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भारतीय शिल्पसंहिता
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LION चलता । अनुमान किया जा सकता है कि भावक के मन में कौतुक के भाव जगाने के लिये या प्राणियों के स्वभाव का मिश्रण दिखाने के लिये या नवीन शिल्प-सौंदर्य की रचना करने के लिये व्याल की रचना हुई होगी।
ग्यारहवी बारहवी शताब्दी के द्रविड के चौल यशाल मंदिरों में पीठ में सिंह पर मुखों की पंक्ती को खोद गया है। नागरादि शिल्प के कामद पीठ की ग्रासपट्टी भी व्याल के एक स्वरूप का अंश है । कीर्तिमुखः और ग्रास. व्याल के स्वरूप है। व्याल के कुलके स्वरूप जलचर प्राणी हैं । व्याल समुद्री अश्व कहलाते है। अपराजितकारने त्रिभंग ललित कुंचित आलिढय प्रत्यालिढय शरीर मुद्रा का व्याल का स्वरूप निर्माण किया है। व्याल स्वरूप के बारेमें पुरातत्त्वज्ञ श्री मधुसूदन ढाकी ने लिखा है। उनके लेख का इसमे कुछ प्राधार लिया है।
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