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अमृतकरः
अमृतात्मन्
'अमृत' का अर्थ नवनीत/घृत है। 'अमृतन्तु घृते दुग्धे' इति विश्वलोचनोशः। 'अमृतममरण-कारणमितीष्टं।' (जयो०
वृ० १४/७९) अमृत्यु का कारण होन से अमृत है अमृतकरः (पुं०) चन्द्र, शशि। अमृतकुण्डः (पुं०) अमृत पात्र। अमृतगुः (स्त्री०) पीयूषवाणी, अमृतवाणी, (जयो० १/९६)
सुधारश्मि, चन्द्रकिरण। (जयो० १६/१९) अमृतगुत्व (वि०) चन्द्ररूपता, शशिरूपता। अमृतस्य गौ रश्मिर्यस्य
तस्य भावम्। (जयो० वृ० २२/४८) (मधुरवाणी को धारण करना) अमृतस्य दुग्धस्य गोभूर्मिर्यत्र तस्य भावम्।
(जयो० वृ० २२/४८) (गायपने को धारण करना) अमृतधामः (नपुं०) मोक्ष, मुक्ति पुरुषार्थ, चन्द्र।
"धर्मार्थ-कामामृत-धाम बाहुचतुष्टयं।" (जयो० १९/१३) अमृतधाम मोक्षश्चेति। (जयो० वृ० १९/१३) "भिन्ने भवत्यमृतधामनि नाम शुभ्भत्।" (जयो० वृ० १८/४४) अमृतधामनि चन्द्रमसि। (जयो० वृ० १८/४४) उक्त पंक्ति में 'अमृतधाम' का अर्थ चन्द्र है। 'अमृतानां' देवानामाश्रमः
स्वर्ग: इस व्युत्पत्ति से 'स्वर्ग' भी अर्थ है। अमृतधारा (स्त्री०) १. अमृत प्रवाह, २. औषधि विशेष, ३.
छन्द विशेष। अमृतप (वि०) अमृत पान करने वाला। अमृतपुरधर (वि०) १. अमृतपूर्ण अधरों वाली। २. स्वर्गपुरी
रूप धारिणी। ३. मङ्गलदर्शन वाली। धवलयति क्षमावलयं वृद्धद्वारास्य भो अमृतपुरधरे। (जयो०
६/१०५) अमृतपूः (वि०) अमृतस्थान। अमृतस्य पू: स्थानमधरो यस्याः
सा। (जयो० ६/१०५) अमृतपूर्णः (वि०) अमृत से परिपूर्ण, पीयूष से भरी हुई। ।
'पवित्ररूपामृतपूर्णकुल्या'। (सुद० २७) अमृतप्रदात्री (वि०) दुग्ध प्रदान करने वाली, वाक्कामधेनुः
खलशीलनेनाऽमृतप्रदात्री सुतरामनेना। (समु० १/२६) अमृतप्रवाहित (वि०) सुधादानी। (जयो० १८८५) अमृतप्रशस्तिः (स्त्री०) १. सर्वश्रेष्ठपूर्ति, प्रशंसा, २. दुग्ध
प्रशंसा, दुग्ध सम्पत्ति। 'अमृतस्य सर्वश्रेष्ठा प्रशस्तिः यस्येदृश।'
अमृतं दुग्धमेव प्रशस्तिः सम्पत्तिर्यस्य। (जयो० वृ० २१/८६) अमृतफलं (नपुं०) द्राक्ष, अंगूर, दाख। अमृतबन्धुः (पुं०) देव, अमर, देवता। अमृतभुज् (पुं०) देव, अमर, देवता।
अमृतभू (वि०) अमृतत्व को प्राप्त, जन्म-मरण से रहित। अमृतमंथनं (नपुं०) सिन्धु मंथन, समुद्र विलोडन। अमृतरसः (पुं०) पीयूष रस। अमृतलता (स्त्री०) अमृतदायी वल्लरी। अमृतलहरी (स्त्री०) पीयूष प्रवाह। (जयो० ७/६३) अमृतसार (वि०) १. निर्झर, झरना, २. अमृतमय, पीयूष
युक्त। येन कर्णपथतो हृदुदारमेत्य पूरयति सोऽमृतसारः। (जयो० ४/५३) 'अमृतस्य सारो निर्झरः' (जयो० वृ०
४/५३) अमृतसारिणी (वि०) सञ्जीवनी सार, जीवनदायिनी तत्त्व।
सुधावत् प्रसक्तिकारिणी। (जयो० वृ० १/८८) अमृतसिद्धिः (स्त्री०) अमृत की सिद्धि, अमृतपान, जल
निष्पत्ति। "अमृतस्य जलस्य मरणाभावस्य च सिद्धिं
निष्पत्ति।" (वीरो० वृ० ४/४८) अमृत-सूः (पुं०) चन्द्र। अमृतसूति (वि०) अमृत को प्रवाहित करने वाला। अमृत-सोदरः (पुं०) अमृत भाई। अमृतस्त्रवः (पुं०) अमृत प्रवाह, पीयूष धारा। अमृतवर्षिणी।
(सुद० ४/१३) वागेव कौमुदी साधु-सुधाांशोरमृतस्रवा।"
(सुद०४/१३) अमृतस्त्रवा (वि०) दुग्धदात्री, अमृत प्रदायी, अमृत वर्षाने
वाली। विस्तारिणी कीर्तिरिवाथ यस्यामृतस्रवेन्दो
रुचिवत्प्रशस्या। (वीरो० २/२०) अमृतस्राविणी (वि०) अमृत देने वाली, दुग्धदात्री, सुधा
प्रदात्री। (दयो० वृ० ५३) अमृतस्रुतिः (स्त्री०) सुधास्रोत, पीयूषधारा। (दयो० वृ० ९) अमृतस्रुतिमयी (वि०) अमृतप्रवाहिणी, पीयूष प्रवाह वाली।
(जयो० १८८५) तस्यामृतस्त्रुतिमयीं प्रतिपद्य हे गां। (जयो० १८४८५) अमृतस्त्रुतिमयी-पीयूषप्रवाहरूपामुत मोक्षप्राप्ति
रूपाम्। (जयो० वृ० १८८५) अमृतस्त्रोत (वि०) पीयूष निर्झर, सुधा धारा। (दयो० वृ०९) अमृता (स्त्री०) शराब, मादक द्रव्य, मद्य। .. अमृतांशः (पुं०) पीयूषलव, अमृत अंश, सुधांश। (जयो० वृ०
११/६३) अमृतांशुः (पुं०) चन्द्र, शशि, इन्दु। (दयो० ८४) अमृतात्मन् (वि०) अमृत की तरह आनन्ददायिनी, अमृतवदा
नन्ददायिनी। "चारुर्विधोः कारुरुतामृतात्मा।" (जयो० ११/९२)
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