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असिगंडः
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अ-सुदृक्
असिगंडः (पुं०) तकिया, उपधान।
असिलतिका (स्त्री०) खड्गयष्टि, तलवार। 'जयश्रियोऽर्पितासि असिजीविन् (वि०) असि से जीविका चलाने वाले।
लतिका।' (जयो० १२/८१) असित (वि०) १. श्याम, कृष्ण, अत्यन्त, कृष्ण। | असि-व्यसनं (नपुं०) खड्ग-अभ्यास, असिकला अभ्यास। "सितासितप्रायमुतात्मकायम्' (जयो० १५/६१) २. मलिन, 'चिरोच्चितासि-व्यसनापदे तुक।' (जयो० १/७५) असि: (न सितोऽसितो मलिन इति) (जयो० ६/१९)
खड्गस्तस्य व्यसनमभ्यासस्तस्य। (जयो० वृ० १/७५) असितः (पु०) कृष्ण सर्प।
असीम (वि०) ०अपूर्व, अत्यधिक, प्रगाढ़, विशेष, विशिष्ट, असितकेशि (वि०) श्लामलकधारिणी। (जयो० १७/५६) अनुपम, अगाधा 'दासीमिवासीमयशास्तथैनाम्।' (जयो० श्याम केशा, ०अत्यंत काले बाल वाली।
१/२१) असीम/सीमातीत। (जयो० वृ० १/२१) असिदंष्ट्रकः (पुं०) घड़ियाल, मगरमच्छ।
असीम-यशः (पुं०) सीमातीत यश, अपूर्वयश। (जयो० १/२१) असिदंत: (पुं०) घड़ियाल।
असीमशोकचिह्न (नपुं०) अपूर्व पश्चात्ताप के लक्षण, अत्यधिक असिद्ध (वि०) अप्रमाणित, अपूर्ण, पूर्णता रहित।
शोकभाव। प्रतीपपत्न्यास्तदेव किन्न समभृत्स्विदसीमशोकअसिद्ध (पुं०) हेत्वाभास का एक भेद जिसका स्वरूप सिद्ध चिह्नम्।' (जयो० १४/३०)
न हो। "संशयादिव्यवच्छेदेन हि प्रतिपन्नमर्थस्वरूपं सिद्धम्।' असुः (पुं०) १. प्राण, जीव, श्वास (जयो० १६/४९) (जयो तद्विपरीमसिद्धम्। (प्रमेयकमलमार्तण्ड ३/२०/३६९)
२०/७३) 'असुप्ताणमे वेति कृत्वा स्थित्यर्थ असिद्धत्व (वि०) जीव की अवस्था विशेष, अष्टकर्मोदय का जीवनसम्पत्यर्थम्।" (जयो० वृ० १६/४९)
सामान्य उदय। 'कर्ममात्रोदयादेवासिद्धत्वम्।' (त०श्लोक २/६) असुं (नपुं० ) शोक, दुःख, कष्ट। 'सूक्तिर्भवत्यासुतरामवापि।' असिद्धत्वपर्यायः (पुं०) १. कर्मोदय सामान्य के होने पर
(जयो० २०/७३) असिद्धत्व पर्याय होती है। २. औदयिक भाव।
असुख (वि०) दु:खी, व्याकुल, कष्टजन्य। असिद्धहेत्वाभासः (पुं०) पक्ष में हेतु का न रहना।
असुखं (नपुं०) ०दुःख, ०पीड़ा, कष्ट, ०बाधा, ०व्याधि, 'असिद्धस्त्वप्रतीतो यः।' (न्यायावतार-७३) अन्यथा च
०सुखाभाव। संभूष्णुसिद्धः। (सिद्धि०वि०६/३२) असत्सत्तानिश्चयोऽसिद्धः।
असुख-करुणा (स्त्री०) दुःखी जीवों पर करुणा/अनुकम्पा। (परीक्षामुख०६/२२)
'असुखं सुखाभावः यस्मिन् प्राणिनि दु:खिते सुखं नास्ति असिधारा (स्त्री०) खड्गधार।
तस्मिन् याऽनुकम्पा। (जैनलक्षणावली पृ० १६०) असिधाराव्रतं (नपुं०) दृढ़प्रतिज्ञ व्रत।
असुखित (वि०) दु:खित, पीड़ित। (जयो० ९/७२) असिधावः (पुं०) शस्त्रकार, सिकलीकर।
असुखिन् (वि०) दु:खी, व्याकुल, पीड़ित, आघात जन्य। असिधेनु (स्त्री०) चाकू, चक्कू, छोटा चाकू। छुरी।
(वीरो० १६/१) असिपत्रकः (पुं०) ईख, गन्ना।
असुत (वि०) नि:संतान, पुत्रहीन। असिपुच्छः (पुं०) सूंस, सिंसुमार।
असुदर्शनं (नपुं०) प्राणाधार, प्राण युक्त दृष्टि। 'सुदर्शननअसिपुच्छकः देखो-असिपुच्छः।
भूत्कर्तुमदसुदर्शनमादरात्।' (सुद० पृ० ७६ ) असिपुत्रिका (स्त्री०) छुरी। (जयो वृ० २७/२०) धियोऽसिपुत्र्या दुरितिच्छदर्थमुत्तेजनायातितरां समर्थः। (समु०१/१) ममेति
असुदा (वि०) प्राणदात्री, जीवन देने वाली। 'न दासि अस्माक
मिहासुदासि।' (जयो० २०/७३) कण्ठे विधृताऽसिपुत्री। (समु० ३/२२) असिपुत्री (स्त्री०) छूरी, चाकू।
असुदेवता (वि०) प्राण संरक्षण करने वाला देव, प्राण संरक्षक
देव। (जयो० २०/८३) “असुदेवता/प्राण संपादनकीं। असिप्रहारः (पुं०) खड्गप्रहार, तलवार घात। तावदेवासिप्रहारेण ___जीवननिः शेषतामनुबभूव। (दयो०८४)
(जयो० वृ० २०/८३) असियष्टिः (पुं०) खड्ग, तलवार। (जयो० ८/२६)
अ-सुदृक् (वि०) उत्तम दृष्टि से रहित। २. प्राण दर्शन।" असिलतिका, खड्गयष्टि।
असूनां प्राणानां 'दृक् दर्शनं तस्याः सिद्धान्तशालिनाऽभिअसिरः (पुं०) [अस्+किरच्] किरण, ०तीर सिटकनी, |
प्रायधारकेण सुलोचनोपलम्भेनैव जीविष्यामीति।' (जयो० शहतीर।
पृ० ३/९७)
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