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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अयः www.kobatirth.org अयः शुभावहो विधि: इति कोशात् सुष्टुः अयः स्वयः । (जयो० ७/६२) "चेद्वीतरागस्तवइत्युताय ।" (भक्ति सं० वृ० २५) वीतराग स्तवन करना पुण्य है। मतल्लिकामचर्चिका प्रकाण्डशुद्धतल्लजी प्रशस्तवाचकाम्यमून्ययः शुभावही विधि:' इत्यमरः । अव (पुं०) जाना, चलना, परिभ्रमण करना । अयज्ञ (वि०) यज्ञ नहीं करने वाला। अयन (वि०) यत्न नहीं करने वाला, परिश्रम रहित, उद्यमविहीन । अयत्नः (वि०) श्रमाभाव, उद्यम अभाव | अयथा ( अव्य० ) अनुपयुक्त रूप से, अनुचित रूप से, त्रुटिजन्य, जैसा होना चाहिए वैसा नहीं। अयथार्थ (वि०) अर्थहीन, असंगत, अशुद्ध, त्रुटिपूर्ण, व्यर्थ । अयथेष्ट (वि०) अपर्याप्त कम, अल्प अयथोचित (वि०) अयुक्त, अनुपयुक्त, अयोग्य, अर्थहीन, लाभरहित। } 3 अयनं (नपुं० ) [ अय् + ल्युट् ] १. स्थान, मार्ग, अवकाश, घर, राह पथ (जयो० १६/५९) रसायनं काव्यमिदं श्रयामः।' (वीरो० १/२२) 'रसानांशृङ्गारादीनामयनं स्थानं वर्त्म वा । (वीरो० वृ० १/२२) अयनं अवकाशं मार्ग वा दातुं (वीरो० वृ० ५/२०) 'नेतुमासीत्सुवचोऽयने।' (जयो० १७/२२) विश्वासमयेऽयने मार्गे कर्त्तव्यपथे। (जयो० वृ० १७/२२) 'ऋतुवस्त्रयोऽयनम्' (त०वा०३/३८) अयनं (नपुं०) जाना, परिभ्रमण करना, हिलना। अयनकाल: (पुं०) सन्धिकाल, दोनों समय की मध्य अवधि । अयनकोविंदु (वि०) सन्मार्ग ज्ञाता, अवनस्य सन्मार्गस्य कोविदो " विद्वान् आसीदित्यर्थः । (जयो० वृ०९/५६ ) अयन्त्रित (वि०) अनियन्त्रित, प्रतिबन्ध रहित । अयशस् (वि०) ० कीर्तिरहित ०प्रभावविहीन ० अपकीर्ति, ० अपमान, ०निन्दा ०प्रशंसा, अयशकीर्ति। अवशकर (वि०) यश नहीं करने वाला, कलंकी, अपमानजनित। अवस् (नपुं०) लोहा, इस्पात, धातु विशेष | अयस्काण्डः (पुं०) लोह शर, लोह बाण। अयस्कान्तः (पुं०) चुम्बक मूल्यवान् पत्थर, लोहकण (जयो० २३/४१) 1 अवस्कारः (पुं०) लुहार । अयस्कीर्तिः (स्त्री० ) अवगुण उद्भावन, ०अपकीर्ति, ०अपयश । अयस्कुंभ: (पुं०) लोहघट | अयस् निर्मित (वि०) लोहनिर्मित (वीरो० १६ / ३० ) ९९ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अयस्पात्र (नपुं०) लोह - पात्र । अयस्प्रतिमा ( स्त्री०) लोहमूर्ति । अयस्मकं (नपुं०) लोहमल, जंग। अयस् रजः (पुं०) लोह भस्म । अयस्थूलं (नपुं०) लोह त्रिशूल, लोहे का भाला । अयस्हृदय (वि०) कठोर हृदय । अयाचित (वि०) अप्रार्थित, बिना मांगे। अयान्य (वि०) बहिष्कृत, त्याज्य अयात (वि०) नहीं प्राप्त, न गया हुआ। अयाथार्थिक (वि०) विरुद्ध, अनुचित असंगत, तक्रहीन। अयानं (नपुं०) ठहरना, स्थिर होना। अयि (अव्य०) ओह, ए, अरे हे अयि जिनप तेच्छविरविकलभावा । (सुद० वृ० ७४) अयि जिनप गिरेवाऽऽसीत्। (वीरो० ३/३३) अयि मञ्जुलपाश्रितं (चीरो० ७/२४) १. यह अव्यय प्रार्थना, गुणगान बोधक रूप में प्राय होता है। " अथि काविलराजोऽयं (जयो० ६/४२) २. प्रोत्साहन, अनुनय, विनय, नम्रतादि भी इसका प्रयोग होता है । ३. पृच्छा अर्थ में भी इसका प्रयोग होता है। 'अयि: चेतसि जेमनोतिचारः । ' (जयो० १२ / ११५ ) अयुक्त (वि०) पृथक, अलग, भिन्न, विषम । अयुग (वि०) पृथक्, अलग, भिन्न, विषम। अयुगपद् (अव्य०) एक साथ नहीं, यथाक्रम क्रमशः। अयुग्म (वि०) एकाकी, अकेला, पृथक, विषमसंख्या, युगल रहित। अयोध्या अयुज् (वि०) विषम संख्या, युगल रहित । अयुत (वि०) पृथक् कृत, असंबद्ध असंयुत। (सम्य० १०० ) 'ललनानामयुतानि षट् पुनः ।" (समु० २/१७) अये! (अव्य०) सम्बोधनात्मक अव्यय, अरे ए, ओह यह । उदासीनता, खिन्नता, खेदादि अर्थ में होता है। अयोगः (पुं०) असंगति, अन्तराल, वियोग, अनौचित्य । अयोग्य (वि०) अनुचित, अनुपयुक्त, उपेक्षणीय, ० निरर्थक। अन्वमानि रविणेदमयोग्यमित्यतोऽपयश एव हि भोग्यम् । (जयो० ४/३०) For Private and Personal Use Only " अयोग्यस्थान (नपुं०) अनुचित स्थान, अपद, अनुपयुक्त स्थान (जयो० वृ० २/४० ) अयोध्य (वि०) जिस पर युद्ध न किया जा सके। अयोध्या ( स्त्री०) अयोध्या नगरी, सरयू तट पर स्थित नगरी । (समु० ४/२५) (दयो:००९)
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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