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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६२ प्रेत बड़े पेटवाले, दुर्बल शरीर वाले, भयंकर विकृत देहवाले और लंबे मुखवाले होते हैं । १६. पिशाच www.kobatirth.org उत्पर्व कृशकायास्ते चर्मास्तिस्नायु विग्रह ह्रस्वकीर्ण शिरो जास्यु दीर्घ बका पिशाचका ॥ १६ ॥ शिल्परत्नम् १७. असरा देवांगना पीली घाबोवाली महासुंदर रम्य रूपवाली प्रवराऐं होती है। १८. यक्षिनी ॥ यक्षिण्या स्तब्धदीर्घाक्ष ॥ १९. शाकिनी : फूला हुआ नाक, गठीली हड्डियां और चमड़ी। हड्डियां और स्नायु दिखाई दें, ऐसे दुर्बल देहयुक्त, कम और घने बालवाले, तथा लंबे मुखवा पिशाच होते हैं। २०. शिल्पालंकार पंचजीव: स्तब्ध दृष्टियुक्त और लंबी प्रांखोंवाली यक्षिनी होती हैं । ॥ तिरछी दृष्टिवाली शाकिनी होती हैं। fisगाक्षास्यु महारम्या रूपिणोप्सरसः ॥१७॥ श्री शाकिनी वक्र द्रष्टृष्या ॥ अथ कीर्तिमुखायासि प्रास मकर संस्थिते विशली विलोल जिव्हा पंचधा परिकीर्तिता ॥२०॥ श्रीना भीतीय SHANBULALB SOMPURA For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अप्सरा भारतीय शिल्पसंहिता
SR No.020123
Book TitleBharatiya Shilpsamhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherSomaiya Publications
Publication Year1975
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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