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अवरूप
११७
अवलेपः
अवरूप (वि०) कुरूप, विकलांग, ०रूपहीन, असुन्दर, (जयो० ११/७१) अवर्णनीयोऽकथनीयो भास्करः। (जयो० ___०अमनोरम, अरम्य, अमनोज्ञ।
पृ० ११/७१) अवरोचकः (पुं०) [अवारुच्+ण्वुल्] रुचि का अभाव, क्षुधा अवर्णवादः (पुं०) घोरनिन्दा, व्यर्थ निन्दा। (सम्य० ७५) का अभाव।
अवर्णवादाख्यपयोनिधिं तु। (जयो० ३/९०) निन्दाकरणं न अवरोधः (पुं०) [अवरुध्+घञ्] १. प्रतिबन्ध, प्रतिरोध, प्रतिपादितः। जातिवर्णरहितत्व। (जयो० वृ० २८/२५)
बाधा, रुकावट। २. अन्तःपुर, रनवास, रानियों का निवास। 'गुणवत्सु महत्सु असद्भूतदोषोद्भावनवर्णवादः। (स० ३. रानिया, रानी। “अवरोधिमितोऽवदत् पदम्।" (जयो० सि०६/१३) अन्त:कलुषदोषोद सद्भूतमलोद्भावनमवर्णवादः। १०/३) अवरोधमन्तःपुरम्। (जयो० पृ० १०/३), ५. (स०सि०६/१३) अर्थात् गुणी। महापुरुषों में जो दोष नहीं बन्दीकरण, नाकेबन्दी, घेरा, किलाबन्दी, आवृत्तिकरण, उनका अन्तरंग की कलुषता से प्रकट करना अवर्णवाद
आवरण। अवरोधक (वि०) [अवरुध्+ण्वुल] प्रतिरोधक, प्रतिबन्धक, अवलक्ष (वि०) [अव+लक्ष्+घञ्] श्वेत, शुभ्र।
रोकने वाला, घेरा डालने वाला, अर्गल। (जयो० पृ० अवलग्न (वि०) [अव+लग्+क्त] ०तत्पर, ०संलग्न, ०तल्लीन, ३/१०९) बाधक।
सटा हुआ, चिपका हुआ, ०मध्यगत। माभूक्षमाभूलभतेऽवलग्नं। अवरोधकः (पु०) पहरेदार, द्वारपाल।
(जयो० ११/२४) स्वच्छ-रक्षणावलग्नायाप्युच्चैः (जयो० अवरोधनं (नपुं०) [अवरुध्+ ल्युट्] १. अन्त:पुर, २. बाधा, ११/९६) अवलग्नो मध्यदेशः (जयो० वृ० ११/९५) प्रतिरोध, अड़चन। (जयो० १३/३१)
अवलग्नकः (पुं०) कटिभाग। (जयो० १०/५९) अवरोधनभाजि (स्त्री०) अन्त:पुरसम्बाहका, अन्त:पुर स्त्री। अवलम्बः (पुं०) आश्रय, आधार, सहारा, आड, स्तम्भ।
(जयो० १३/३१) अवरोधनभाञ्जि राजितो नरयानानि चलंति (सुद० १२१६, पृ० १४१) 'स्वावलम्ब उपदेश कर" विस्तृते। (जयो० १३/३१)
अवलम्बनं (स्त्री०) [अवलम्ब्+क्त] आश्रित, आधारित। न अवरोध-वधू (स्त्री०) अन्त:पुर की स्त्री, "अवरोधस्यान्तः विलम्बित-शीघ्रमेव निर्गतम्। (जयो० ९/५३)
पुरस्य वधूः स्त्रीरवतारयन्।" (जयो० पृ० १३/८१) अवलम्बिन् (वि०) [अव+लम्ब्+इनि] आश्रित, आधारित, अवरोधयनं (नपुं०) अन्त:पुर। 'तदवरोधायने मरुदेव्या।' (दयो० गतिर्ममैतस्मरणैकहस्तावलम्बिनः काव्यपथे प्रशस्ता। (सुद० पृ० ३१)
१/३) अवरोधिक (वि०) [अवरोध+ठन्] प्रतिरोध जन्य, गतिरोधयुक्त अवलिप्त (भू०क०कृ०) [अव+लिह्+क्त] १. आसक्त, बाधाजनक, आवरण युक्त।
तल्लीन, तत्पर, २. अभिमानी, घमण्डी, अहंकारी। ३. अवरोधिकः (पुं०) द्वारपाल, पहरेदार।
सना हुआ, आबद्ध, घिरा हुआ, लिप्त हुआ। अवरोधिन् (वि०) [अवरोध+ इनि] प्रतिरोधक, गतिरोधक, | अवलीढ (भू०क०कृ०) [अव+लिह्+क्त] १. स्पृष्ट, व्याप्त, बरधक।
संरुद्ध। (वीरो० , २. खाद्य, भुक्त, चर्बित किया, अवलेह्य। अवरोपणं (नपुं०) उन्मूलन, घटाना, कम करना, नीचे उतरना। अवलीला (स्त्री०) क्रीड़ा, खेल, प्रमोद १. तिरस्कार, अपमान। अवरोहः (पुं०) [अव रुह घञ्] उतार, अध: पतन, अधोरुह। अवलुञ्चनं (नपुं०) [अव+लुञ्च+ ल्युट्] १. लोंच करना, केश अवरोहणं (नपुं०) १. चढ़ना, आरुढ़ होना। २. उतरना, नीचे लुंचन, उन्मूलन, उत्खनन, उखाड़ना, निकालना। जाना।
अवलुण्ठनं (नपुं०) [अव लुण्ठ्+ल्युट्] लोटना, लुढ़कना, भू अवर्ण (वि०) १. वर्ण रहित, कुरूप, २. रंग विहीन, बदरंग, पर लोटना।
३. कलंक, लोकापवाद। ४. वर्ण-स्वर एवं व्यञ्जन की अवलेखः (पुं०) [अव+लिख्+घञ्] टंकन, उत्कीर्ण, उल्लेख, हीनता। ५. निन्दा, घृणा, लांछन। (जयो० ३/५०)
कुरेदना, खुरचना। अवर्णनीय (वि०) अकल्पनीय, ०कथनीय, वर्णन से रहित | अवलेखा (स्त्री०) [अव+लिख्+अटाप्] ०रेखांकित करना, अनिर्वचनीय, ०वचनागोचर। अवर्णनीयप्रभयान्विता मेहवर्णनीयाङ्ग
सुसज्जित करना, विभूषित, रगड़ना, ०साफ करना। मिताभिरामे। (जयो० ११/८०) अवर्णनीयोत्तमभास्करा वा। | अवलेपः (पुं०) [अव+लिप्+घञ्] १. विभूषण, अलंकरण।
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