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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अशुद्ध-चेतना अशुद्ध चेतना (स्त्री०) कार्यानुभूति और कर्मफलानुभूति अशुद्ध चेतना | अशुद्ध द्रव्यं (नपुं०) द्रव्य उपाधि जन्य। अशुद्ध पर्याय: (पुं०) व्यञ्जन पर्याय का विषय । अशुद्धभाव: (पुं०) अस्वाभाविक परिणाम, अन्योपाधिक भाव, बाह्यभाव। अशुद्धसंग्रह: (पुं०) जाति विशेष ग्राहक । अशुद्धि (स्त्री०) मलिनता, अपवित्रता । अशुद्धि (वि०) अपवित्र, मलिन कर्मबद्ध । अशुभ (नपुं०) पाप, अनिष्ट। अशुभ (वि०) १. अकल्याणकारी, अमांगलिक, अनिष्टकारी, अहितकर । २. विषय कषाय से आविष्ट, राग-द्वेषात्मक वृत्ति। अशुभ - काय योग: (पुं०) काय सम्बंधी प्राणातिपात जन्य योग । अशुभक्रिया (स्त्री०) अशुभ अतिचार, ज्ञान, दर्शन, चरित्र और तप में दोष । अशुभयोग (पुं०) मारन ताड़न का योग । (समु० ८/२८) अशुभोदय (पुं०) पापोदय पापकर्म का उदय नहि विषादमियादशुभोदये। (जयो० २५/६४) अशुभस्य पापस्योदये' (जयो० ० २५/६४) अशुभोपयोगः (पुं०) विषय - कषायादि जन्य उपयोग । "शरीरमेवाहमियान्विचारोऽशुभोपयोगो जगदेककारो।" (समु० ८/२१) "दुष्टाच्चयोगादशुभोपयोगे पापं महत्स्यादमुकप्रयोगे । (समु० ८/३२) अशुभोपयोगी (वि०) अशुभ योग वाला जीव, शुभाच्चयोगादशुभोपयोगी यदेति पुण्यं च ततः च सभोगी (समु० ८/३१) अशून्य (वि०) पूरा किया गया, निष्पादित अभाव रहित । अशूद्र (वि०) अछूत अस्पृश्य जन्मना खलु शूद्रः सन्कुलीनस्यात्सुचेष्टया (हित०सं० २६/ अशृत (वि०) अपरिपक्व, कच्चा नहीं पकाया गया। अशेष (वि०) समग्र सम्पूर्ण समस्त सभी तस्या अपाङ्ग शर-संहतिरप्यशेषा ।' (सुद० १२४) इत्येव मोहं क्षपयत्रशेषं । (भक्ति०३१) प्रतिदेशमशेषवेशिनः' (जयो० १०/७०) पराजिताशेषनरेशवर्गः । (समु० ६ / ९ ) अशेषपरिच्छद (वि०) सर्वथा त्याग (वीरो० १८/४० ) अशेष मानव (पुं०) सम्पूर्ण नृप समूह 'अशेषा चासौ भूः पृथिवी तस्या मानवा नराः।" (जयो० १/५७) १२६ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अश्वग्रीवः 1 P अशोक (वि०) [न शोको अशोकः] जिसे शोक नहीं, शोकरहित, प्रसन्न हर्षित आमोद युक्त' निश्चिन्त । 'अशोक आलोक्य पतिं ह्यशोकं प्रशान्तचित्तं व्यकसत्सुरोकम्' (जयो० १/८४) अशोकं / शोकवर्जितम्, अशोको / निश्चन्तो । (जयो० वृ० १/८४) स कोकयत्किन्त्रिस्त्रशोक' (मुद० १/१०) अशोकः (पुं०) सम्राट अशोक, मौर्यवंश का प्रसिद्ध शासक । चन्द्रगुप्त मौर्य का पौत्र (वीरो० २२/१२) । अशोकः (पुं०) अशोक वृक्ष। (जयो० १ / ८४) अशोकनामा वृक्षो व्यकसत् (जयो० १ / ८४ ) अशोकं (नपुं०) कामदेव का एक बाण, पांच बाणों में अशोक याण भी कामातुर का घातक है। अशोकतरुः (पुं०) अशोकवृक्ष | अशोकचित्त (नपुं०) शोक रहित हृदय वाला। अशोच्य (वि०) अनुचित शोक | अशोभनीय (वि०) शोभा के योग्य नहीं, कुरूपता युक्त अकान्त (जयो० वृ० ११/५६ ) अशौचं (नपुं०) अशुचिता, अपवित्रता, अस्पृश्य, मैल (जयो० १९/५) अशीच क्रिया (स्त्री०) मलोत्सर्जन क्रिया (जयां०] १९/५) अशौचविधि (स्त्री०) अशोचक्रिया, मलिन परिणाम । अश्नं (नपुं०) भोजन, खाना, आहार । धात्रीफलं केवलमश्नुवानः । (जयो० १/३८) अश्नीत (वि०) खाने योग्य। अश्नुवान (वि०) भुआन, भोगने वाला। अश्मन (पुं० ) [ अश्+मनिन्] रत्न, प्रस्तर। 'भूषणेष्वरुणनीलसितामश्मनां'। (जयो० ५ / ६१ ) अश्मानि रत्नानि तेषां भूषणेषु ।' (जयो० वृ० ५/६१) अश्मन्तकः (पुं० ) [ अश्मानमन्तयति इति अश्मन् + अंत + णिच्ण्वुल्] अलाव, अंगीठी। + अश्मरी (स्त्री० ) [ अश्मानं राति इति रा.क. डीप] पथरी, रोग विशेष अश्व (पुं०) तुरंग, घोड़ा, अवंबर, उत्तम घोड़ा (जयो० १३ / ९२ ) किं छाग एवं महिषः किमश्वः ।' (वीरो० १/३१) अतामश्वानां मध्ये वराः श्रेठा (जय० कृ० १३/९२) अश्वग्रीवः (पुं०) अलकापुरी के राजा मयूर और रानी नीलंयशा का पुत्र, जो प्रतिनारायण वनकर तीनखण्ड के आधिपत्य को प्राप्त हुआ। For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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