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अमिथ्या
अमृतं
(जयो० वृ० २३/३) सूर्य को जीतने वाले नहीं। "मित्रं
सख्यौ रवौ पुमान् इति विश्वलोचनः" अमिथ्या (क्रि०वि०) १. जो मिथ्या न हो, विपरीत न हो,
अन्यथा न हो, २. सम्यक्, यथार्थ, उचित। . अमिन् (वि०).[अम्+णिनि] रोगी, व्याधी जनित, बीमार। | अमिषं (नपुं०) [अम्+इषन्] १. लौकिक पदार्थ, भोग सामग्री,
२. निश्छलता, निष्कपटता, सत्यवादिता, हितवादिता। अमीर (वि०) धनाढ्य, धनी, वैभव सम्पन्न। वीर!
त्वमानन्दभुवामवीरः मीरो गुणानां जगताममीरः। (वीरो० १/५) मीर होकर भी अमीर अर्थात् गुणों के मीर/समुद्र होकर भी जगत् के अमीर/सबसे बड़े धनाढ्य हो। "मीरोऽब्धि-शैल-नीरेषु" इति विश्वलोचनकोशः। समुद्र एव किन्तु जगतां प्राणिनो मध्ये अमीरः सर्वश्रेष्ठः। (वीरो०
वृ० १/५) अमीवा (स्त्री०) [अम्वन् ईडागमः] रोग, व्याधि, बीमारी। अमु (सर्व०) इदम् सर्वनाम शब्द का 'अमु' आदेश हो जाता ____ है। अमुनादेश (जयो० १/९०) अमुस्मिन् (सुद० ४/२८) अमुक (वि०) इस तरह, ऐसा-ऐसा, व्याज से। "ममामुकं
मेव-समूह-जेतो।" (सुद० २/१३) अमुकस्य बभूव
दामिनीत्यभिधा भूमिपतेः सुभामिनी। (समु० २/१२) अमुक-गुण-गत (वि०) इस गुण-वर्णन युक्त। अमुकस्य
कामरूपाधिपस्य गुणेषु गुणसंकीर्तन इत्यर्थः। (जयो० वृ०
६/३२) अमुक-संघः (पुं०) इस संघ, इस समूह। अमुक्त (वि०) ०बन्धन युक्त, ०बन्ध वाला, ०परतन्त्र,
०स्वाधीनता रहित। अमुक्तिः (स्त्री०) ०मोक्षाभाव, मुक्ति का अभाव, बन्धन,
पराधीनता। अमुतः (अव्य०) [अदस्+तसल्] वहां, वहां से, उस स्थान
पर, उस जगह, उस अवस्था में, ऊपर, उच्च स्थान पर! अमुद्रित (वि०) जाज्वल्यमान, विकसित, विकासशील,
देदीप्यमान। "स्वयममुद्रित-शुद्धशिखाश्रयः।" (जयो०
९/२४) अमुत्र (अव्य०) [अदस्+त्रल] वहां उस स्थान पर, उस
अवस्था में, वहां पर। अमुथा (अव्य०) [अदस्+थाल-उत्व-मत्व] इस तरह, इस
रूप, इस रीति से।
अमुष्य (वि०) ऐसे, इस तरह, उस 'प्रावर्तताऽमुष्य महीश्वरस्य।'
(जयो० १/११) 'दृशोरमुष्या द्वितयेऽवतारं।' (सुद० २/४८) अमूदृश् (वि०) ऐसा, इस प्रकार का, इस तरह, इस रूप, इस
रीति से। अमूढ (वि०) [न मूढो भवतीत्यमूढः] (जयो० वृ० १७/१७)
अमूर्ख, मुग्धता रहित। 'नास्ति सा यस्य जीवस्य विख्यातः।
सोऽस्त्यमूढदृक्। (लाटी०सं० ४/१११) अमूढ-दृष्टि: (स्त्री०) मिथ्यात्व अप्रशंसक, मुग्धता रहित
दृष्टि। 'सर्वेषु भावेषु मोहाभावादमूढं दृष्टि।' (समय प्राभृत
वृ० २५०) अमूर्त (वि०) अशरीरी, शरीर रहित, निराकार। (भक्ति०वृ० ___२७) अरूपी द्रव्य (वीरो० १९/३६) अमूर्तत्व (वि०) अशरीरीपना, मूर्तता का अभापना। अमूर्तद्रव्यं (नपुं०) निराकारी द्रव्य। अमूर्तरुच (वि०) अमूर्तिक स्वभाव वाले। एतैर्ममामूर्तरुचः
किमधिः सम्पन्नतामेत्वधुना समाधिः।" (भक्ति सं० वृ०
२७) अमूर्तिः (स्त्री०) रूप का न होना, मूर्त हीन। अमूर्ति (वि०) रूप रहित, निराकार। अमूर्तियोगिनी (वि०) अमूर्तविद्या। (जयो० वृ० २४/२) अमूल (वि०) निर्मूल, निराधार, ०आश्रय विहीन, प्रमाणाभाव
युक्त। अमूल्य (वि) बहुमूल्य, अनमोल। हैमं तुलाकोटियुगं च
कस्मान्ममाप्यमूलस्य निबद्धमस्मात्। (जयो० ११/१५) उक्त पंक्ति में 'अमूल्य' शब्द का अर्थ 'अतिमनोहर' रूप
में है। 'अमूल्यातिमनोहरस्या' (जयो० वृ० ११/१५) अमृत (वि०) [न मृतोऽमृतः] १. जो मरा न हो, अविनाशी,
अनिश्वरः, अजर (जयो० ११/७९) अमृतः (पुं०) अमर, देव, देवता। अमृतं (नपुं०) अमृत, पीयूष, जल, जीवन, भुवन, दुग्ध, घृत।
(जयो० ९/१४) "पयः कीलालमृतं जीवनं भुवनं वनमित्यमरः। (अमरकोशः) "मम समस्तु महीवलेऽमृता" (जयो० ९/१४) उक्त पंक्ति में 'अमृत' का अर्थ 'सुन्दर' किया है। हे अमृत! सुन्दर। (जयो० वृ० ९/१४) "श्री कामधेनोरमृतप्रशस्तिः ।" (जयो० ११/८६) कामस्य सुरम्या वाञ्छितका यदेतदङ्गशरीरममृतस्य सर्वश्रेष्ठा। (जयो० वृ० ११/८६) "लोडयन्ति ललनाः स्म मन्दरप्रायमन्थ कलिनाऽमृताय ताम्। (जयो० २१/५७) उक्त पंक्ति में
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