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अस्तगम्
१३४
अस्पष्ट
मन्त्र।
अस्तगम् (वि०) डूबा, रुका, समाप्त हुआ।
अस्तेयं (नपुं०) अचौर्य, चोरी का अभाव, स्तेयाभावः, दूसरे अस्तगामिन् (वि०) अस्तगत. सूर्य छिपता हुआ अस्त प्राप्त की वस्तु का न ग्रहण करना। १. श्रावक अस्तेय और. २. होता है। १. क्षीण होता हुआ।
श्रमण अस्तेय। श्रावक एक अंश का त्यागी होने के "रवेरथो बिम्बमितोऽस्तगामि।" (जयो० १५/१०)
अचौर्याणुव्रती और श्रमण 'स्तेय' का पूर्ण त्यागी होने से अस्तभावः (पुं०) समाप्त पूर्ण। (सुद० १३३)
अस्तेयमहाव्रती। अस्तराग (वि०) अनुराग रहित. ०क्षीण राग, राग की | अस्त्रं (नपुं०) आयुध, तलवार, हस्तक्षेपण से किया गया
समाप्ति वाला। 'संशोधयत्यध्वविदस्तरागः।' (जयो०१/५१) प्रहार।
अस्तरागो/विषयेष्वनुरागरहितः। (जयो० वृ० २७/५१) अस्त्रकारः (वि०) अस्त्र बनाने वाला, आयुध निर्माता। अस्ताचल: (पुं०) १. अस्ताचल पर्वत. सन्ध्या होना। २. सूर्य अस्वगारं (नपुं०) आयुध शाला, तोपखाना, शस्त्रगृह, शस्त्रशाला। का अस्त होना। (दयो०१८) पश्चिमाचल।
अस्त्रचिकित्सकः (पुं) शल्य चिकित्सक, चीर-फाड़ करने अस्ताद्रिः (पुं०) अस्ताचल पर्वत।
वाला चिकित्सक। अस्तामित (वि०) समाप्त, पूर्ण, नाशगत। 'अस्तामितः कष्टत अस्त्रचिकित्सा (स्त्री०) शल्य क्रिया। एव मुक्तिः ।' (समु० ३/३७)
अस्त्रधारिन् (पुं०) सैनिक, सिपाही, योद्धा। अस्ति (अव्य०) [अस्+श्तिप्] १. ०है, होना, ०सत, विद्यमान, अस्त्रमंत्रं (नपुं०) आयुध मन्त्र, शस्त्र संचालन के समय का
जैसा कि, प्रायः। (वीरो० २०/१६) २. स्याद्वाद सिद्धान्त की दृष्टि से 'अस्ति' का विशेष महत्त्व है, इसमें स्वद्रव्य, अस्त्रमार्जकः (पुं०) सिकलीगर। क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा वस्तु है ऐसा प्रयोग अस्त्रमुद्रा (स्त्री०) अंगुलियों को फैलाने की मुद्रा, शस्त्रकार किया जाता है। 'अहो यदेवास्ति तदेव नास्ति, तवाद्भुतेयं मुद्रा, आयुध सदृश आवृति। प्रतिभाति शास्ति। (जयो० २६/७७)
अस्त्रविद् (वि०) शस्त्रवेत्ता, आयुधज्ञाता। अस्ति-अवक्तव्यं (नपुं) स्व-पर-द्रव्यादिचतुष्टय से विवक्षित अस्त्रवेदः (पुं०) अस्त्रविद्या, शस्त्रज्ञान। द्रव्य।
अस्त्रवृष्टिः (स्त्री०) शस्त्र वर्षा, लगातार शस्त्र प्रक्षेपण। अस्तिकायः (पुं०) अस्ति स्वभाव, प्रदेश भाव, प्रदेश, प्रचय। अस्त्रिन् (वि०) [अस्त्र+इन] अस्त्र से युद्ध करने वाला।
"प्रदेशप्रचयो हि कायः स एषामस्ति ते अस्तिकायाः अ-स्त्री (वि०) स्त्रियत्व का अभाव, नपुंसकपना। जीवादयः। (त०व०४/१४) जिनमें अनेक प्रदेश विद्यमान अस्थानं (नपुं०) अनुचित स्थान, अयोग्य स्थान। हैं। (त०सू०पृ०७४) गुण एवं पर्यायों के साथ अभेद एवं अस्थाने (अव्य०) विना अवसर के, ऋतु बिना, प्रयोजन बिना। तद्रूपता।
अस्थावर (वि.) चर, जंगम। अस्तित्व (वि०) १. पदार्थों का सत्ता रूप धर्म, अनादि अस्थि (नपुं०) [अस्यते-अस्+कथिन् ] हड्डी, मेद से उत्पन्न
परिणाम भाव, २. (वीरो० १९/१३) सत्ता, विद्यमानता। होने वाली कीकस धातु। 'अस्थि कीकसं मेदसम्भवम्।' अस्तिद्रव्यं (नपुं०) स्वकीय द्रव्यादि को अपेक्षा से विवक्षित द्रव्य। 'यतपूतिमांसास्थिवसादिझुण्डम्।' (सुद० १०१) अस्ति-नास्ति-अवक्तव्यं (नपुं०) है, नहीं है, ऐसा स्व-पर अस्थियुक् (वि०) हड्डी चबाने वाला। (सुद० १२१) द्रव्यादि विवक्षित युगपद भाव।
अस्थुत्थ (वि०) छुट्टी से निकला, आया। (सुद० १२१) अस्ति-नास्ति द्रव्यं (नपुं०) स्व-पर द्रव्यादि की अपेक्षा क्रम रक्तमस्थ्युत्थमेतीति तदेकभक्तः। से विवक्षित द्रव्य।
अस्पर्शनं (नपुं०) स्पर्शित न होना, स्पष्ट न हो, अछूत। अस्ति-नास्तिप्रवादपूर्वः (पुं०) उभय नय पर आधारित ग्रन्थ, अस्पष्ट (वि०) धुंधला. अदृश्य, अस्वच्छ, संदिग्ध, मलिन,
द्रव्यार्थिक एवं पर्यायार्थिक नय युक्त विवेचन करने वाला अव्यक्त। (जयो० ११५८) जन आत्मसुखं दृष्ट्वा ग्रन्थ/जिसके पदों की संख्या आठ लाख है।
स्पष्टमस्पष्टमेव वा। (सुद० १२५) व्यक्ति अपना स्वच्छ अस्तिस्वभावः (पुं०) अस्ति ग्राहक नय।
मुख देखकर प्रसन्न होता है और मलिन को देखकर अस्तु (नपुं०) हो, होवे (दयो० ३२) किन्तु (सुद० ९८) दुखी होता है।
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