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अभ्युद्
अभ्रमलोकता
'देवीति यासौ नवनीत-सम्पत्तयोदियायाभ्युदितानुकम्प! (जयो० ०प्रशंसक, समालोचक। उपासक ०देव्योऽभ्युपासन२०/८४)
समर्थकारिपक्षाः' (वीरो० ५/४२) अभ्युद् (सक०) स्वीकारना, चलना, निकलना। 'इदं स्विदते | अभ्युपेत (भू०क०कृ०) [अभि+उप+इ+क्त] १. उपागत, प्राप्त, दुतमभ्युदेति।' (सुद० १/५)
समागत, समीप जाना। (जयो० ४/३६) २. अङ्गीकृत, अभ्युद्गमः (पुं०) [अभि+उद्+गम्+घञ्] निकलना, स्वीकृत, ज्ञात, भिज्ञ, व्याकुलिता निर्वारिमीनमितमिङ्कितमभ्युपेता। सम्मानार्थ आना, उठना, आदर देना।
(सुद० ८६) अभ्युद्गतिः (स्त्री०) उठना, आदरार्थ बाहर निकलना, अतिथि अभ्युपेत्य (अव्य०) [अभि-उप+इ+ल्यप्] प्राप्त करके, पहुंच सम्भावनार्थ जाना।
करके, समीप जाकर। 'अभ्युपेत्य पुनराह तमेषा' (जयो० ४/३६) अभ्युद्धृतिः (स्त्री०) स्वीकार करना, अङ्गीकार करना। 'स्वामिन् अभ्युषः (पुं०) [अभितः उ ऊष्यते अग्निना दह्यते] खूवी रोटी।
आज्ञाऽभ्युदृध्तये तु सेवकस्य चेष्टा सुखहेतुः। (सुद०१२) अभ्यूढ (वि०) विवाहित, परिणीत, परिणय युक्त। 'अस्ति अभ्युद्यत (भू०क०कृ०) [अभि+उद्य म्+क्त] १. तत्पर, तैयार, सुदर्शन-तरुणाऽभ्युढेयं।'
संलग्न, लीन, प्रयत्नजन्य। २. आगे किया, उठाया, लाया। अभ्यूहः (पुं०) अनुमान, तर्क, (सुद० ८४) अभ्युन्नत (वि०) [अभि+उद्+नम्+क्त] अति ऊँचा, अभ्योबाधक (वि०) ०बाधा पहुंचाने वाला, विघ्नकर्ता, उन्नतशील, प्रगति वाला।
अवरोधक। (समु० ९/१५) अभ्युन्नतिः (स्त्री०) [अभि+उद्+नम्+क्तिन्] तीव्र प्रगति, परेऽभ्योबाधकं नं स्यादेवमङ्ग स सन्दधत्। (समु० ९/१५)
स्थल प्रगति, उन्नति स्थान। 'समेखलाभ्यन्नतिमन्नितम्बा।' अभ्र (अक) घूमना, जाना, भ्रमण करना। (सुद० २/५)
अभ्रं (नपुं०) [अभ्र+अच्] मेघ, बादल अवारिषु मेघाः। अभ्युन्नमतिः (स्वी०) [अभि+उद्+नम् अति] अति उन्नत, अत्यन्त (धव०१४/३५) वर्षा से रहित मेघ को 'अभ्र' कहते हैं।
उच्च, पूर्णता युक्त। पयोधरोऽभ्युन्नमतीह।' (जयो० ११/३३) रणभूमावभ्रे च खगस्ताक्ष्यप्राय। (जयो० ७/११३) अभ्युपगतः (वि०) [अभि+अ+गत्+क्त] प्राप्त होना, मिलना, सोऽभ्रेगगने। (जयो० वृ० ७/११३, वीरो० २/५०) मानना। (सुद० १२१)
'अभ्रमुवल्लभकमिमति' वा अधिकृत्येऽपि अधियोगे सप्तमी। अभ्युपगमः (पुं०) [अभि+उप्+गम्+घञ्] ०उपागमन, प्राप्त (जयो० वृ० ९/५२) वीक्ष्य मेलमनयोरिह शातमभ्रतस्ततिरहो होना, स्वीकारना, मिलना, ०मानना, समझना।
निपपात। (जयो० ६/१३०) वहां आकाश से ऐसे फूलों अभ्युगम्य (सं० कृ०) [अभि+उप्+गम्+ ल्यप्] प्राप्त होकर की वर्षा हुई। 'अभ्र' का अर्थ गगन, आकाश भी है।
ग्रहण करने। (सुद० १२१) कठोरतामभ्युपगम्य याऽसौ। अभ्रंलिह (वि०) [अभ्र+लिह+खस् मुमागमः] गगनप्रान्त (सुद० १२१)
स्पर्शित, आकाश चुम्बित, ०अधिक उच्च। 'रात्रौ अभ्युपत्तिः (स्त्री०) [अभि+उप+पद+क्तिन्] सहायतार्थ जाना, यदभ्रंलिह-शालभृङ्ग समङ्कितः' (वीरो० २/२७)
०कृपा दृष्टि रखना, निकट जाना, रक्षा, धैर्य, साहस। अभ्रंलिह-शाल-शृंगारं (नपुं०) गगनचुम्बी शाल शिखर, अभ्युपलम्भः (पुं०) सहारा, सम्प्रयाण।
आकाश स्पर्शित पर कोटे के शिखर। (वीरो० २/२७) अभ्युपलम्भनंः (पुं०) सहारा, सम्प्रयाण, प्रस्थान। "सुवर्णसूत्रा- अभ्रंलिहान-शिखरावलिः (स्त्री०) गगनचुम्बी शिखरावली। भ्युपलम्भनेन।" (जयो० ११/६)
(वीरो० २/५०) अभ्युपायः (पुं०) [अभि उप+इ+अच्] साधन (जयो० ३/४८) अभ्रक (नपुं०) [अभ्र+कन्] अबरक, चिलचिल।
विधिर्येनाभ्युपोयेन। प्रबन्ध, प्रतिज्ञा, उपचार, ०युक्ति। अभ्रकष (वि.) [अभ्र+कष्+खच् मुमागमः] बादलों को छूने 'विधेश्च संयोजयतोऽभ्युपाय:' (जयो० ३/८७) अभ्युपाय: वाला, मेघ स्पर्शित। प्रबन्धो। (जयो० वृ० ३/८७)
अभ्रम (वि०) नि:संशय, संदेहरहित। (जयो० वृ० ५/१०१) अभ्युपायनं (नपुं०) [अभि+उप+अप्ल्यु ट्] १. उपहार, भेंट, अभ्रमरीतिकरी (वि०) निःसंदेहचेष्टाकारिणी १. भ्रमरियों को सम्मान प्रतीक। २. रिश्वत, घूस।
बाधा न पहुंचाने वाली। (जयो० २०/८७) अभ्युपासनं (नपुं०) [अभि+उप+अस् ल्युट्] समर्थनकारी, | अभ्रमलोकता (वि०) नि:संशय परिज्ञानं १. भ्रम-रहित देखने
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