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अल्
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अलबालं
अल् (अक०) योग्य होना, सक्षम होना, समर्थ होना। 'कवितां (वीरो० ५/१४)शृंगारित करना। (जयो० १।८६) अलङ्करोमुदाऽलम्।' (सुद० १/७)
त्याम्रतरुर्विशेष। अलङ्करोति भूषयति पूरयति चेति। (जयो० अलकः (पुं०) ०केश, ०बाल, धुंघराले बाल। कथमप्युदिताल- वृ० १/८६) कालिभिः। (जयो० १३/७१)
अलङ्कृतवान् (वि०) शोभा जन्य। (सुद० ३/१८) अलक्त (वि०) [न रक्तोऽस्मात्, यस्य लत्वं-स्वार्थे कन्] अलङ्कृतिः (स्त्री०) [अलंकृ+क्तिन्] १. आभूषण, आभरण, महावर, रागिमा लालिमा।
शोभा, रम्यता, सजावट, २. साहित्यिक विभूषण, रस, अलक्षण (वि०) लक्षण रहित, चिह्नविहीन अशुभ, अपशकुन। छन्द, अलंकार पूर्णाकृति। अलंकारशास्त्र। (जयो० २/५५) अलक्षणं (नपुं०) अपशकुन, अशुभ, अशुभ चिह्न।
श्रीमतों भगवती सरस्वती सागलङ्कृति विधी वपुष्मतीम्। अलक्षित (वि०) अनवलोकित, अदृष्ट, अदर्शित।
(जयो० २/४१) व्याकृति शुचिमलङ्कृतिं पुनश्छन्दसां अलक्ष्मी (स्त्री०) दरिद्रता, निर्धनता, लक्ष्मी अभाव।
ततिमिति त्रयं जनः। (जयो० २/५५) (अलंकृतिमलङ्कारशास्त्रम्) अलक्ष्य (वि०) अज्ञात, उद्देश्यविहीन।
अलक्रिया (स्त्री०) [अलम् कृ+श+टाप्] विभूषित करना, अलक्ष्यगतिः (स्त्री०) उद्देश्यहीन गति।
सजाना, आभूषण धारण करना। अलगर्दः (पु०) [लगति स्पर्शति इति लग्+क्विप्, लग् अर्दयति अलङ्घनीय (वि०) उल्लंघन करने में असमर्थ, अपारनीय,
इति। अर्द। अच्, स्पृशन्, सन् अर्दो न भवति) पानी का पार नहीं करने योग्य। सर्प।
अलजः (पुं०) [अल+जन्ड] पक्षी विशेष। अलघु (वि०) महत्, बड़ा, भारी, अधिक, जो छोटा न हो, अलञ्जर: (पुं०) [अलं सामर्थ्य जणाति] मर्तबान, मिट्टी का अनल्प। (जयो० १/९३)
बर्तन, घड़ा। अलघु-वृक्षः (पुं०) बृहत् वृक्ष, महान् व तरु, उन्नत वृक्षा अलम् (अव्य०) १. पर्याप्त, अधिक, यथेष्ट, काफी। (सुद० (जयो० १/९३)
८८) २. योग्य, सक्षम, ३. कोई प्रयोजन नहीं, बस, इतना अलङ्करणं (नपुं०) [अलं+कृ+ ल्युट्] १. आभूषण, आभरण, ही, बहुत हो चुका, कोई लाभ नहीं। ४. पूर्ण रूप से, पूरी
२. सजाना, शोभित करना, विभूषण,श्रृंगार। (दयो० ३) तरह से। अलमिति पर्याप्तम्। (जयो० वृ० १३/०७) "कि अलङ्करणभूत (वि०) सुरम्य, रमणीय, सजे हुए। (दयो०३) प्रयोजनं किमपि साध्यं नास्तीत्यर्थ।" (जयो० वृ०५/९८) महीमण्डलालङ्करणभूतः सुमृदुलसन्निवेशः।
भुवि सत्या अलमपरेण। (सुद० ८८) अधिक कहने से अलङ्करिष्णु (वि०) [अलम्। कृ+ इष्णु च] श्रृंगार करने वाला, क्या? विचारसारे भुवनेऽपि साऽलङ्कारामुदारां कवितां विभूषित करने वाला।
मुदाऽलम्। (सुद० १/७) अलंकार युक्त उदार कविता अलङ्कारः (०) [अलम्+कृ+घञ्] आभूषण, आभरण, विभूषण। भली भांति सेवन योग्य है। यहां सक्षम, समर्थ के योग में
साहित्य की शोभा, शब्द, अर्थ और शब्दार्थ की रमणीयता। 'अलम्' का प्रयोग है। नाहं त्वत्सहयोगमुज्झितुमल। (सुद० अङ्ग को विभूषित करने वाले वस्त्र, आभरणशृंगार प्रसाधन वृ० ११३) आदि। विचारस्य हारो हृदयालङ्कारो यस्य। (जयो० वृ० अलम्पट (वि०) छल रहित, लोभ रहित, पवित्र विचारवाला। ११८६)
अलम्बि (वि०) धारण किया, देखा गया, ०अवलम्बित, अलङ्कारकः (पुं०) [अलम्+कृ+घञ्स्वार्थेकन्] आभूषण, आधारिता पुरन्दरेणोदयिन। समुत्तरमकम्पनेऽलम्बि विभूषण, आभरण।
पुलोममादरः। (जयो० ५/८९) अलङ्कारपूर्ण (पुं०) अलङ्कार सहित, काव्य लक्षणों से परिपूर्ण। | अमल्बुष (पुं०) [अलं पुष्णाति इति] १. वमन, छर्दि। २. अलंकारिपूर्णा कविता (सुद० २/६)
हथेली। अलङ्कारमाश्रितवती (वि०) अलंकार के आश्रय रहने वाली अलय (वि०) १. अविनश्वर, नित्य, शाश्वत, २. गृहविहीन, कामिनी। (जयो० वृ० ३/११)
इधर-उधर रहने वाला। अलकुर्वन् (वि०) अलंकृत करता हुआ। (वीरो० १५/१४) अलले (नपुं०) [अर+रा+के रस्य लः] शब्द विशेष। अलङ्क (सक०) अंलकृत करना, सुशोभित करना, सजाना, | अलबालं (नपुं०) क्यारी का स्थान, पानी देने का स्थान।
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