक्षिणी नतु नृणामुदितायाम्। हर्षसम्मान स्थानस्य। (जयो० १०५/६७) नानुयोगसमयेष्विवादरः। (जयो० २/६४) क्षणादुरीरयन्नेवं करव्यापारमादरात्। (सुद० ७८) आदरणं (नपुं०) ०आदर, सम्मान, सत्कार, ०सेवा पूजा। (जयो० वृ० १/१६) आदरणविषय (नपुं०) सर्वोत्तम पूजनीय, ०भाव (जयो० १/१६) आदरणीय (वि०) सम्माननीय, पूजनीय, अहयोग्य। वासनाभरणौरादरणीयाः सन्तु मूर्तयः किन्तु न हीयान्। (सुद० ७५) आदरदा (वि०) प्रतिष्ठाप्रदायिनी, सम्मान देने वाली। 'नापि नाथ दरदाऽऽदरदा।" (जयो० २०/२६) 'आदरं ददातीत्याद रदा' (जयो० वृ९२०/२६) आदर-भाव-कर्ता (वि०) सम्मान प्रकट करने वाला। प्रत्यादरस्य भावस्य प्रकटयिता। (जयो० १७/११) आदरवादः (पुं०) नम्रवचन, पूज्यवाद, सम्माननीय वाणी। साम-दाम-विनयादर-वादैर्धामनाम च वितीर्य तदादैः। (जयो० आदरशालिनी (वि०) विनयान्वित, नम्रस्वभाविनी। (जयो० ७० १२/३०) आदरसात् (अव्य०) नम्रतापूर्वक, विनयगत। चक्रिसुतादींश्च रसाद् राजतुजो भूचरानथाऽऽदरसात्। (जयो० ६/१३) आदरिणी (वि०) सम्मान प्रकट करती हुई, पूज्यभाविनी। (सुद० १२४) 'सम्प्राहाऽऽदरिणी गुणेषु।' आदरी (वि०) समादरी, आदर योग्य। (सुद० १/५) यदादरी तच्छिशुको मुदेति। आदरार्ह (वि०) समादर योग्य, पूज्य। (जयो० ५/१०४) For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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