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अर्ब
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अलकावलिः
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अर्ब (अक०) बध करना, चोट मारना, आघात करना। अर्बुदः (पुं०) सृजन, १. दस करोड़ की संख्या। २. सर्प, ३.
मेघ, बादल। अर्भक (वि०) [अर्भकन्] १. छोटा, सूक्ष्म, थोड़ा। २. क्षीण,
कृश, मूर्ख, बाल, बौना। ३. बालक, बच्चा, शिशु। अर्य (वि०) [ऋ+यत्] श्रेष्ठ, उत्तम, अच्छा, उचित। अर्यः (पुं०) प्रभु, स्वामी। अर्यमन् (पुं०) [अयं श्रेष्ठं मिमीते-मा-कनिन्] १. सूर्य, रवि।
२. मदारलता। (भक्ति २५) अर्यमा (पुं०) सूर्य, राजा, रवि। (समु० ७/८८) यत्रोदयं
यातिकिलार्यमायः। (भक्ति २५) (सूर्य उदय को प्राप्त हो
रहा है) अर्याणी (स्त्री०) वैश्य स्त्री। अर्वन् (पुं०) १. इन्द्र, शक्र। २. घोड़ा, अश्व। (जयो०
१८/९२) अर्ववरः (पुं०) उत्तम घोड़ा, श्रेष्ठ अश्व। अश्वेऽवन्
कुत्सितेऽन्यवदिति विश्वलोचनः। अर्वताभश्वानां मध्ये वराः
श्रेष्ठाः । (जयो० वृ० १३/१२) अर्वाच् (वि०) [अवरे देशे काले वा अञ्चति-अञ्च क्विन्]
इसी ओर आते हुए, इसकी ओर मुख किए हुए। अर्वाचीन (वि०) [अर्वाच्+ख] १. अद्यतन, आधुनिक, वर्तमान
कालिका, २. उलटा, विरोधी। अर्वाचीनं (अव्य०) इस ओर, इस तरफ। अर्शस् (वि०) [अर्शस्+अच्] बवासीर अर्ह (अक०) १. योग्य होना, पूज्य होना, समर्थ, ०शक्य,
०शक्त (जयो० ३/३८) ०सम्मानित होना। २. रहना। योऽर्हतीह। ३. बैठना, स्थिर होना, अामि-(दयो० वृ०
१०६) ४. चाहना--(सुद० १२९) अर्ह (वि०)अर्ह अच्] पूजनीय, सम्माननीय, आदर योग्य,
अधिकार योग्य, उपयुक्त, उचित, (सुद० ७५) मतो भक्तुिमर्हति। (सुद० ७७) अह-ऊँ ही अहँ नमः' इत्येवं
पवित्रमंत्रम्। (जयो०८/) अर्हच्छरणं (नपुं०) अरहंतशरण। कुतोऽर्तिरर्हच्छरणं गताय।
(भक्ति० २५) अर्हणं (नपुं०) [अर्ह + भावे-ल्युट] पूजा, अर्चना, आराधना,
समादर, सम्मान। अर्हत्स्तवनं (नपुं०) वीतराग स्तवन, जिन पूजन। (भक्ति०२५) अर्हदार्यः (पुं०) अर्हद्देव, अरहत। (वीरो० १९/३७)
अर्हत् (वि०) [अर्ह शतृ] १. पूजनीय, योग्य, (सुद० ४/४७)
सम्मानीय, समादरणीय, २. अर्हन्तपद, विनायक (जयो० ८/८६) अर्हत् प्रभु, अरहंत। (भक्ति०वृ० ४)
ओ शिव-जयो० (जयो० १२/१) विनिर्गताऽहत्तुहिनाद्रितो या। (भक्ति०४) अर्हत्त्वाय न शक्तोऽभूत्तपस्यन्नपि दो
बलिः । (वीरो० १७/४३) अर्हतः (पुं०) १. अरहंत भगवान, पंच परमेष्ठियों में प्रथम।
अर्हत्सु (सुद० २/२९) २. पात्र (दयो० वृ० १०६) अर्हन् (वि०) [भू०क०कृ०] अ- अर्हत् अरहन्त, ३. योग्य,
पूजनीय, सर्वश्रेष्ठ, समा ददत्तदुचिताय सदार्हन्। (जयो० ४/४०) अर्हणीय (वि०) पूजनीय, सेवा योग्य। (सुद० २/४२) अर्हन्त (वि०) [अर्ह झ] योग्य, पूजनीय, आदरणीय। अर्हन्तः (पुं०) अरहन्त प्रभु। अभ्यच्चाहन्तमयान्तं। (सुद० ७६) अर्हन्ती (स्त्री०) पूजा, अर्चना। अर्हदुपाश्रयः (पुं०) समवसरण, तीर्थसभामण्डप। केवल
ज्ञान प्राप्ति के समय की जाने वाली सभामंडप। (जयो०
२६/५७) अर्हद्दासः (पुं०) जम्बूकुमार के पिता, नगर सेठ (वीरो०
१५/२५) अय (स०कृ०) पूजा के योग्य, आदरणीय, पूजनीय। अहार्यः (पुं०) पर्वत, गिरि। अहार्यः पर्वते पुसि इति विश्वलोचनः अल् (सक०) सजाना, अलंकृत करना, विभूषित करना।
सरिताभरण-भूषण-सारैर्मण्डयोऽप्यलमकारि कुमारैः। (जयो०
५/११) अलका (स्त्री०) केश, धुंघराले बाल। (१४/१५) अलका (स्त्री०) अलकापुरी, कुबेरपुरी। दर्शकोऽधिपतिरत्र गतयाः
सन्मनुष्यवसतेरलकायाः। (समु०५/२०) (विजयार्धपर्वत पर स्थित नगरी) अलका नाम कुबेरपुरी। (जयो० वृ०
२२/२२) ललितालकां मूर्धभुवमस्या (जयो० २२/२२) अलकानगरी (स्त्री०) कुबेरपुरी। अलकानगरी गरीयसीह। गिरावुत्तरो
नदीदृशी। धनदस्य पुरी परीक्ष्यते प्रतिभूषेव समस्तु साक्षितेः।
(समु० २/१०) अलकापुर (नपुं०) अलकापुर नामक नगर। अलकावलिः (स्त्री०) १. केशावली, केशराजित, केशपंक्ति।
(जयो० १४/१५) ललितामलकावलिं दधान। (जयो० १४/१५) ललितां सुन्दराकारम् अलकानां केशानामावलि पंक्ति दधाम:। (जयो० वृ० १४/१५) २. धात्रीरस की पंक्ति। धात्रीवृक्षाणामावलि। (जयो० वृ० १४/१५)
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