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अलस्
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अले अलेले
अलस् (अक०) [अ+लस्] कान्तिहीन होना, अप्रभा होना। अलिजिह्वा (स्त्री०) कोमल तालु, घांटी, गले के अन्दर कौवा। अलस (वि०) [न लसति व्याप्रियते-लस्+अच्] १. आलसी, अलिन् (पुं०) १. भ्रमर, भौरा, २. बिच्छु।
उदासीन, सुस्त, क्रियाहीन, अनुद्यमी, स्फूर्तिरहित, २. अलिगर्दः (पुं०) सर्प, अहि।।। थका हुआ, श्रमवियुक्त।
अलिङ्ग (वि०) लक्षण विहीन, चिह्न रहित। अलसक (वि०) [अलस कन्] ०अकर्मण्य, कर्त्तव्य रहित, अलिञ्जरः (पुं०) [अलनम्-अलिः अल्-अन् तं जरयति उदासीन, परिश्रम रहित।
इति-जृ+अच्] जलपात्र। अलसज्ञा (वि०) आलस्य को प्राप्त हुई, रसज्ञता रहित। अलिनागः (पुं०) भ्रमरराज, श्रेष्ठ शृंग। "वारिजे
आलस्य (वीरो० ५/२०) गुणांस्तु सूक्ष्मानपि सालसज्ञा। कमलिनीमलिनागो।" (जयो० ४/५६) अलिर्धमर एव (जयो० २४/८७)
नागः श्रेष्ठ,गः। (जयो० वृ० ४/५६) अलसत्व (वि०) आलस्य, उदासीनता, स्फूर्ति का कमी, अलिनिनादः (पुं०) भ्रमर गुन गुन (वीरो० ६/१४)
० श्रम विहीनता। (जयो० १/६) “विद्याऽनवद्याऽऽपं अलिपकः (पुं०) १. कोयल, २. भ्रमर, ३. कुत्ता। 'पिकेऽपिकस्तु
बालसत्वं'। दधाम्यहं तम्प्रति बालसत्वं। (वीरो० १/७) स्यात्पिकालिरतहिण्डके' इति विश्वलोचन:। अलब्ध (वि०) अनुपलब्ध, उपलब्धि रहित। (जयो० २३/११) अलिबलं (नपुं०) भ्रमर सामर्थ्य, भ्रमरशक्ति। अलब्धपूर्व (वि०) अलौकिक, पूर्व में नहीं प्राप्त हुई। अलाभ (वि०) इच्छित की प्राप्ति न होना, अलाभ नामक प्रियामलब्धपूर्वामिव सुन्दरी श्रिया। (जयो० २३२११)
परीषह। अलातः (पुं०) अंगार, इंगाल।
अलिमाला (स्त्री०) भ्रमरतति, भ्रमरपंक्ति, भौंरों का समूह। अलाबुः (स्त्री०) [न लम्बते, न लम्ब्+उ णित्, न लोपश्च "अनयोः करकुङ्मलेऽलिमाला। (जयो० १२/१०१) बृद्धि:] लम्बी चौकी, आल, गडेलू, तुम्बी। (जयो० अलिसमूहः (पुं०) भ्रमर समूह, भ्रमरपंक्ति।
अलीक (वि०) [अल+वीकन्] १. मिथ्या, असत्य, अलाबुफलं (नपुं०) तुम्बीफल, लौकी उरोजयुगलं तत्सहकारि | असत्प्रलापी। २. अरुचिकर, अप्रिय, अहितकर। (मुनि०२) सहाजालाबुफलप्रतिहारि। (जयो० १४/६५)
अलीक-कथा (स्त्री०) असत्यभाषण, मिथ्या कथन, झूठ अलारम् (नपुं०) [ऋ+यङ् लुक्+अच् रस्य ल:] द्वार, दरवाजा। प्रतिपादन, मिथ्याव्यापार। चौर्यालीककथाकृतोऽपि न भवेत् अलि: (पुं०) १. भौंरा, २. भ्रमर, षट्पट। २. बिच्छु, ३. कौवा, सा कामिनी कामिनः। (मुनि०२) ।
कोयल, ४. मदिरा, शराब। त्वदीय-पादाम्बुजालेः । अलीक-भाषणं (नपुं०) मृषाभाषण, मिथ्याकथन, झूठारोपण। सहचारिणीयम्। (सुद० २/३४) तुम्हारे चरण-कमलों में | मृषानयोऽलीकभाषणप्रमुखा दोषा। (जयो० वृ० २/१४४) भ्रमर के समान। "अम्भोजान्तरितोऽलिरेवमधुना। (सुद० | अलीकवचनं (नपुं०) मिथ्यावचन, मृषा कथन, मिथ्यारोप। १२७) गन्ध का लोलुपी भौंरा कमल के अन्दर ही बन्द | अलीकवाक् (पुं०) मिथ्यावाणी, झूठाकथन। 'नालीकवागित्यसको होकर मरण को प्राप्त होता है।
धाराया' (समु० ३/२३) अलिकं (नपुं०) [अल्यते भूष्यते-अल+कर्मणि इकन्] शिर, | अलीकवादी (वि०) झूठ बोलने वाला, मिथ्या-अभिभाषक,
मस्तक, ललाट। अलिके ललाटे च तिलकापित। (जयो० मृणावाची। दत्वा समाने तुमगांकुलादीन्वुतो १२/१०१)
भवानेवमलीकवादी। (समु० ३/३१) अलिकः (पुं०) भ्रमर, भौंरा, अलि, षट्पद। ये अलय एवालिया अलीकिन् (वि०) मिथ्यावादिता, अप्रियता। भ्रमरास्तेषां।'' (जयो० १/८२)
अलुः (पुं०) छोटा पात्र, कलशी। अलिकुटुम्बिनी (स्त्री०) भौंरी, भ्रमरी, भ्रमर की गृहिणी। अलुक् (पुं०) [नास्ति विभक्तेः लुक् लोपो यत्र] अलुक् समास 'वलाहक-कुलमलिकुटुम्बिनीव।" (दयो० ५३)
विशेष, जिसमें पूर्वपद की विभक्ति का लोप नहीं होता। अलिकुलं (नपुं०) भ्रमर समूह, भ्रमर समुदाय, भ्रमर झुण्ड। अलुब्धकः (पुं०) १. बहेलिया (सुद० ७/८), २. लोभ रहित। अलिकोचितः (पु०) ललाट प्रान्त, मस्तक भाग। अले अलेले (अव्य०) अरे, अए, ए। मागधी, पैशाची प्राकृत "अलिकोचितसीम्नि कुन्तला।" (जयो० १०/३३)
में प्रयुक्त।
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