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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ-व्ययः १०५ अर्धनाराचः का। अर्थ-व्यय: (०) धन व्यय, धनखर्च। अर्थित (भू०क०कृ०) प्रार्थित, याचित, इच्छित। अर्थशास्त्र (पुं०) अर्थशास्त्र, विशेष। (वीरो० १८/१४) अर्थित्व (वि०) चाहने वाला, इच्छा करने वाला। अर्थी दोषं अर्थशास्त्रज्ञ (वि०) अर्थशास्त्रज्ञाता। अर्थशास्त्र को नीतिशास्त्र न पश्यति। (जयो० ७० २०/२९) अर्थित्वतः परवशा: भी कहा-प्रत्युवाच वचो व्यर्थमर्थशास्त्रज्ञतास्मयी। (जयो० समिता नवीनाम्। (जयो० २०/२९) ७/४५) अर्थशास्त्रज्ञतास्मयी-नीतिशास्त्रज्ञताभिमानी। (जयो० अर्थिन् (वि०) [अर्थ इनि] अर्थ्यभिलप्प, इच्छुक, प्रार्थित, वृ० ७/८५) याचित, चाहने वाला। अर्थिनां याचकानामभिलाषो: मनोरथ। अर्थशुद्धि (वि०) शुद्धार्थ, शुद्धिविधायक विनिमय नीति शास्त्र। (जयो० १/१७) सम्यक् सूत्रार्थ निरूपण। (जयो० २/५२) अर्थिनी (वि०) ०प्रार्थिनी, ०इच्छिनी, ०अभिलाषिनी। तामाह अर्थशुद्धिदा (वि०) अर्थ की विशुद्धता दिखलाने वाला। पुनरप्येवं कामातुरतयार्थिनी। (सुद० वृ० ९०) अर्थस्य शुद्धिरर्थशुद्धिस्तां ददातीति अर्थशुद्धिदा- अर्थी (वि०) इच्छुक, अभिलाषी। (जयो० २६/७९) सम्प्रत्यर्थी शुद्धार्थप्रतिपादिका। (जयो० वृ० २/५२) च भूभागे। (जयो०७/२१) अर्थशौचं (नपुं०) अर्थ/लेन-देन में शुचिता, धन के प्रति अर्थीय (वि०) पूर्वनिर्दिष्ट, अभिप्रेत। उचित भाव। अर्थय् (वि०) [अर्थ+ ण्यत्] योग्य, उचित, यथेष्ट। (जयो० अर्थ-सम्बन्धः (पुं०) वाक्य से प्रयोजन, अर्थ के प्रति उचित भाव। १/१७) अर्थाचारः (पुं०) नयनाश्रित शास्त्राभ्यास। अर्थ्यभिलाषता (वि०) याचक की अभिलाषा वाला। (जयो० अर्थात् (अव्य०) नि:संदेह, वस्तुतः, यथार्थतः, ऐसा, इस तरह १/१७) 'पूर्णो यतश्चार्थ्य भिलाषतन्तुः।' अर्द (अक०) दुःख देना, पीड़ित करना, प्रहार करना, मारना, अर्थातिशय (वि०) गम्भीरार्थवती, गुर्वी, (जयो० वृ० २०/८१) घायल करना। अर्थानुबन्ध अर्थ नाम की सार्थकता, अर्थ का सम्बन्ध। । अर्दन (वि०) [अर्द+ ल्युट] क्षुभितकर्ता, दु:ख करने वाला, अर्थाजनसार्थकत्व। (जयो० वृ० २/११०) सताने वाला। अर्थान्तरन्यासः (पुं०) अर्थान्तरन्यास नामक अलंकार। (जयो० अर्दनं (नपुं०) दुःख बाधा, पीड़ा, उत्तेजना। ३/१०२, २/४, ३/७०) ७/९१, ७/७८, ५/२५, ३/३१, अर्दित (वि०) रुग्ण, रोगी, व्याकुलित। नार्दिताय तु सदर्चिषे ३/४७, २३/७०) (वीरो० ५/९४, जयो० १४/३९, १६/४८) घृतम्। (जयो० २/१०३) अर्दिताय रुग्णाय-रोगी के लिए। उक्तसिद्ध्यर्थमन्यार्थन्योव्याप्तिपुरः सर:। कथ्यतेऽर्थान्तरन्यासः अर्ध (वि०) [ऋध् णिच्+अच्] अर्ध, आधा, एक के दो श्लिष्टोऽश्लिष्टश्च स द्विधा।। (वाग्भहालङ्कार ४/९१) भाग। स गौरीं जिनामधर्मभङ्गम्। (वीरो० ४/३०) किसी उक्ति को सिद्ध करने के लिए जहां युक्तिपूर्वक अर्धक (वि०) आधा, अर्धभाग। समुदीक्ष्य जिनासनार्धके स्म। किसी अन्य अर्थ को प्रस्तुत किया जाता है वहां | (वीरो०४/३०) 'अर्थान्तरन्यास' अलंकार होता है। तदधीशाज्ञयाऽयातः - अर्धकृत (वि०) आधा किया गया। कुशलं वः पदाजयोः विसारसन्ततेः किं स्याज्जीवनं जीवन अर्धगुच्छः (पुं०) चौबीस लड़ियों का हार। विना।। (जयो० ३/३१) उस नगरी के स्वामी की आज्ञा अर्धचन्द्रः (पुं०) बाण/अर्धचन्द्र नामक हार 'सनागपाशं से मैं आया हूं। मेरा कुशल तो आपके चरणों में है, शरमर्धचन्द्रम्।' (जयो० ८/७७) क्योंकि जल के बिना मछली का जीवन कैसे? एवं अर्धचन्द्राकार (वि०) आधे चन्द्र के आकार वाला। (जयो० सुविश्रान्तिमभीप्सुमेतां विज्ञाय विज्ञा रुचिवेदने ता:। विशश्रमुः वृ० १९/२) साम्प्रतमत्र देव्यः। मितो हि भूयादगदोऽपि सेव्यः।। (जयो० अर्धचन्द्रकृति (वि०) अर्धचन्द्र रूपी आकृति। ५/३४) अर्धचोलक (पुं०) अंगिया, चोली। अर्थापत्तिः (स्त्री०) संजात अदृष्ट दृष्टि की कल्पना। अर्धराजदानम् (नपुं०) आधे राज्य का दान। (वीरो० १७/३९) अर्थिक (वि०) [अर्थयते इत्यर्थी कन] चिल्लाने वाला, घोषणा अर्धदिनं (नपुं०) आधा दिन, अर्ध दिवस। करने वाला। अर्धनाराचः (पुं०) अर्धचन्द्रकार बाण। For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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