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अवलेपनं
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२. लिप्त करना, लीपना। ३. अत्याचार, अनाचार, अपमान, बलात्कार । ४. संघ, समाज । ५. अहंकार, अभिमान । अवलेपनं (नपुं० ) [ अव+लिप् + ल्युट् ] अलंकरण, विभूषण सुसज्जीकरण, आलिप्त।
अवलेह (पुं०) [ अव+लिह्+घञ्] १. चटनी, अर्की २. चाटना, लपलपाना।
अवलेहिका ( सक० ) चटनी, अर्क ।
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अवलोक् (सक०) देखना, अवलोकन करना । अवलोकयितुं तदा धनी । (सुद० ३/८) 'अर्थशास्त्रभवलोकयन्नृराट् । ' (जयो० २/५९) उक्त पंक्ति में आवलोक' का अर्थ पढ़ना, अध्ययन करना भी है। अर्थशास्त्रमवलोकयेत् पठेदित्यर्थः (जयो० वृ० २५९) दोष नहीं, उनको अन्तरंग की कलुषता से प्रकट करना अवर्णवाद है। अवलोकः (पुं०) [ अवलोक्+घञ्] देखना, दर्शन, दृष्टि अवलोकनं (नपुं० ) [ अव + लोक् + ल्युट् ] चक्षुःक्षेप, दर्शन, दृष्टि, पर्यवेक्षण (जयो० ३/६१) गात्रावलोकनैर्लब्धफला विधात्रा ।' (जयो० ३/९१) 'अवलोकनैः दर्शनोत्सवैः । ' (जयो० वृ० ३० ९१) चक्षुत्क्षेपो ऽवलोकनमभवत्' (जयो० वृ० १६ / २२) 'साम्प्रतं कुशल तेऽवलोकनादञ्चनैः।' (जयो० ३/३४) २. स्थान विशेष अन्वेषण, पूछताछ। अवलोकन कर्त्री (स्त्री०) पारदर्शिका देखने वाली दृष्टिशीला , | नित्यमेतदवलोकनकर्त्री दृष्टिरस्तु नविकारविभर्त्री । (जयो०
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५/६६)
अवलोकनार्थ (वि०) दर्शनार्थ देखने के प्रयोजन के लिए। (जयो० ८९ )
अवलोकनीयका ( वि०) दर्शनार्हा, दर्शन के योग्य दर्शनीय। सुतनोऽस्तु विभूषणैर्यका खलु लोकैरवलोकनीयका। (जयो० १०/३९)
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अवलोकित (वि०) दृष्टिपथगत देखा गया, दृष्टियुक्त (जयो० वृ० १/७९)
अवलोकिता (वि०) देखती हुई।
आलोकितवती (वि०) दृष्टि गत होती हुई दिखाई देती हुई। (जयो० वृ०५/९०)
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अवलोचिक (वि०) यथार्थ संवेदनकारिणी, यथार्थ ज्ञान कराने वाले (जयो० ११/५६) सकज्जले रम्य दृशौ तु तत्त्वावलोचिके अप्यतिचञ्चलत्वात् (जयो० ११ / ६६ ) अवरकः (पुं०) [ अव+ वृ+अप् ततः संज्ञायां वुन्] १. रन्ध्र छिद्र, छेद, २. खिड़की।
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अववादः (पु० ) [ अव+वद्+घञ्] १. घृणा, निन्दा, उपेक्षा, अपमान, अनादर, अवहेलना। २. आदेश, आज्ञा, आश्रय । अवव्रश्च : (पुं० ) [ अव + व्रश्च + अच्] खपची, छिपटी । अवश (वि०) १. अवज्ञाकारी उपेक्षाशीलक, स्वेच्छाचारी, लाचार, स्वतन्त्र, मुक्त। २. न वशो अवश:- जो वश में नहीं, पराधीन, पराश्रित, असह्य शक्तिहीन ।
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अवसण्डीनं
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अवशङ्गमः (पुं०) स्वतंत्र, जो दूसरे के अधीन न हो। अवशिष्टः (पुं०) १. शेष बचा हुआ । (जयो० ३/५०) उद्धरित (जयो० ११२३६) किं वावशिष्टमिह शिष्टसमीक्षणीयम्।” (जयो० १२/१४२) २. जूठन थूक । श्रुत्वास्य समुद्दिष्टं खलु ताम्बूलावशिष्टमच्छिम् ।" (जयो० ६/८२) ३. अन्त्य, अन्य। (जयो० ४/६५, जयो० १/८१ अवशेष: (पुं०) [ अवशिष्पत्र] १. अवशिष्ट, बच्चा, बाकी,
शेष २. असमाप्त, शेष युक्त।
अवश्य (वि०) नियत आवश्यक । नपुंसकस्वभावस्य स्वभावश्यमियं तु किम् (सुद० ८४) बालिकयोरतनुज वेश्यावश्यः । ( सुद० ९१) "न वश्यमवश्यं चञ्चलम् । " (जयो० १२ / ७४)
अवश्यं (अव्य०) निश्चय, जरूर |
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अवश्यक (वि०) [ अवश्य कन्] आवश्यक, नियत, करणीय कार्य, श्रमण एवं श्रावक के कर्तव्य ।
अवश्यकरणीय (वि०) अवश्य करने योग्य, आवश्यक कर्तव्य
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योग्य। (जयो० वृ० १ / १०९ )
अवश्यम्भाविन (वि०) [ अवश्यं भू. इनि] अनिवार्य, आवश्यक, निश्चत ही, अवश्य होने वाला।
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अवश्या (स्त्री०) [ अवश्यैक] कुहरा, पाला, धुंधा अवश्याय: (पुं० ) ओस, कुहरा, पाला। अवश्रयणं नपुं० [अव श्रि ल्युट्] उतारना, लेना। अवष्टब्ध (भू०क० कृ० ) [ अव + स्तम्भ + क्त] १. आश्रयवंत, गृहीत पकड़ा गया। २. बाधायुक्त, शुका हुआ। अवष्टम्भ: (पुं० ) [ अव + स्तम्भ+घञ् ] आश्रय, आधार, सहारा। अवष्टम्भनं (नपुं० ) [ अव + स्तम्भ + ल्युट् ] स्तम्भ, आश्रय, टेका, आधार अवसक्त (भू०क० कृ० ) [ अव+सञ्जु + क्त ] प्रस्तुत, स्थित, संपर्कशील अवसक्थिका (स्त्री०) वेष्टन, पट्टी, कमर में विशेष रूप से बांधी जाने वाली पट्टी ।
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अवसण्डीन (नपुं०) [ अव+सम.डी. क्त] उड़ान, पक्षि समूह का गमन, ऊँचे की ओर गति।