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अल्पाहारिन्
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अवक्वणः
अल्पाहारिन् (वि०) अल्प भोजी, कम भोजन करने वाला, अवकुण्ठनं (नपुं०) [अव+कुण्ठ्+ल्युट्] घेरना, आकृष्ट करना, आहार परिमितता, ऊनोदरी।
परिधि बनाना। अल्पेतर (वि०) बड़ा, महत्।
अवकुण्ठित (वि०) [अव कुण्ठ्+क्त] परिवेष्टित, घेरा हुआ, अल्पोपाय (वि०) छोटे साधन वाला।
आकृष्ट। अव् (सक०) बचाना, रक्षा करना, समझना, पसंद करना, अवकृष्ट (भू०क०कृ०) [अव+ कृष्+क्त] निष्कासित,
संतुष्ट करना, इच्छा करना, भावना करना, उन्नत करना, बहिष्कृत, निकाले हुए, ०उपेक्षित, ०बहिर्भूत, बाहर "स्वागच्छ गच्छ प्रसादोपरिसप्तमवेहि तम्'। जो प्रसाद किया, दूर हटाया। (जयो० १५/८०) अवकृष्टमिवाशु के ऊपर सो रहे हैं, उन्हें ही अपना मित्र समझिए! 'अवेहि कोषतो विजिगीषो स्मरचक्रवर्तिनः। नित्यं विषयेषु कष्टम्' (सुद० पृ० १२१) अवेत्य भुक्तेः अवक्तृप्तिः (स्त्री०) [अव क्लृप्+क्तिन् सम्भावना, सभाव्यता, समयं विवेकात्। (वीरो० ५/३५) ।
उपयुक्तता। अव (अव्य०) [ अव अच् ] यह क्रिया से पूर्व उपसर्ग रूप में | अवकेशिन् (वि.) [अवच्युतं कं सुखं यस्मात्] फलविमुक्त,
प्रयुक्त होता है। जिसका अर्थ-दृढ़, संकल्प, निश्चय बंजर, सुख विहीन, आधार हीन। परिव्याप्ति, अनादर, ०आश्रय, ०अवमूल्यन, आदेश अवकोकिल (वि०) [अवक्रष्टः कोकिलया] कोकिल द्वारा आदि अर्थ निकलता है। 'अवागमिष्यमेवचेदागमिष्यम्।' न तिरस्कृत। किं स्वयम् (सुद० ७७) मया नवागतं भद्रे। सुहृद्यापतितं अवक्र (वि०) सीधा, अनुकूल, सच्चा। (जयो० २२/६५) गदम्। दर्पवतः सर्पस्येवास्य तु वक्रगतिः सहसाऽवगता। ___ वक्रभूः किल विधाववक्रे। (जयो० २२/६५) (सुद० पृ० १०५) दर्प से फुकार करने वाले सर्प के अवक्रविधिः (स्त्री०) अनुकूल शुभ आचार, भाग्यानुकूल।
समान इसकी कुटिल गति का आज सहसा पता चल गया। (जयो० २२/६५) अवकट (वि०) [अव-स्वार्थ-कटच्] नीचे की ओर, पीछे की अवक्रन्द (वि०) [अव+क्रन्द्+घञ्] क्रन्दन करने वाला, तीव्र ___ ओर, विपरीत, विरोधी।
रुदन वाला। अवकट (नपुं०) विरोध, विपरीत।
अवक्रन्दनं (नपुं०) [अव क्रन्द ल्युट्] अतिक्रन्दन्, तीव्र रुदन, अवकर: (पु० [अव कृ अप] रज साफ करना, धूल उच्चक्रन्दन। झकटना।
अवक्रमः (नपुं०) [अव+क्रम्+घञ्] नीचे उतारना, अधाक्रम, अवकर्तः (पुं०) [अव कृत्+घञ्] टुकड़ा, धज्जी, वस्त्र के उतार, ढलान। छोटे हिस्से।
अवक्रमः (पुं०) [अव+की+अच्] १. कर, राजस्व वसूली, २. अवकर्तनं (नपुं०) [अव+कृत्+ल्युट्] काटना, टुकड़ा करना। उधार देना। अवकर्षणं (अव कृष्+ ल्युट) खींचना, निकालना, बाहर करना, अवक्रान्तिः (स्त्री०) [अव+क्रम्+क्तिन्] उतार, उपागम। निष्कासन।
अवक्रिया (स्त्री०) [अव+कृ+श+टाप्] भूल, विस्मरण, स्मृति अवकलित (वि०) [अव कल्+क्त] १. अवलोकित, दर्शित. में न रहना, चूक जाना। दृष्टिगत। २. ज्ञात, गृहीत, लिया हुआ।
अवक्रोशः (पुं०) [अव+क्रुश्+घञ्] १. दुर्वचन, निन्दा, अपशब्द, अवकाश: (पुं०) [अव काश्+घञ्] समय, अवसर, मौका। २. अपध्वनि, ग्लानि युक्त वचन।
नावकाशममुकान्तृकलाप: क्वापि सम्यगिति पातुमवाप। अवक्तव्य (वि०) एक साथ द्रव्य का कथन, स्वकीय द्रव्य, "अवकाशे सुखे वीचिः इति विश्व०) (जयो० ५/६२) क्षेत्र, काल, भाव और परकीय काल भावादि के साथ (जयो० १५/६)
कथन। स्यादवक्तव्य स्याद्वाद की एक दृष्टि। (वीरो० अवकीर्णिन् (वि०) [अवकीर्ण इनि] संयमघातक, ब्रह्मचर्य १९/६) का दोषी।
अवक्लेदः (नपुं०) [अवः क्लिद्ः ल्युट्] टपकना, गिरना, कुहरा अवकुञ्चनं (नपुं०) [अव कुञ्च+ ल्युट्] झुकाव, ०मोड़, छाना। ०परावर्त, सिकुड़न, ०आकुञ्चन, अप्रसारण।
अवक्वणः (अव+क्वण+अच्) व्यर्थ आलाप, स्वरविहीन रूघ्न।
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