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अवतारक
११४
अवनं
उदय, आरम्भ, अवतरण, प्रकट, ३. अनुवाद, भूमिका, प्रस्तावना। 'सतृष्णया नाभिसरस्य वापि किलावतार: शतकस्तयापि। (जयो० ११/५) 'जलाशये ऽवतार: समागमनमपि।' (जयो० वृ० ११/५) "दृशोरमुष्या
द्वितयेऽवतारं।" (सुद० २/४८) अवतारक (वि०) जन्म लेने वाला। अवतारणं (नपुं०) [अव+त+णिच्+ल्युट्] अवतरण करना,
उतारना, पूजा करना, शान्त करना, आराधना करना। "अवतारस्यावतरणस्य तं ज्ञानं तदवतारणं" (जयो० वृ० २४/८२) प्रेषितश्चर इतोऽवतारण हेतवेऽर्कपदयोः सुधारणः।
(जयो० ७/५६) अवतारविधिः (स्त्री०) जन्मविधि, जन्मधारण करना। (वीरो०
१९/१८) अवतीर्ण (भू०क०कृ०) [अव+तृ+क्त] १. अनुरक्त, नीचे
आया, उतरा हुआ, २. पार हुआ, पार प्राप्त। "सा श्रवणेऽवतीर्णा" (जयो० १/६५) "राजसभायामवतीर्णा
प्राप्ता।" (जयो० वृ० १/६५) अवतृ (सक०) [अव+तृ] उतारना, अवसरित आना, जन्म
लेना। अवतारयति (जयो० २६/२१ अवतरन्ती (जयो०
३/११२) अवतोका (स्त्री०) गर्भपात युक्त गाय। अवत्तिन् (वि०) [अव+दो+इनि] विभाजित, पृथक्करण अवदंश: (पुं०) [अव+दंश्+घञ्] उत्तेजक आहार, चटपटा
भोजन, चटपटी खाद्यवस्तु।। अवदा (सक०) देना, बिठाना, स्थित करना। द्वास्थितो
रविकरानवदात उत्पलेषु सरसीव विभातः। (जयो०५/२२) अवदाघः (पुं०) [अव+दह्+घञ्] ०ग्रीष्म, गर्मी, तपन,
तेज, निदाघ, अग्नि, ज्वाला। अवदात (वि०) [अव+दै+क्त] शुक्ल, निर्मल, पवित्र, स्वच्छ,
उज्ज्वला 'गुणावदाता सुवयः स्वरूपा।' (जयो० १/७४) गुणैः सौन्दर्यादिभिः अवदाता निर्मला शुक्ला च। (जयो०
वृ० १/७४) अवदानं (नपुं०) [अव+दो+ल्युट] प्रदान, अवग्रहज्ञान, शौर्य
सम्पन्न, प्रशस्त दान, बोध 'अवदीयते खण्ड्यते परिच्छिते
अन्येभ्यः अर्थः अनेनेति अवदानम्।' (धव०१३/२४२) अवदारणं (नपुं०) [अव+दृ+णिच्+ ल्युट्] विदारण, फाड़ना,
चीरना, विभाजन, खनन। अवदाहः (पुं०) [अव+दह्+घञ्] उष्ण, गर्मी, जलन, तपन।
अवदीर्ण (भू०क०कृ०) [अव दृ+क्त] खण्डित, विभाजित,
विदीर्ण, टूटा हुआ, विनष्ट। अवदोहः (पुं०) [अव+दुह्+घञ्] दुहन, दूध, दुग्ध। अवद्य (वि०) १. त्याज्य, निद्य, प्रशसनीय। १. सदोष, निन्दाह,
अप्रिय, घृणित, २. अधम, नीच, निम्न। अवद्योतनं (नपुं०) [अव+द्युत ल्युट्] प्रकाश, चमक, कान्ति,
प्रभा। अवधानं (नपुं०) [अवधा+ ल्युट्] ध्यान, सकर्तका, लगन,
रुचिपूर्ण, हर्षसहित। (जयो० वृ० ३/३८) अवधानपूर्वक (वि०) ध्यानपूर्वक, तल्लीनतापूर्वक। (जयो०
वृ० ३/३८) अवधारः (पुं०) [अवधि+णिच+घञ] निर्धारण, निश्चय,
प्रतिबन्ध, सीमा बन्धन। अवधारक (वि०) [अव++णिच्+ण्वुल] निश्चय करने वाला,
दृढ़पकल्पी, उचित निर्णयक। अवधारणं (नपुं०) [अव+ धृ+णिच्+ल्युट] सीमाकरण,
प्रतिबन्धन, निश्चय, निर्धारण। अवधि: (स्त्री०) [अवधा+णि] १. सीमा, मर्यादा, २. प्रयोग,
ध्यान, ३. उपसंहार। ४. अवधिज्ञान-अवधिं प्रति यत्नवान्।
(वीरो० ७/४) अवधिज्ञानं (नपुं०) अवधिज्ञान, मर्यादित ज्ञान पांच ज्ञानों में
तीसरा ज्ञान, जो परिमित विषय में प्रवृत्त हो। अवधीर (अक०) अनादर करना, अवहेलना करना, अपमान करना। अवधीरणं (नपुं०) [अव+धीर+ल्युट्] अनादर भाव, अपमान
भाव, प्रलोपक। (जयो० २/८३) अवधीरणा (स्त्री०) [अव+धीर+ल्युट्टाप्] अनादर, अपमान,
असम्मान। अवधूत (भू०क०कृ०) [अव+धू+ क्त] १. लहराया/फहराया
हुआ, हिलाया हुआ, २. अस्वीकृत, घृणित, अपमानित,
तिरस्कृत। अवधूननं (नपुं०) [अव+धू+ल्युट्] १. हिलाना, ठहराना, २.
तिरस्कार, अपमान, ३. क्षोभ, आकुलता। अवध्य (वि०) मारने के अयोग्य, वध न करने याग्य। अवध्वंस: (पुं०) १. परित्याग, विमोचन, २. नाश, चूर्ण
करना, खण्ड-खण्ड। ३. निन्दा, घृणा, लांछन। अवनं (नपुं०) १. रक्षा, सुरक्षा, प्रतिरक्षा, २. कल्याण, हित।
"वाससोऽहि भुवि जायतेऽवनम्।" (जयो० २/५०) "अवनं/रक्षणार्थ, परिधानानुकूल्यार्थमेवा" (जयो० वृ०
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