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अशुद्ध-चेतना
अशुद्ध चेतना (स्त्री०) कार्यानुभूति और कर्मफलानुभूति अशुद्ध
चेतना |
अशुद्ध द्रव्यं (नपुं०) द्रव्य उपाधि जन्य। अशुद्ध पर्याय: (पुं०) व्यञ्जन पर्याय का विषय । अशुद्धभाव: (पुं०) अस्वाभाविक परिणाम, अन्योपाधिक भाव, बाह्यभाव।
अशुद्धसंग्रह: (पुं०) जाति विशेष ग्राहक । अशुद्धि (स्त्री०) मलिनता, अपवित्रता । अशुद्धि (वि०) अपवित्र, मलिन कर्मबद्ध । अशुभ (नपुं०) पाप, अनिष्ट।
अशुभ (वि०) १. अकल्याणकारी, अमांगलिक, अनिष्टकारी, अहितकर । २. विषय कषाय से आविष्ट, राग-द्वेषात्मक वृत्ति।
अशुभ - काय योग: (पुं०) काय सम्बंधी प्राणातिपात जन्य योग । अशुभक्रिया (स्त्री०) अशुभ अतिचार, ज्ञान, दर्शन, चरित्र और तप में दोष ।
अशुभयोग (पुं०) मारन ताड़न का योग । (समु० ८/२८) अशुभोदय (पुं०) पापोदय पापकर्म का उदय नहि विषादमियादशुभोदये। (जयो० २५/६४) अशुभस्य पापस्योदये' (जयो० ० २५/६४) अशुभोपयोगः (पुं०) विषय - कषायादि जन्य उपयोग । "शरीरमेवाहमियान्विचारोऽशुभोपयोगो जगदेककारो।" (समु० ८/२१) "दुष्टाच्चयोगादशुभोपयोगे पापं महत्स्यादमुकप्रयोगे । (समु० ८/३२)
अशुभोपयोगी (वि०) अशुभ योग वाला जीव, शुभाच्चयोगादशुभोपयोगी यदेति पुण्यं च ततः च सभोगी (समु०
८/३१)
अशून्य (वि०) पूरा किया गया, निष्पादित अभाव रहित । अशूद्र (वि०) अछूत अस्पृश्य जन्मना खलु शूद्रः सन्कुलीनस्यात्सुचेष्टया (हित०सं० २६/ अशृत (वि०) अपरिपक्व, कच्चा नहीं पकाया गया। अशेष (वि०) समग्र सम्पूर्ण समस्त सभी तस्या अपाङ्ग शर-संहतिरप्यशेषा ।' (सुद० १२४) इत्येव मोहं क्षपयत्रशेषं । (भक्ति०३१) प्रतिदेशमशेषवेशिनः' (जयो० १०/७०) पराजिताशेषनरेशवर्गः । (समु० ६ / ९ ) अशेषपरिच्छद (वि०) सर्वथा त्याग (वीरो० १८/४० ) अशेष मानव (पुं०) सम्पूर्ण नृप समूह 'अशेषा चासौ भूः पृथिवी तस्या मानवा नराः।" (जयो० १/५७)
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अश्वग्रीवः
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अशोक (वि०) [न शोको अशोकः] जिसे शोक नहीं, शोकरहित, प्रसन्न हर्षित आमोद युक्त' निश्चिन्त । 'अशोक आलोक्य पतिं ह्यशोकं प्रशान्तचित्तं व्यकसत्सुरोकम्' (जयो० १/८४)
अशोकं / शोकवर्जितम्, अशोको / निश्चन्तो । (जयो० वृ० १/८४) स कोकयत्किन्त्रिस्त्रशोक' (मुद० १/१०) अशोकः (पुं०) सम्राट अशोक, मौर्यवंश का प्रसिद्ध शासक । चन्द्रगुप्त मौर्य का पौत्र (वीरो० २२/१२) ।
अशोकः (पुं०) अशोक वृक्ष। (जयो० १ / ८४) अशोकनामा वृक्षो व्यकसत् (जयो० १ / ८४ )
अशोकं (नपुं०) कामदेव का एक बाण, पांच बाणों में अशोक याण भी कामातुर का घातक है। अशोकतरुः (पुं०) अशोकवृक्ष | अशोकचित्त (नपुं०) शोक रहित हृदय वाला।
अशोच्य (वि०) अनुचित शोक |
अशोभनीय (वि०) शोभा के योग्य नहीं, कुरूपता युक्त अकान्त (जयो० वृ० ११/५६ ) अशौचं (नपुं०) अशुचिता, अपवित्रता, अस्पृश्य, मैल
(जयो० १९/५)
अशीच क्रिया (स्त्री०) मलोत्सर्जन क्रिया (जयां०] १९/५) अशौचविधि (स्त्री०) अशोचक्रिया, मलिन परिणाम । अश्नं (नपुं०) भोजन, खाना, आहार । धात्रीफलं केवलमश्नुवानः । (जयो० १/३८)
अश्नीत (वि०) खाने योग्य।
अश्नुवान (वि०) भुआन, भोगने वाला।
अश्मन (पुं० ) [ अश्+मनिन्] रत्न, प्रस्तर। 'भूषणेष्वरुणनीलसितामश्मनां'। (जयो० ५ / ६१ ) अश्मानि रत्नानि तेषां भूषणेषु ।' (जयो० वृ० ५/६१)
अश्मन्तकः (पुं० ) [ अश्मानमन्तयति इति अश्मन् + अंत + णिच्ण्वुल्] अलाव, अंगीठी। +
अश्मरी (स्त्री० ) [ अश्मानं राति इति रा.क. डीप] पथरी, रोग विशेष
अश्व (पुं०) तुरंग, घोड़ा, अवंबर, उत्तम घोड़ा (जयो०
१३ / ९२ ) किं छाग एवं महिषः किमश्वः ।' (वीरो० १/३१) अतामश्वानां मध्ये वराः श्रेठा (जय० कृ० १३/९२) अश्वग्रीवः (पुं०) अलकापुरी के राजा मयूर और रानी नीलंयशा का पुत्र, जो प्रतिनारायण वनकर तीनखण्ड के आधिपत्य को प्राप्त हुआ।
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