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अयोध्यापतिः
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अरविन्द
अयोध्यापतिः (पुं०) अयोध्या का राजा। (समु० ४/२५)
'अथाप्ययोध्याधिपतेः सुवल्लभा।' अयोध्याधीशः (पुं०) अयोध्या के अधिपति, राजा रामचन्द्र।
(दयो० वृ०८) अयोनि (वि०) अजन्मा, नित्य। अयोनिज (वि०) जन्मपद्धति से जन्म न लेने वाला। अयोग (वि०) योगों से रहित, 'न विद्यते योगो यस्य स
भवत्योगा' (धव०१/१९२) अयोगकेवली (वि०) कर्मों के नष्ट करने वाले योग रहित
केवली।
अयोगंश्चासौ केवली अयोग केवली। (धव०१/१९२) अयोगव्यवच्छेदः (पुं०) विशेषण का साथ प्रयुक्त एवकार। अयोगि (वि०) योग से रहित। अयोगिकेवली (वि०) कर्मों को नष्ट करने वाले योग रहित।
चौदह गुणस्थानवर्ती। अयोगिजिनः (पुं०) योग रहित जिन। अयोगी (वि०) जो योग युक्त नहीं। न योगी अयोगी।
(धव०१/२८०) अयोगपद्य (नपुं०) युग का अभाव, समकालीनता का अभाव। अयौगिक (वि०) व्याकरण से व्युत्पन्न न हो। अरः (पुं०) अरनाथ, अठारहवें तीर्थंकर का नाम। (भक्ति०१९) अरः (पुं०) पहिए का व्यास, धुरी की परिधि। अरं (नपुं०) आकाश, गगन। विहाय सारं विहरंतमेव। (सुद०
७/१८) अरघट्टः (पुं०) चक्की। राजमाप इव चारघट्टतो। (जयो०
७/८९) अरजस् (वि०) निर्मल, स्वच्छ, रजोवर्जित, वासनामुक्त,
रजरहित, ०कर्मरज रहितः हासस्वरं त्वरजः। (जयो० ६/१२७) 'अरजो रजोवर्जितं निर्मलं भवत्।' (जयो० वृ०
६/१२७) अरजा (स्त्री०) मासिक धर्म से रहित स्त्री, मासिक धर्म |
जिसको न हुआ हो। अरज्जु (वि०) रस्सी रहित, जिसमें रस्सियां न हों। अरणिः (पुं०) लकड़ी, जलाउ लकड़ी। वह्निं च पश्यन्नरणे
प्रमादी। (जयो० २६/९४) अरणिः (पुं०) सूर्य, तपन, ०वहि, तेज। अरणी (स्त्री०) लकड़ी, जलाउ लकड़ी। अरण्यं (नपुं०) [अर्यते गम्यते शेषं वयसि-ऋ+अन्य] वन, |
जंगल, मनुष्यसंचार शून्य। गावस्तृणमिवारण्येऽभिसरन्ति नवं नवम्। (जयो० २/१४७) जहां वृक्ष, बेलि, लता एवं
गुल्मादि की बहुलता होती है। अरण्यगजः (पुं०) जंगली हाथी, वन में विचरण करने वाला
गज/हस्ती। अरण्यगत (वि०) वन को प्राप्त। अरण्यगामिन् (वि०) अरण्य में जाने वाली। अरण्यचंद्रिका (स्त्री०) निरर्थकशृंगार। अरण्यचर (वि०) वनचर। अरण्यचारिन् (वि०) वनचारी, एकाकी अरण्य में विचरण
करने वाले। अरण्यजीवः (वि०) वनचर जीव, जंगली प्राणी। अरण्यदेशः (पुं०) वन प्रान्त, वन भाग। 'सौधमरण्यदेशेऽस्य
पुरप्रबोधः।' (सुद० ११७) अरत (वि०) ०अपरिचित, ०अनासक्त, विरक्त, ०असंतुष्ट,
०पराङ्गमुख। रताविरक्ताप्यनुरतिमायात्यरते जगतश्छाया।
(जयो० २८/६८) अरति (वि०) १. अनुत्सुकता, अप्रेम, रागाभाव, २. कष्ट,
पीडा, चिन्ता, खेद, क्षोभ, असंतोष। बाह्याभ्यन्तरेषु वस्तुषु
अप्रीतिरतिः। अरतिपरीषहः (पुं०) अरति नामक परीषह, कामकथादि से
विरति। अरतिवाक् (पुं०) शब्दादि वचन। अरम् (अव्य०) [ऋ+अम्] शीघ्र, तुरन्त, पास ही, निकट,
तत्परता से। 'त्वगाद्गर्भवती स्वतोऽरम्' (सुद० २/४६)
(अरं शीघ्रम्। (जयो० वृ० २/१७) अरम (वि०) रमता नहीं, संतुष्ट नहीं। 'मनोऽरमायाति
ममाकुलत्वं।' अरमण (वि०) अरुचिकर, असंतोषजनक, सुख रहित। अरमणीय (वि०) शोभा रहित। अरम्य (वि.) अशोभनीय, कान्तिहीन। 'का सावरम्या
स्मरसारवास्तु।' 'अरम्या रमणीया न भवति' (जयो० ३/६३) अररं (नपुं०) कपाट, किवाड। उपहतः पुनरुक्तपरिश्रमैरररवत्। ___ अररवत्-कपाटवत्। (जयो० २५/७८) अररे (अव्य०) [अर+रा के] घृणा सूचक अव्यय, अवज्ञा
सूचक। अरविन्दं (नपुं०) [अरान् चक्राङ्गानीव पत्राणि विन्दते-अर+
विन्दु । श] लालकमल, रक्तकमल। म्लायन्ति तद्वधूनां
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