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अश्ववार:
१२७
अष्टम
अश्ववारः (पुं०) घुड़सवार, अश्वारोही, अश्वाधिगत। (जयो० अश्रुप्रवाह (वि०) अश्रुसन्तान, अश्रुधारा। (जयो० वृ० ५/१०४) ८/११)
अश्रुवार्हा (वि०) आंसुओं से युक्त। (जयो० ५/१०४) हर्ष के अ-श्वसंत (वि०) निरुद्धश्वास, श्वास नहीं लेते हुए।
आंसुओं से युक्त। अश्व-समुदाय: (पुं०) घोटक समूह, सप्तिसमूह। (जयो० । अश्रुसंतानं (नपुं०) अश्रुधारा, आंसुओं का प्रवाह। अश्रूणां ३/११०)
सन्तान। (जयो० ५/१०४) अवस्थितः (वि०) अश्वारुढ, घुड़ सवार।
अश्रुसंविद् (वि०) अश्रु समूह। (जयो० २६/१४) अश्वाधिगत (वि०) अश्वारुढ, तुरगारुढ, अवस्थित, अश्ववार। अश्रुसिक्त (वि०) आंसुओं से सिञ्चित। 'अश्रुसिक्तयोगीन्द्रपदो अश्वारुढ (वि०) तुरगारुढ, घुड़सवार।
निरेनाः।' (वीरो० ११/२३) अश्वारोह (वि०) घुड़ सवार, तुरगारुढ।
अश्रोत (वि०) आगमिक विहीन, श्रुतविहीन। अश्विनी (स्त्री०) अश्विनी नक्षत्र।
अश्रेयस् (वि०) अकल्याण, अहित, अनिष्ट, दु:ख। अश्विनीकुमारः (पुं०) अश्विनीसुत, वैद्य पुत्र। (दयो०६८) अषड (वि०) छह रहित। _ 'इत्यश्विनीसुतसमानयनाय नाम।' (७/१०९)
असाढ़ः (पुं०) आषाढ़ मास, वर्षा का प्रारंभिक मास। अश्विनीसुतः (पुं०) अश्विनीकुमार वैद्यराज। (जयो० १०/७९) अष्ट (वि०) आठ प्रकार, आठ भागों वाला। अश्रं (नपुं०) [अश्नुते नेत्रम्-अश्+टक्] १. आंसू, अश्रु। २. अष्टक (वि०) [अष्टन्क न्] आठ भागों वाला, आठ प्रकार रुधिर।
का, आठ समूह युक्त। (सम्य०८८) अश्रद्दधत (वि०) अश्रद्धान करता हुआ (सम्य० ७४) अष्टकं (नपुं०) आठ छन्द युक्त, महावीराष्टक। (भक्ति०२१) अश्रवण (वि०) श्रवणहीन, बहरा, नहीं सुनने वाला। अष्टकर्मन् (नपुं०) आठ कर्म। अश्रान्त (वि०) १. श्रमशील, थकान रहित, उद्यमी। २. शान्ति वाला। अष्टकुमारिका (स्त्री०) आठ कुमारियां। अश्रि (स्त्री०) [अश् क्रि+पक्षे ङीष्] किनारा, घर का एक । अष्टकृत्वस् (अव्य०) आठ वार। त्रिकोण भाग।
अष्ठकोण (वि०) आठ कोने वाला। अश्रीक (वि०) श्री विहीन, कुरूप, सौन्दर्य रहित।
अष्टग (संख्यावाची विशेषण) आठ। अश्रु (नपुं०) [अश्नुते व्याप्नोति नेत्रमदर्शनाय-अश्+क्रुन्] अष्टगुण (पु०) आठ गुण, सम्यक्त्व के गुण। __ आंसू, वाण।
नि:शङ्किताद्यष्टगुणाभिवृद्ध।' (भक्ति०७) अश्रुजलं (नपुं०) अश्रुवीर, (जयो० ९/५४) 'मुदुदिताश्रुजलै- अष्टचन्द्रः (पुं०) अष्टचन्द्र राजा। (जयो० ८/६४) 'निपेतुः ___रनुभावित।'
पुनरष्टचन्द्राः।" अश्रुजात (वि०) आंसुओं की उत्पत्ति। सात्त्विकमेतदश्रुजातम्। अष्टचन्दनरपः (पुं०) अष्टचन्द्र नामक राजा। 'सोऽष्टचन्द्रनरपो (जयो० १२/६७)
ग्रहयुक्तिः ।' (जयो० ४/१४) अश्रुत (वि०) १. श्रुत विहीन, आगमशास्त्र विहीन। १. श्रुतज्ञान अष्टत्रिंशत् (वि०) अड़तीस।
रहित। (जयो० वृ० १।३४) २. नहीं हुई, अनसुनी, श्रवणा अष्टत्रिक (वि०) चौबीस। रहित। (सुद० २/२६) श्रुतमश्रुपूर्वमिदं तु कुतः। (सुद० अष्टदलं (नपुं०) कमल, आठ पंखुरियों युक्त। पृ० ८४)
अष्टदिश् (स्त्री०) आठ दिशा। अ-श्रुपात (वि०) शोकाकुलजात अश्रु।
अष्टधा (वि०) आठ प्रकार का, आठ भागों का। ऐहिकव्यवहृतौ अ-श्रुतपूर्व (वि०) श्रुत परम्परा से रहित। (जयो० १/३४)
तु संविधाकारिणी परिविशुद्धरष्टधा। (जयो० २/७६) अश्रुतपूर्विका (वि०) सुनने में नहीं आता। अष्टधातुः (स्त्री०) आठ धातु। 'वार्ताऽप्यदृष्ट श्रुतपूर्विका व:।' (सुद० २/२१)
अष्टपद (वि०) आठ पैर वाला, शरभ जन्तु। अश्रुपद (वि०) आंसू समूह। (जयो० वृ० ३/३९)
अष्टपत्रं (नपुं०) स्वर्ण पट्टिका। अश्रुयुक्त (वि०) वाष्पधारा, अश्रुधारा, नयनोत्पलवासिजल। अष्टम-प्रतिमा (स्त्री०) आठ प्रतिमा। (जयो० वृ० ६/८६)
अष्टम (वि०) आठवां, आठ भाग।
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