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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आताप: १४६ आत्मत्राणं आताप: (पुं०) [आतप्+घञ्] १. सन्ताप, दुःख, कष्ट, पीडित। (भक्ति० २४) २. गर्मी, उष्णता, तपन। आतापिन् (वि०) [आ+तप्। णिनि] १. संतप्त किया गया। (पुं०) पक्षी विशेष, गृद्ध, चील। आतिथेय (वि०) [अतिथिषु साधुः-ढञ् अतिथये इदं ढक् वा] अतिथियों के अनुकूल, अतिथि सत्कार। 'आतिथेयेन विलसन्ती करुणा येषां ने तेषामातिथेय। ' (जयो० ५/२९) आतिथ्य (वि०) [अतिथि ष्य] सत्कारशील, अतिथि सत्कार। ___ 'आतिथ्ये वस्त्रुटिरेव तु न:।' (जयो० १२/१३६) आतिथ्यविधिः (स्त्री०) अतिथि सत्कार, सत्कारशील विधि। तासां किलाऽऽतिथ्यविधौ नरेश। (वीरो०५/२) आतिथ्यविधानं (नपुं०) अतिथि सत्कार, स्वागताचरण। पति यतीनां समुतिं प्रतीक्ष्य तदा तदातिथ्य-विधानदीक्षम्। (जयो० १४८०) आतिथ्यरूपः (पुं०) अतिथि सत्कार। (दयो० २४) आतिथ्यसत्कार: (पुं०) स्वागताचरण, अतिथि सेवा, अतिथि सम्मान। सुदर्शनपिताऽप्यत्राऽऽतिथ्यसत्कार तत्परः। (सुद० ३/४४) आतिदेशिक (वि०) [अतिदेश:+ठक्] उपदेश से सम्बन्धित, अतिदेश से सम्बन्धित। आतिरेक्यं (नपुं०) अधिकता, विशालता, अत्यधिक, बृहत्तर। आतिशय्यं (नपुं०) [अतिशय+ष्यञ्] अतिशयता युक्त, विशालतम, बहुत्व परिणाम। आतुः (स्त्री०) बेड़ा, वांसादि का बनाया गया घेरा, बाँड। आतुलित (वि०) आगे-पीछे होने वाली। (वीरो० १९/१९) आतुरः (वि०) [ईषदर्थ आ+ अत्+ उरच्] १. उत्कण्ठापूर्ण-पातुं नृपातुरतया तु न यातु कश्चिद्। (जयो० २७/६४) २. कष्टानुभवी, कष्ट को अनुभव करने वाला-'तनये मन एतदातुरं तव।' (जयो० १३/९) ३. घायल, ०पीड़ित, ०दु:खी, त्रस्त, प्रभावित। ४. उत्सुक, तत्पर, ०सन्नद्ध, क्रियाशील। आतुरः (पुं०) रोगी, व्याधिग्रस्त मनुष्य। आतोद्यं (नपुं०) यन्त्र विशेष, वाद्य यन्त्र। (वीरो० २/३३) आतोद्यनाद (पुं०) भेरी शब्द। वाद्यं वादित्रमातोद्यं काहलादि निरुच्यते इति विश्व० आत्त (भू० क० कृ०) [आ+दा+क्त] ०समागत, प्राप्त, ०लब्ध, उपार्जित, ०आया हुआ, प्रतिगृहीत, ०स्वीकृत, ०अंगीकृत्। जगाम मैरेयभृते त्वमत्र आघ्रातुमात्तप्रतिमेऽलिरत्र। । (जयो० १६/४८) आत्तानां समागतानामलीनाम्। (वीरो० वृ०२/१२) आत्त-कल्मष (वि०) मलिनता युक्त, पाप जन्य। तुरगा अपि ते रजस्वलावनि संपर्कत आत्तकल्मषा:। (जयो० २१/६५) आत्तनयी (वि०) गृहीत, लिया गया, समागता। स्वयमिति यावदुपेत्य महीश: मरणार्थमस्यात्तनयी सः। (सुद० १०८) आत्तमूर्ति (स्त्री०) साक्षात् प्रतिमा। (सुद० २/२४) आत्तवरद (वि०) लाना, प्राप्त होना। आत्ता वरदा कन्या येन सा। (जयो० वृ० ३/११६) आत्मक (वि०) [आत्मन् कन्] ०स्वाभाविक, आत्मजन्य, स्वभाव स्वरूप। आत्म-कर्त्तव्यः (पुं०) अपना कार्य। (दयो० ३२) आत्म-कल्याण (नपुं०) आत्म कल्याण, अपना हित, निज रक्षा। (जयो० वृ० २/५०) निजहित। आत्मकाम (वि०) परमात्मा इच्छुक, आत्म इच्छुक। आत्मकारिणी (वि०) आदरकी, सम्मानदात्री। (जयो० ३/११) आत्मकृत् (वि०) निजकृत, स्वकृत। आत्मखेदी (वि०) दु:खी, मन से दुःखी। (वीरो० १६/८) आत्मगत (वि०) मनोगत, अपने द्वारा उत्पन्न। आत्मगुणी (वि०) स्वाभाविक गुणी, सहज स्वभावी। (हित० सं०पृ० १) विशुद्ध स्वभावी, आत्म परिणामी आत्म-गेहं (नपुं०) मनः कुटीर। ममात्मनो गेहमेतत् मदीयं मन: कुटीरकं मनोरमत्वम्। (जयो० १/१०४) आत्मगोत्रं (नपुं०) स्वकुल, निजकुल। (जयो० १/१३३) आत्मज्ञ (वि०) आत्मज्ञानी, तत्त्वज्ञ, स्व स्वरूप ज्ञाता। आत्मज्ञान (नपुं०) स्वज्ञान, निजज्ञान। आत्म-ज्ञानी (वि०) स्वभाव जानकार। आत्मचिन्तनं (नपुं०) स्वकीय ध्यान, आत्मध्यान। (जयो० २२।८६) आत्मज् (पुं०) पुत्र, तनय, सुत। दक्षतरावंचरात्मजास्तु सती। (जयो० ६/६) आत्मजम्मन् (पुं०) पुत्र, तनय, सुत। आत्मतम (वि०) स्वकीय ज्ञान (भक्ति० ३) ०आत्म-बोध। आत्म-तत्त्वं (वि०) स्वभावलीनता, अपनी समाधि (जयो० १/१) आत्म-त्यागः (नपुं०) निज-कल्याण त्याग, स्वार्थ त्याग। आत्मत्यागिन् (वि०) आत्मघाती, निज स्वरूप विध्वंसी। आत्मत्राणं (नपुं०) आत्मरक्षा, स्वरक्षा, अपना हित। For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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