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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आकाश- ईश: २. आकाश तत्त्व विशेष-वैशेषिक दृष्टि । ३. स्थान, जगह, अवकाश-जैनदृष्टि । ४. ओगाहन, अवगाहन जैन दृष्टि नभोऽवकाशाय किलाखिलेभ्यः (वीरो० १९/३८) अवगाहलक्षणमाकशम्। (पंचा० टी० ३) आकाशस्य अवकाशदानलक्षणमेव विशेषगुण:। (निय० वृ० १/३०) आकाशस्यावगाह: । (त० ०५/१८) सम्पूर्ण पदार्थों का जगह देना (त०] वृ० पू० w ७७) आकाश- ईशः (पुं०) इन्द्र, शक्र । आकाश कक्षा (स्त्री०) क्षितिज । www.kobatirth.org आकाशकल्प: (पुं०) ब्रह्म। आकाशग: (पुं०) पक्षी, नभचर जीव । आकाश गंगा (स्त्री० ) ०स्वर्गगंगा, ०स्वर्णनदी, सुरगंगा देवगङ्गत। (जयो० कृ० ३/१०४) आकाशगता (स्त्री०) आकाशगामिनी विद्या, ऋद्धि विशेष, जिसमें आकाश मार्ग को प्राप्त किया जाता है। आकाश गमनं (नपुं०) आकाशगामिनी विद्या। आकाश में गमन के लिए णमो आगासगामिणं मंत्र का जाप (जयो० वृ० १९/१०) आकाशगतेन्दु (स्त्री०) आकाश को प्राप्त चन्द्र । (सुद० १११ ) आकाशगामिनी (स्त्री०) नभोगा, आकाशगमनशील नभसि गच्छन्तीति न भोगाः आकाशगामिनी देवविद्याधराः । (भक्ति पृ० २५) आकाशगामी (वि०) आकाश में गमन करने वाले विद्याधर, गगनाञ्च । (जयो० ६/७) > आकाशगृहं (नपुं०) विहाय सदन, गगनगृह (जयो० १५/३०) आकाशचमस: (पुं०) चन्द्र, शशि, चन्द्रमा । आकाशचारणं (नपुं०) भूमि के ऊपर चार अंगुल ऊपर चलने वाली शक्ति प्राणिघात विना पादक्षेप रूप शक्ति | आकाश जननिन् (पुं०) गवाक्ष, झरोखा, छोटी खिड़की। आकशतति (स्वी०) ० आकाश पंक्ति, गगनसता (समु०३ / ११) आकाशदेश: (पुं०) आकाश प्रदेश, नभदेश। (जयो० १/२३) आकाशभाषित (वि०) उच्चासन से कथित । आकाशमंडल (नपुं०) गगन मण्डल, खगोल । आकाशयानं (नपुं०) हवाई यान, हवाई जहाज। आकाशरक्षिन् (वि०) गगन रक्षक, किले की रक्षा करने वाली दीवार | आकाशवचनं (नपुं०) आकाशवाणी। १३९ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकुलक्षणं आकाशवाणी (स्त्री०) गगन शब्द । आकाश-व्यायिनी (स्त्री०) व्योमसर्पिणी (जयो० वृ० ५/५७) आकाशातिपाती (स्त्री०) आकाश गमन की विद्या । आकाशास्तिकाय: (पुं०) आकाश प्रदेश, छह द्रव्यों में पंचम आकाशास्तिकाय द्रव्य । आकिञ्चनं (नपुं० ) [ आकिञ्चन+अण्] १. निराकुल, निर्द्वन्द्व रहित, संक्लेश रहित (जयो० २८/३९) त्यागयुक्त, परिग्रहमुक्त | 'आकिञ्चनता सकलग्रन्थत्यागः (भ० आ० टी० ४६) २. निर्धन, धन हीना आकिञ्चन्यं (नपुं०) ० परिग्रह रहित, ०निराकुल, ० निर्द्वन्दरहित. ०संक्लेशरहित जन्य निर्मन्थवृत्ति आकिञ्चन्यविदास्वपूर्वकृतये व्याक्ताश्रुता सुश्रुता (मुनि श्लो० २) नास्य किञ्चनास्तीत्यकिञ्चनः तस्य भावः कर्म वाकिञ्चन्यम् (स० सि० ९/६) ममेदमित्यभिसन्धि-निवृत्तिराकिञ्चन्यम्।' (तo वा० ९/६ ) आकिञ्चन्यधर्म: (पुं० ) ०सकलत्यागधर्म, ० सम्पूर्ण संग रहित धर्म, बाह्य एवं आभ्यन्तर संग/ आसक्ति / परिग्रह रहित धर्म । (जयो० २८/३९) आकिञ्चन्यविद (वि०) सकलत्याग के ज्ञाता। (मुनि श्लोक २) आकीर्ण (भू० क० कृ०) १. व्याप्त, पूर्ण भरा हुआ, परिपूर्ण । २. विक्षिप्त, बिखरा हुआ, फैला हुआ। 'खदिरादि समाकीर्णे चन्दनद्रुमवने (सुद० पृ० १२८० आकीर्यते व्याप्यते J विनयादिभिर्गुणैरिति आकीर्ण:' (जैन लक्षणावली वृ० १९६) आकुञ्चनं (नपुं०) [आ+ कुञ्च् + ल्युट् ] १. संकोचन, प्रसारमुक्त, संकुचित, एकत्रित । २. सुकड़ा एकत्रित होना। 'आकुञ्चनं जङ्घादे: सङ्कोचनम्।' (प्रव०वृ० २०६ ) आकुञ्चित (वि०) संकुचित, एकत्रित । (जयो० १८ / ९४ ) आकुट्ट (नपुं०) छेदन - भेदन । आकुट्टनं देखो ऊपर आकुट्ट । अकुम्भ: (पुं०) गण्डस्थलपर्यन्त। (जयो० १३/९९) आकुल (वि०) [आ+कुल्+क] आसक्त, संलग्न, ०तत्पर । For Private and Personal Use Only (जयो० १२ / ६५) नित्यमत्रावसीदन्ति मादृशा अबलाकुलाः । ' (जयो० १ / १०७) २ विक्षुब्ध, उद्विग्न, थका हुआ। ३. आहत, पीड़ित, दुःखित, निराश, टूटा हुआ, विक्षिप्त, हर्षादि रहित । ४. किं कर्त्तव्यविमूढ़, अनिर्धारित, अव्यवस्थित। आकुलक्षणं (नपुं०) आसक्ति के क्षण (जयो० १२ / ६५ ) 'स्वकुले सति नाकुलेक्षणेन।' ०दुःख का समय, ० विक्षिप्त काल।
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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