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आज्ञा
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आतविनाशिन्
आज्ञा (स्त्री०) [आ+ज्ञा+अङ्टाप्] (सुद० ९२) आदेश,
अनुमति, अनुज्ञा, शासन। (जयो० ३/७३) तदधीशाज्ञया
ऽऽयातः। (जयो०३/३) आज्ञाकर (वि०) आज्ञा पालक, आज्ञा मानने वाला। आज्ञाकारिन् (वि०) आज्ञा मानने वाला, अनुचर। (जयो० वृ०
४/१०) आज्ञापनं (नपुं०) [आ+ज्ञा+णिच् ल्युट] शासन, अनुमति,
आदेश, इङ्गित, संकेत। (जयो० ५/३८) आज्ञाकारिन् (वि०) आज्ञा मानने वाला, अनुशासन युक्त
(वीरो० १/३८) आज्ञात (वि०) अनुभृत, अनुभव जन्या 'नाज्ञातमाज्ञातरणोत्थशर्म।'
(जयो० ८/१३) आज्ञारुचिः (स्त्री०) सर्वज्ञ के प्रति श्रद्धा। आज्ञाविचयः (नपुं०) आगमानुसार चिन्तन, आगमानुकूल
विचार, धर्मध्यान का एक भेद, निजात्मा में लीन। जिनाभ्यनुज्ञातनुभागपाय, विपाकसंस्थानचयाय धर्म्यम्। (समु०८/३९) 'श्रद्धानादर्थावरधारणमाज्ञाविचयः।' (स० सि० ९/३६) 'सर्वज्ञाज्ञाप्रकाशनार्थत्वादाज्ञाविचयः।' (भ०आ०
१७०८) आज्ञानुसारिणी (वि०) १. आज्ञा के अनुसार चलने वाली
अनुचरी, आज्ञासीला। (दयो० ११२) २. छन्दोनुगामिनी। (जयो० वृ० २७/२) छन्दोऽनुग! विरुद्धवृत्तौरुषमेति लोकश्छन्दोऽनुगे तर्षनिदर्शनौकः। आच्छादन को अवगुण्ठन भी कहते हैं। अवगुण्ठनमाच्छादनम् (जयो० १० १५/५०) तत्र तल्पे नभः कल्पे घनाच्छादनमन्तरा। (सुद० ७८) आञ्चनं (नपुं०) [आ+अञ्च् ल्युट] सींग, शस्त्र विशेष। आञ्छ (अक०) लम्बा करना, विस्तार करना, बढ़ाना। आञ्छनं (नपुं०) [आञ्छ+ ल्युट] ठीक बैठना, एक सा होना। आञ्जनं (पुं०) अञ्जन। आञ्जनः (पुं०) मारुति. हनुमान। आञ्जनी (स्त्री०) अञ्जन, मरहम, सुरमा। आञ्जनेयः (पुं०) मारुति, हनुमान, पवनपुत्र। आटविकः [अटव्यां चरति भवो वा] वनवासी। आटिः (स्त्री०) पक्षी विशेष। आटीकनं (नपुं०) [आटीक्ल्यु ट्] बछड़े की उछल कूद। आटीकरः (पुं०) [आ+कृ+अप्] सांड। आटोपः (पुं०) [आ+तुप्+घञ्] अहंकार, अभिमान, गर्व। आडम्बरः (पुं०) [आ+डम्ब+अरन्] दिखावा, परिग्रह, सम्पत्ति
आम्बरिन् (पुं०) [आ+डम्बर+इनि] संपत्ति वाला, अभिमानी। आढकः (पुं०) [आ+ ढौक घञ्] माप विशेष, जिससे धान्य
मापा जाए। आढ्य (वि०) १. सम्पन्न, पूर्ण, २. धनी। आढ्यङ्ककरण (वि०) सम्पन्नता युक्त। आढ्यता (वि०) परिपूर्णता, सम्पन्नता। भयाढ्यतामम्युपगम्य
शिष्टाः। (जयो० १७/१) सर्वे युवानो रहसि प्रविष्टाः। आणः (पुं०) शब्द, स्वर, आवाज। सुष्ठ पस्य पवनस्याण:
शब्दो यत्र। (जयो० वृ० २७/७) आणक (वि०) १. शब्द युक्त, आवाज रहित। २. नीच
अधम। आणव (वि०) अत्यन्त छोटा। आणि: (पुं०स्त्री०) [अण+इणि] धुरे की कील, अक्षकील।
१. घुटने के ऊपर का भाग, २. सीमा, परिधि। २. तलवार
की धार। आण्ड (वि०) [अण्डे-भव:-अण] अण्डे से पैदा होने वाला। आण्डीर (वि०) [आण्डमस्ति अस्य--ईरच्] १. वयस्क,
युवावस्था वाला। २. अण्डेधारी। आतः (पुं०) आघात, घात, हानि। (सुद० ४/२६) काष्ठसङ्घाततो
मृत्यु मन्त्रस्मरणपूर्वकम्। आतङ्कः (पुं०) [आ+तङ्क घञ्] ०रोग, ०व्याधि, ०पीड़ा,
०कष्ट, ०व्यथा, वेदना, भय, त्रास, दु:ख
जन्मातङ्कजरादित: स। (जयो० २५/८७) आतञ्चनं (आ+ तञ्च+ ल्युट्) १. गाढ़ा दूध, छांछ। २. वेग गति। आतत (वि०) [आ+तन्+क्त] विस्तृत, फैला हुआ, प्रसरित। आततायिन् (वि०) १. साहसी, बलिष्ट, २. अत्याचारी, आतंक
फैलाने वाला हत्यारा। 'आततेन विस्तीर्णेन शस्त्रादिना
अयितुं शीलमस्य' आतपः (पुं०) १. पर्मी, उष्णता। २. प्रचण्ड, प्रकाश। 'न पूज्यो
महात्माऽतपदेकतान।' (सुद० ११८) आतपत्रं (नपुं०) छाता, छत्र। (जयो० १६/१५) आतपनं (नपुं०) गर्मी, प्रकाश। आतपलङ्घनं (नपुं०) लू में रहना। आतप-वारणं (नपुं०) छत्र, छाता। त्रितयं चातपवारणोक्तमेतत्।
(जयो० १२/६) आतप-विनाशि (वि०) गर्मी नाशक। आतविनाशिन् (वि०) संताप विनाशिनी, दु:ख विध्वंसिनी।
(सुद०) अन्धकार शील प्रकाश से रहित।
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