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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आं १३८ आकाश: में भी प्रयोग होता है। प्रयत्नवानादशमस्थलन्तु। (सम्य० आकर्षिक (वि०) सम्मोहक, प्रलोभक। पृ० १२६) २. अल्पता, लघुता, थोड़ा। ३. अधिकता, आकर्षिन् (वि०) [आ• कृष् णिनि | सम्मोहक, प्रलोभक, विशेषता, बहुत। तदाऽऽव्रजताऽऽव्रजत त्वरितमितः। (सुद० | खींचने वाला। १०४) ४. विस्मय आश्चर्य, स्मरण। आस्तदा सुलुलितं आकर्षिक (वि०) सम्मोहक, प्रलोभक। चलितव्यं। (जयो० ४/७) ५. खेद, खिन्नता, कुछ। ओह। | आकर्षिन् (वि०) [आ कृष् णिनि] सम्मोहक, प्रलोभक, आः स्मृतम्। (दयो० पृ० १५) आः किमासीत्। (सुद० खींचने वाला। १०८) इसके अतिरिक्त 'आ' का प्रयोग वाक्य की शोभा आकलनं (नपुं०) [आ+कल्ल्यु ट] स्वीकार, प्रतिग्रहण। हेतु भी प्रयोग किया जाता है। आकल्पितं (वि०) निर्मित, उपयोग युक्त। 'आकल्पितं क्वापि आं-हाँ! शिवाध्वनेतः' (भक्ति० ४६) गर्भार्भकस्येव यशः आंशिक (वि०) एकदेश, एक स्थान, थोड़ा। (जयो० ११/१३) प्रसारैराकल्पितं वा घनसारसारैः। (वीरो० ६/३) (हित० २३) किलांशिकेषाश्विति तेन मुक्ता। (सुद० २/२०) । आकलितुम् (आ+ कल्+तुमुन्) स्वीकर्तुम् स्वीकार करने के आ: (स्त्री०) लक्ष्मी। लिए। (जयो० ९/३४) आकः (पुं०) अकौआ, मदार, आकड़ा। आकल्पः (पुं०) [आ+कृप्+णिच्+घञ्] आभूषण, अलंकरण। आकड़ा (स्त्री०) मदार, आक। (वीरो० १९/११) आकल्पकः (पुं०) [आ+कृप्+णिच्+ण्वुल] दुःखपूर्ण स्मृति, आकथनं (नपुं०) [आ+कत्थ ल्युट्] अतिकथन, बहुआलाप, ___मूर्छा, मुग्धता। प्रशंसात्मक विवेचना आकषः (पुं०) [आ+कष्+अच्] कसौटी। आकण्ठ (वि०) कण्ठपर्यन्त, गले तक। 'सम्यगाकण्ठमाश्लेषि आकषिक (वि०) [आकर्षण चरति इति आकष•ष्ठल्] परखने वधूर्विनम्या' (जयो० १७/३६) वाला, कसने वाला। आकम्पः (पुं०) [आ+ कम्प्+घञ्] हिलना, कांपना। आकस्मिक (वि०) [अकस्मात् ष्ठक टि लोप:] १. अप्रत्याश्रित, आकम्पनं (नपुं०) [आ+ कम्प्+ ल्युट्] हिलना, कांपना, सहसा, अचानक, एकाएक। २. निष्कारण, निराधार, संचालन, गति। निर्मूल। आकम्पित (वि०) [आ+ कम्प्क्त ] संचालित, कम्पिता, आकाङ्क्षा (स्त्री०) कामना, इच्छा, वाञ्छा, अभिलाषा। गति करता हुआ, कम्पायनाम, विक्षुब्ध। २. आलोचना आकायः (पुं०) [आ+चि+कर्मणि+घञ् चितौकृत्वम्] चिता, का एक दोष, अल्प प्रायश्चित्त। 'प्रायश्चित्त-लघु-करणार्थ चिता पर क्षेपित अग्नि। मुपकरणदानम्।' (त०श्लोक ९/२२) आकारः (पुं०) [आ+कृ+घञ्] आकृति, रूप, संकेत। मम वा आकरः (पुं०) [आकुर्वन्त्यस्मिन्-आ+कृ+घ] खान, खनिक। यमवाक् सन्धाकारयाऽऽयुधधारया। (जयो० ७/२९) जहां से सोना, चांदी आदि की उत्पत्ति होती है। 'अनिरुत्पत्ति आकार: (पुं०) आ कार, आवर्ण, मात्रा विशेष। यत्किलानुस्वारस्य स्थानम्। (जयो० २/१४४) स्थाने स्फुटमाकारस्य। (दयो० पृ० ७६) आकरिक (वि०) [आकर ठन्] खान की देख रेख करने आकारणं (नपुं०) [आ+कृ णिच्+ल्यूट] आमन्त्रण, निमन्त्रण, वाला। आह्वानन। आकर्ण (सक०) [आ+कर्णय] सुनना, श्रवण करना। (जयो० आकालः (पुं०) [आ+कु अल्+अच्] उचितकाल, यथेष्ट पृ० ४/२) समय। आकर्णनं (नपुं०) [आ+कर्ण+ ल्युट्] श्रवण, सुनना, कान आकालिक (वि०) [अकाल+ठ] अल्पकालिक, किञ्चित् लगाना, ध्यान देना। (जयो० १/६५) (सुद० ३/४२) समय, कुछ समय। आकर्षः (पुं०) [आ+ कृष्+घञ्] खींचना, तानना, पीछे ले जाना। २. प्रलोभन, सम्मोहन, आकृष्ट, वशीकरण। आकारूण्य (वि०) निर्दयत्व। (जयो० २/१३० ) आकर्षक (वि०) प्रलोभक, सम्मोहक, वशीकरणकर्ता। आकाशः (पुं०) [आकाश् घञ्] गगन, नभ। आकर्षणं (नपुं०) [आ+कृष्+ ल्युट] सम्मोहन, वशीकरण, आकाशः (नपुं०) [ आकाश। ल्युट्] १. गगन, खे, आसमान, नभ, अन्तरिक्ष। प्रलोभन। शशकृतसिंहाकर्षण-विषये। (सुद० ९२) For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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