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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अङ्ग : पंचदशम् स्वरूप (Forms of Devanganas) देवांगनाओं (देवकन्या, नृत्यांगना, अप्सरा स्वर्णनिवासिनी) के स्वरूप, पश्चिम भारत के 'नागरादि' शिल्पग्रंथों में स्पष्टता से वर्णित है। द्रविड शिल्पग्रंथों में मूर्तिशास्त्र विषयक बहुत सुंदर वर्णन मिलते है, परंतु, उसमें देवांगनाओं के बारे में उल्लेख नहीं है। यह आश्चर्य की बात है। वेसर जाति के मैसूर राज्य के हलिबेड, बेलूर और सोमनाथपुरम् के सर्वोत्तम प्रासादों में देवांगनानों के स्वरूप प्रत्यक्ष-स्तंभ पर उत्कीर्ण हुए मिलते हैं। खुशी की बात यह है कि पूर्व भारत के उड़िया (उड़ीसा) के शिल्पग्रंथों में, 'शिल्प प्रकाश' नामक ग्रंथ में, १६ प्रकार की देवांगनामों के स्वरूप तथा उनके लक्षण, नाम आदि के बारे में वर्णन मिलते हैं। और वे उड़ीसा के और भुवनेश्वर, पुरी, प्रादि के शिल्प-स्थापत्य में दृष्टिगत होते हैं। जिसे हम देवांगना कहते हैं, उसे उडीया में अलस्या-पालस-कन्या-कहते है। शिल्पशास्त्रों में ३२ देवांगनाओं, नृत्यांगनाओं तथा अप्सराओं के वर्णन मिलते हैं। कई ग्रंथों में २४ देवांगनाओं के वर्णन है। इन सबके नाम भिन्न-भिन्न ग्रंथों में अलग-अलग दिये गये हैं। लेकिन कई नाम सामान्य होने के कारण, ३२ स्वरूपों के वर्णन तो मिलते ही है। वृक्षार्णव, क्षीरार्णव और प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथों में कई नाम भिन्न बताये होने के कारण, कई देवांगनाओं के और भी नाम मिले है। निःसंदेह, हस्त, मुख और रूप-लक्षण में भिन्नता होने के कारण ही उन्हें अलग नाम दिये जाने की संभावना पायी जाती है। जो नऊ मामों में फर्क है, वह इस प्रकार है: १. शुभायिनी - शुभांगिनी ६. मोहिनी - मंजुघोष, विजया २. गढ़शब्दा - पद्मनेत्रा ७. उत्ताना - चंद्रवका ३. चित्ररूपा - चित्रवल्लभा, पुत्रवल्लभ ८. तिलोत्तया - त्रिलोचन कामलया ४. भावमुद्रिका - भावचंद्रा, भुजपोषा ९. रंभा - उत्तान ५. मानवी - माननी ब्रह्मा, विष्णु, शिव और जिन प्रादि देवों के मंडप और मंडोवर वितान आदि में उपर्युक्त ३२ देवकन्याएं नृत्य करती दिखाती है। ईशान कोण से प्रदक्षिणाकार देवकन्याओं के स्वरूप इस प्रकार क्रमशः उत्कीर्ण करने चाहिए ऐसा विधान किया है। ३२ देवकन्याओं के नाम-क्रमशः १. मेनका २. लीलावती ३. विधिविता ४. सुंदरी ५. शुभगामिनी-शुभांगिनी ६. हंसावली ७. सर्वकला ८. कर्पूर मंजरी For Private And Personal Use Only
SR No.020123
Book TitleBharatiya Shilpsamhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherSomaiya Publications
Publication Year1975
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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