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प्रेत बड़े पेटवाले, दुर्बल शरीर वाले, भयंकर विकृत देहवाले और लंबे मुखवाले होते हैं । १६. पिशाच
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उत्पर्व कृशकायास्ते चर्मास्तिस्नायु विग्रह
ह्रस्वकीर्ण शिरो जास्यु दीर्घ बका पिशाचका ॥ १६ ॥ शिल्परत्नम्
१७. असरा देवांगना
पीली घाबोवाली महासुंदर रम्य रूपवाली प्रवराऐं होती है।
१८. यक्षिनी
॥ यक्षिण्या स्तब्धदीर्घाक्ष ॥
१९. शाकिनी :
फूला हुआ नाक, गठीली हड्डियां और चमड़ी। हड्डियां और स्नायु दिखाई दें, ऐसे दुर्बल देहयुक्त, कम और घने बालवाले, तथा लंबे मुखवा पिशाच होते हैं।
२०. शिल्पालंकार पंचजीव:
स्तब्ध दृष्टियुक्त और लंबी प्रांखोंवाली यक्षिनी होती हैं ।
॥
तिरछी दृष्टिवाली शाकिनी होती हैं।
fisगाक्षास्यु महारम्या रूपिणोप्सरसः ॥१७॥
श्री
शाकिनी वक्र द्रष्टृष्या ॥
अथ कीर्तिमुखायासि प्रास मकर संस्थिते विशली विलोल जिव्हा पंचधा परिकीर्तिता ॥२०॥
श्रीना
भीतीय
SHANBULALB SOMPURA
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अप्सरा
भारतीय शिल्पसंहिता