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आघर्षः
१४३
आचारिक
आघर्षः (पुं०) [आ। घृष्। घञ्] ०मर्दन, मालिश. उपटन,
संमार्जन, प्रमार्जन। आघाट: (पुं०) [आ हन्। घञ्] सीमा. परिधि, परिकर, परिषद। आघात: (पुं०) आ+ हन्+घञ्] प्रहार, चोट, मारना, घायल
करना, दु:ख पहुंचना। आघार: (पुं०) [आ++घञ्] सिञ्चन, आद्रीकरण। आघूर्णनं (नपुं०) [आ+ घूर्ण+ल्युट] लोटना, घूमना,
परिभ्रमण करना, ०परिवर्तन करना, उछालना। आघोषः (पुं०) [आ+ घुष्+घञ्] आह्वानन, आहृत, बुलाना। आघोषणं (नपुं०) उद्घोषणा, हिंढोरा, शब्द करना, संकेत
करना। आघ्राणं (नपुं०) [आघ्रा+ ल्युट्] सूंघना, सुगंध लेना। २.
तृप्ति, संतोष। आख्य (वि०) कथित, प्रतिपादित। (सम्य० १०२) आङ्गणं (नपुं०) आंगन, गृह का खुला चौक। क्षणं
संशोच्याऽऽङ्गणतो बहिवर्जत्। आङथ्री (स्त्री०) चरण (जयो० वृ० १/५) (दयो० पृ० १६७) आङ्गारं (नपुं०) [आङ्गाराणां समूहः-अण] अंगारों का समूह। आङ्गिक (वि०) शारीरिक, कायिक, शरीर सम्बन्धी। आङ्गिरसः (पुं०) [अंगिरस्। अण] बृहस्पति। आङ्गोपाङ्ग (पुं०) अङ्ग एवं उपाङ्ग। यावत्तावदेवाङ्गोपाङ्गानि
तानयित्वा। (दयो० पृ० ९५) आचक्षुस् (पुं०) [आ+ चक्षु+ उणि वा] प्रज्ञा पुरुष, ज्ञानी
पुरुष। आचमः (पुं०) [आ+चम्। घञ्] कुल्ला करना, हथेली में
जल लेकर पान करना, आचमन करना। आचमनं (नपुं०) कुल्ला करना, हथेली में जल लेकर पान
करना। आचमनकं (नपुं०) पीक दान, थूकदान। आचारभृष्ट (वि०) आचरण/संयम से पतित। आचयः (पुं०) [आ+चि+अच्] इकट्ठा करना, बीनना, एकत्रित
करना। आचर (अक०) आचरण करना, अभ्यास करना, पालना।
(जयो० २।८, २/७०) (वीरो० ५/७) स्त्रीरूपं न विलोकयेत्र
च तथा संलापमेवाचरेत्। (मुनि० ३) आचरणं (नपुं०) अभ्यास करना, अनुकरण करना, २. चाल
चलन, व्यवहार, अनुष्ठान। (जयो० वृ० १/१३) आवश्यक कर्त्तव्य, मर्यादा, सीमा। चारित्रमिन्द्रियनिरोधादिलक्षणम्।
(जयो० पृ० १०/८४) सन्निवेद्य च कुलकरैः कुलान्येतदाचरणमिङ्गितं बलात्। (जयो० २१८) अधीत- बोधाचरण प्रचारैः। (जयो० १/१३) आचरणमनुष्ठानम्। (जयो० पृ०
१/१३) आचरणशास्त्रं (नपुं०) आचारशास्त्र, इसे आचार्य ज्ञानसागर
ने वृत्तशास्त्र भी कहा है। (वीरो० १/२६) आचरित (वि०) १. आचरण किया गया. २. आचरित दोष,
वसतिका, उद्गम दोष। तच्च-कुट्टी-कटकादिकं दूर
देशादानीतमाचरितम्। (भ० आ० टी० २३०) आचान्त (वि०) [आ+चम्+क्त] आचमन के योग्य। आचामः (पुं०) [आ+चम्+घब] आचमन, कुल्ला । आचारः (पुं०) १. व्यवहार, चाल-चलन, प्रथा, परम्परा।
आचारव्यवहारवतो-(जयो० वृ० १८/१६) आचारे व्यवहारे च चुल्लावक्षः समिष्यते इति विश्वनोचनः।। २. आचारांग-आगम आचरणमाचारः, आर्चयत इति ३.आचार:। आचार-गुण विशेष के लिए प्रयुक्त-(सम्य० ९८) चरन्ति चाचारमिषुप्रकारम्। (भक्ति पृ० १६) आचारे चर्याविधानं शुद्धयष्टक-पञ्चसमिति- त्रिगुप्तिविकल्पं कथ्यते। (धव० ९/२७) आचरन्ति समन्ततोऽनुतिष्ठन्ति मोक्षमार्गमाराधयन्ति अस्मिन्नने नेति वा आचार:।
(गो०जीव०३५६) आचारः (पुं०) मुरब्वा, संधान, आमादिक अचार। (हित०४६) आचारगुणः (पुं०) सदाचार गुण, व्यवहार गुण। आचारगृहं (नपुं०) सद्व्यवहार गृह, आश्रम, ०उपाश्रय। आचरणं (नपुं०) आचरण। (सम्य० १५५) योग्य चरण,
समीचीन व्यवाहार अचारपथः (पुं०) आचारमार्ग,)आनुपूर्वी मार्ग। आचारभावः (पुं०) आचरण परिणाम, अनुष्ठान भाव। आचमनक्रिया (स्त्री०) चलने की क्रिया। (वीरो० २२/१६) आचारमार्गः (पुं०) व्यवहारमार्ग। आचारवर (वि०) आचरण में श्रेष्ठ, आचरण को धारण
करने वाले। इत्युक्तामाचारवरं दधानः। (सुद० ११८) आचारवान् (वि०) आचरण करने, कराने वाला। आचारविनयः (पुं०) समाचारी का गुण, संयम स्थान का
विशेष गुण, ० श्रमण का विशेष गुण। आचाराङ्गः (पुं०) आचाराङ्ग आगम, प्रथम श्रुत, प्रथम अङ्ग
ग्रन्थ। आचारिक (वि०) [आचार+ठक्] नियम पालक।
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