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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचार्यः आचार्य: (पुं० ) [ आ + चर्+ण्यत्] १. संघ नायक, अध्यात्म के पद पर प्रतिष्ठित गुरु (जयो० वृ० १/२) २. पञ्च परमेष्ठियों में तृतीय स्थान। ३. पञ्चाचार से पूर्ण पंचेन्द्रिय दान्त, धीर, वीर गुणों में गम्भीर, नाना गुण से युक्त । आचरन्ति तस्माद् व्रतानीत्याचार्य: । (स० सि० ९ / २२४ ) पृथक्तये सारतयाभ्युदारं चरन्ति चाचारमिषुप्रकारम् । आचारयन्तोऽत्र यतींश्च शेषान् सङ्गस्य ते सन्तु मुदे गणेशाः।। (भक्ति० १० ) आचार्यता (वि०) आचार्यपना, आचार्यगुणयुक्त, आचार्य के गुणों वाला वीरो० १४/१३) आचार्यतां बुद्धिधरेषु याताः । (वीरो० १४/१३) आचार्यपद (पुं०) आचार्य का पद (वोरो० १७/२०) आचार्यभक्तिः (स्त्री०) आचार्य की भक्ति, भावविशुद्धियुक्त भक्ति (भक्ति १०) 'आचार्येषु भावविशुद्धियुक्तनुराग आचार्यभक्ति (स०] सि० ६/२४ १० वा० ६/२४) आचार्यवर्णः (पुं०) आचार्य प्रशंसा आचलित (वि०) उत्सुक, चलायमान। वाचमाचलितचित्त इवारात्। (जयो० ४/६ ) आसमन्ताच्चलि (जयो० वृ० ४/६ ) आचलित-चित्तं (नपुं०) चंचल चित्त, विक्षिप्त उत्साह युक्त मना (जयो० ४/६) आसमन्ताच्चलितं वित्तं यस्य स आचलितचित्तो' (जयो० पृ० ४/६ ) आचीर्णः (पुं०) आहार दोष। (मूला०वृ० ६/२०) आचलेक्य (वि०) निर्ग्रन्थपना, दिगम्बर रूपता (जयो० पृ० १/२२) 4 www.kobatirth.org 2 आचेलक्य (वि०) दिगम्बरत्व निर्ग्रन्थता सकलपरिग्रहत्यागः सकलपरिग्रहत्याग आचेलक्यम्। (भ० आ० टी० ४२१ ) आच्छपाषाण: (पुं०) स्फटिक मणि, स्फटिक पत्थर (जयो० ० १२ / ११६) , आच्छादः (पुं०) [ आ+छद्+ णिच्+घञ्] वस्त्र, कपड़ा, का परिधान। पहनने आच्छादयत् (भू०) संवृतचकार, ढंक लिया आवृत किया। (जयो० ४/२९) आच्छादयत्तावदुपेत्य वक्रम्। आच्छादनं (नपुं० ) [ आ+छद् + णिच् + ल्युट् ] आंख-मिचौली, छिपाना, ढकना, आवृत्त करना। तमोवगुश्ठातिमता (जयो० १५/५०) । आच्छादयन् (सं०कु० ) ढंककर आवृत्तकर वस्त्रेणाऽऽच्छाद्य निर्माय (सुद० ९४) १४४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आज्यं + + आच्छुरित (वि०) [ आर्क्त] मिला गया. खुरचा गया, खुजलाया गया। आच्छेद (पं०) आदि काटना, छंदना। आच्छेद्य (वि०) भयभीत करके दान देना संत का दोष परकीयं यद्दीयते तदाच्छेद्यम्। (भ० आ० टी० २३०) आच्छोदनं (नपुं०) [आ-छिंद्-ल्युट् शिकार करना, अनुगमन + करना। आजके (नपुं०) बकरों का झुण्ड । आजगवं (नपुं०) शिव धनुष आजननं (नपुं०) ( आजन् ल्युट् ] प्रसिद्धकुल, ख्यानकुलः। आजन्म (वि०) उत्पत्तिकालादद्यावधि उत्पत्ति से अब तक। (जयो० १३/२२) आजानुबाहु (पुं०) घुटने तक बाहु चौरो० ३/११) लम्बी भुजाएं । आजि: (स्त्री०) युद्धभूमि, रणक्षेत्र, रणस्थल, समरस्थान, युद्धस्थान वाजिः प्रतता सतीके (जयो० ८३७) आजिपु तत्करवाल (जयो० ६/८०) आजिए / रणभूमिपु । आजिर्युद्ध (पुं०) रणभूमि (जयो० १ आजीव: (पुं० ) [ आ+जीव्+घञ्] १. आजीविका, वृत्ति, व्यापार, २. आजीव नामक दोष जाति, कुल गण, कर्म और शिल्प इस प्रकार पांच आजीव हैं। आजीवकुशील (पुं०) अपनी जाति को प्रकट कर मिश्राचर्या करना। (भ० आ० टी० १९५०) आजीवन (नपुं०) आजीविका व्यापार व्यवसाय वृत्ति। आजीवनं यन्निगदाभि नाम तदङ्गभृज्जीवननाशधाम (दयो० ३५) आजीवनदायिनी (वि०) प्राणप्रदा, जीवनदायक, आजीविका प्रदायक। For Private and Personal Use Only आजीविका (स्त्री०) आय, व्यापार वृत्ति कला बहत्तर पुरुष की उनमें दो सरदार । प्रथम जीव की जीविका, दुजो जीव उद्धार ।। आजीविका (स्त्री०) वृत्ति, व्यापार (द०३५) आजुहाव (भू० ) मन्त्रयतिस्म आमंत्रित किया. प्रकट किया। (जयो० २२/६) नवधान्यस्य मुदं सौभाग्यमाजुहाव सहजेन हि राज्ञः ।। आजू (स्त्री०) व्यर्थ, बेकार, परिश्रम रहित । आज्यं (नपुं०) घृत पात्रस्थितमाज्यं घृतम् (जयो० १२/११७) यदमत्रगतं बुभुक्षराज्यं ।
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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