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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्हत्परमागम १३६ अहिंसाव्रतः भुवि नक्तंदिवमविराम! नक्तंदिवमहर्निशमविराम। (जयो० । अहिन्दु (पुं०) हिंसकत्वाभाव। (जयो० २८/२२) ०अनार्य, वृ० २३/६१) हिंसकजन। 'अहिंदुरयताऽवापि हिन्दुजातेन धीमता।' अर्हत्परमागम (पुं०) जिनागम, सर्वज्ञ प्रणीत शास्त्र (वीरो० | अहिपः (पुं०) शेष नाग, शेष राज, सर्पराज। 'प्रासादशृङ्गेऽहि१९/२८) जिनवाणी, जिन-वचन। ___ पहारवैरिणः। (जयो० १५/७६) अहरणीय (वि०) पूजनीय, सम्मानीय। अहिपतिः (पुं०) सांपों का स्वामी, वासुकी, सपेरा। अहार्य (वि०) पूजनीय, सम्मानीय, श्रद्धावंत, सम्मानित। अहि-पुत्रकः (पुं०) सर्पाकार छोटी नाव, किश्ती। अहह (अव्य०) [अहं जहाति इति हा+क] यह विस्मयादिबोधक अहिफेनः (पुं०) अफीम। अव्यय है, जिसके विविध अर्थ हैं-१. आश्चर्य-अहह अहिभयं (नपुं०) सर्प की आशंका, सर्प का भय। पार्श्वमिते दयिते द्रुतम्। (जयो ० २/१५६) अहिभुज् (पुं०) १. गरुड़, २. नेवला, ३. मोर। अहहाग्रहाभावधात्री- (जयो० १२/२१) अहह मूढतया न अहिभूत् (पुं०) शिव, शङ्कर। मया (जयो० ९/३) खेद अर्थे-अहह धर्ममृतेऽति पुमान्। अहिशय्या (स्त्री०) नागशय्या। 'यामवाप्य पुरुषोत्तमः स्म (जयो० २५/८२) अहहे ति खो दे - जयो० वृ० संशेतेऽप्यहिशय्याम्। (सुद० १२२) २५/८२) अहह/महदाश्चर्यस्थानमेतत्। (जयो० पृ० । अहिंसनं (नपुं०) अहिंसा, न हिंसा अहिंसा। किसी प्राणी का २५/८३) वध नहीं करना। अहिंसनं मूलमहो वृषस्य। (सुद० १३२) अहा (अव्य०) प्रसन्नता द्योतक अव्यय। 'सन्ति गेहिषु च अहिंसा (स्त्री०) प्राणी वध का अभाव, प्राणिदया, प्राणिकरुणा सज्जना अहा।' (जयो० २/१२) 'देववादमुपशम्प तन्महा जीवघात का निषेध। अहिंसा वर्त्म सत्यस्य, त्यागस्तस्याः देवतामुपगतो भवानहा।' (जयो० वृ० ७/५९) परिस्थितिः। (वीरो० १३/३६) अहिंसा भूतानां जगति अहार्यः (पुं०) पर्वत, गिरि। (जयो० १५/३६) अहार्यः पर्वते विदितं ब्रह्म परमम्। (दयो० पृ० ११) अहिंसाव्रत भी पुंसि इति विश्वलोचना। है-श्रमण, अहिंसाव्रत और श्रावक अहिंसाव्रत। मूलतः अहि (पुं०) [आहन्ति-आ+हन्+इण् स च डित आङ्गो हृश्वश्च] रागादि भावों की अनुभूति या अनुत्पत्ति का नाम अहिंसा सर्प, सांप, अजगर, नाग। सङ्गीतैक वशङ्गतोऽहिरपि भो तिष्ठेत्करण्डं गतः। (सुद० पृ० १२७) अहीनां सर्पाणामिनः अहिंसाधर्म (पुं०) अहिंसा धर्म, रक्षा, जीवरक्षा का कर्त्तव्य। स्वामी। (जयो० पृ० १/२५) उक्त पंक्ति में 'अहि' के (दयो० ३३) स्थान पर 'अही' का प्रयोग भी होता है ऐसा अभिप्राय भी | अहिंसाधर्मोपदेशक (वि०) अहिंसाधर्म का उपदेश देने वाला, जीव रक्षा/प्राणी का उपदेश। (जयो० पृ० १/९६) अहिकांत: (पुं०) वायु, पवन। अहिंसाधिपः (पुं०) प्राणि रक्षणाधिपति।। अहिकोषः (पुं०) सर्प केंचुली। अहिंसायाः प्राणिरक्षणलक्षणाया अधिपतिः। (जयो० पृ० अहिचरः (पुं०) नागचर देव, नागदेव। 'स्थानं चकम्पेऽहिचरस्य। १/११३) (जयो० ८.७६) अहिचरस्य नाम द्वितीयसर्गोकस्य स्थानम्। अंहिसापरक (वि०) अहिंसात्मक। (वीरो० १८/५९) (जयो० पृ०८/७६) अहिंसा-परमब्रह्मः (पुं०) अहिंसा उत्कृष्ट ब्रह्म। (दयो० ११) अहिछत्रकं (नपुं०) कुकुरमुत्ता। अहिंसामहाव्रतः (पुं०) महाव्रती श्रमण का व्रत। चेतो अहिजित् (पुं०) कृष्ण। निग्रहकारितामनुभवन्वाचं यमी सम्भवेत्। संगच्छेच्छयनाअहित (वि०) अशुभकर, अनिष्टकारी। (जयो० २/३) सनादिषु दृढं यत्नं स्वकीये भवे। दृक्पूताशन- पान-स्फुटतया अहितत्त्व (नपुं०) सर्प तत्त्व, नाग सार। अहीनां सर्पाणां तत्त्वं ही समित्या श्रयः हिंसातीत्यधिदेवताभिरूचये स्वरूपं यत्तद्दर्प विषभुज्झित्य पलायते। अहितस्य शत्रो श्रीमान्प्रशस्तोदय:। (मुनि०श्लो०४) र्भावोऽहितत्त्वम्। (जयो० पृ० ६/७९) अहिंसावतः (पुं०) प्राणिरक्षा व्रत, पांव व्रतों में इसका महत्त्वपूर्ण अहिनील (वि०) सर्प सदृश कृष्ण। दीर्घोऽहिनीलः किल के स्थान है, इसके सद्भाव में अन्य व्रत समुत्पन्न होते हैं शपाश:। (सुद० २/८) प्रमाद से प्राणों का निष्पात करना हिंसा है, ऐसी हिंसा For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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