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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आत्म-वपु १४८ आत्मापराध: आत्म-वपु (नपुं०) अपना शरीर, स्वदेह। आत्मनो वपुः शरीरं। । (जयो० १३/७३) आत्मवश (वि०) जितेन्द्रिय, इन्द्रियजयी। (जयो० २/२३) जगाम मोदेन युतो जिनस्य महालयं वन्दितुमात्म-वश्यः। आत्मवादः (पुं०) आत्मकथन, चेतन विचार। स्वा-स्वरूप विवेचना आत्मविकासः (पुं०) अपना विकास, निज कल्याण। धर्मेऽथात्मविकासे नैकस्यैवास्ति नियतमधिकारः। योऽनुष्ठातुं यतते सम्भाल्यतमस्तु स उदारः। (वीरो० १७/४०) आत्मविचारकेन्द्र (पुं०) अपने विचारों का केन्द्र 'आत्मा भवत्यात्म विचारकेन्द्रः' (वीरो० १८/५) आत्म-विनाश (वि०) अपना अहित। कूपे निपत्य तेनात्मविनाशः। (दयो० ४७) आत्मविदः (वि०) आत्मचिंतक। आत्म-वेदी (वि०) आत्मवेत्ता, निज स्वरूप ज्ञाता। (सम्य० १०७/६९) प्रदोषतोऽस्मात् समुपैति खेदमिहायमस्यास्ति न चात्मवेदः। (जयो० २६/९६) आत्मवेशित (वि०) आत्मजयी। ०आत्माधीन। आत्म-संयमी (वि०) आत्माधीन, आत्मजयी। साम्प्रतमात्मसंयमी (समु० ४/२) आत्म-सज्जातिक (वि०) तन्मयता से युक्त। आत्मनः सज्जातिकयोस्तन्मनसोऽपि (जयो० २४/७६) आत्म-सदन (नपुं०) अपना घर, निज गृह। अज्ञता हि. जगतो विशोधने स्यादनात्म-सदन-बोधने। (जयो० २/४५) आत्मनः सदनं आत्मसदनं। आत्म-समय (पुं०) आत्म भाव, आत्म स्वभाव, निजात्मसार। आत्मसमयानुसारः (पुं०) देश कालानुसार। इत्थमात्म समयानुसारतः। (जयो० २/१२२) आत्मसाक्षिन् (वि०) निज साक्षात्, आत्म प्रतीति। (वीरो० ४/१४) आत्मसात् (अव्य०) [आत्मन् साति] अपना जिन स्वरूप। झेलना। (वीरो० २२/२९) अपना बनाना, अनुकूल करना, आत्मधीन। आत्मसादुपनयन्निह भूपान्। (जयो० ५/१२) त्वं कृतावान् भूपमात्मसात्। (सुद० १३४) तूने राजा को अपने अनुकूल किया। दौरात्म्यमात्मसात् कुर्वन्नाह। (जयो० आत्मसुख (नपुं०) निजात्म सुख, स्व सुख, सहज सुख, इष्ट सुख। धन्यः स एवात्मसुखैकवस्तु। (सुद० ११७) आत्मसुताः (पुं०) निजपुत्र। (वीरो० १७/३९) आत्मस्फूर्तिः (स्त्री०) निज शक्ति, आत्मबल। जिनमृर्तिमात्मस्फूर्ति (सुद० ५/१) आत्मशक्तिः (स्त्री०) आत्मोत्कर्ष, निजबल, स्वात्मोत्कर्ष। आत्मशक्त्या खलु मूर्तया तम्। (जयो० १/७०) यां वीक्ष्य वैनतेयस्य सर्पस्येव परस्य च! क्रूरता दूरतामञ्चेच्छूरता शक्तिरात्मनः।। (वीरो० १०/३२) आत्महित (नपुं०) आत्म-कल्याण, आत्म रक्षा। (सम्य० ४२/२३) आत्मनो हितमात्महितम्। (जयो० २/४६) आत्महित-भावना (स्त्री०) सन्मार्ग भावना, अपने कल्याण की इच्छा । (जयो० २/४८) आत्मश्री: (स्त्री०) आत्मशोभा, आत्म लक्ष्मी। (सुद० १/२३) विसर्गमात्मश्रियः ईहमानः। आत्मार्थ (वि०) आत्म प्रयोजन। (दयो० ७) आत्माधिपः (पुं०) राजन्, राजा। (जयो० १८/३६) आत्माधीन (वि०) अपने आधीन, स्वाधीन। (मुनि २७) आत्माङ्गीकरणं (नपुं०) अपना स्वीकार करना, अपना बनाना। (जयो० ६/१२३) आत्मनोऽङ्गीकरणस्याक्षराणाम्। (जयो० वृ० ६/१२३) आत्मानुभव (वि०) आत्म अनुभूति जन्य। आत्मानं पश्यतोऽपि तस्य नान्यः कोऽपि वभूव दृशि यस्य। आत्मवत् सर्वभूतेषु य पश्यति स पण्डितः 'इति' (जयो० २२/२६) आत्मानं पश्यतः स्वात्मानुभवं कुर्वतः। (जयो० वृ० २२/२६) आत्मानुसन्धानं (नपुं०) अपनी परितृप्त चित्तवृत्तिा (जयोल वृ० ६/९०) ०आत्म परिचय, आत्मावलोकन।। आत्मादरयुत (वि०) आत्म सम्मान सहित। आत्मनि स्वरूपे आदरयुतेन तल्लीनेन। (जयो० वृ० २८/२६) आत् अकारात्समारभ्य सकारे आदरयुतेन सम्पूर्णानामक्षराणां समक्षराणां क्षणः। (जयो० वृ० २८/२६) आत्मानुभवकारिणी (वि०) आत्म बुद्धिशाली। (जयो० २७/४९) आत्मानुभूति (स्त्री०) आत्म अनुभव। आत्मानुरूप (नपुं०) आत्मा के अनुरूप, आत्मा अनुकूलता, अपने लिए अभीष्ट। (जयो० वृ० ३/६६) आत्मापराधः (पुं०) अपने अपराध, स्वयं के अवगुण। "स्वेनानु ष्ठितस्यापराधस्य दुष्कर्मण:।" (जयो० १५/९) आत्म-साधन (नपुं०) आत्म ध्यान, आत्म तल्लीनता। (सुद० ११४) ददर्श योगीश्वरमात्मसाधनम्। आत्मसारिन् (वि०) आत्म रहस्य वाला। For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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