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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org प्रायुध MURLI बंसी मुरली AGNIJWALA अग्नीज्वाला PAN PATRA पानपाव PATTISH पट्टीश NB BHERI भेरी DHOLAK-MRUDANG ढोलक मृदंग MRUGA MRUGA NAKUL NAKU KUKUTA KUKUTA कुक्कुट VINA विणा NA KAMANDAL मृग नकुल KAMANDAL कमंडल "अपराजित सूत्र" २३५ में प्रायुध के प्रकरण में प्रथम युद्धक्षेत्र पर शत्र के शस्त्रों के प्रहार से रक्षण के लिए योद्धानों को बज्रके देह जैसा कवच, लोहे के पतरे से बनाने को कहा गया है। द्रविड प्रदेशों में आयुधों को देवा-शक्तिरूप मानकर उनकी प्रतिमाएं द्रविड मंदिरों में उत्कीर्ण पायी जाती है। आयुधों की मूर्ति-प्रतिमा के पाठ 'श्रीतत्वनिधि' ग्रंथ में दिये है। विष्णु की गदा को कौमोदकी कहते हैं। उनके धनुष को सारंग कहते है। शिव के धनुष को पिनाक कहते है। इसलिए शिव को पिनाक-पाणि भी कहते हैं। शिव खोपड़ी का भिक्षापात्र धारण करते हैं। इसलिए उन्हें कापालिक या कपालभृत्य भी कहते हैं। पैर की हड्डी में से बनाये हुए खट्वांग के शिरोभाग पर मनुष्य की खोपड़ी बैठाई होती है। प्राचीन काल में अस्थि-हड्डी का उपयोग आयुध के रूप में होता था। जैसे, दधीची ऋषि ने देवदानव के युद्ध में देवताओं को अपनी हड्डियाँ शस्त्र-योग के लिए दी थीं। पाश को फांसे के रूप में उपयोग में लिया जाता है। खेटक, चर्म आदि हाल के पर्याय है। शक्ति का प्रयोग तलवार के अर्थ में भी होता है। दूसरी जगह एक वर्णन में उसे भाले के आकार का दैवी शस्त्र मानकर उसे फेंककर मारने का प्रयोग किया जाता है। पट्टिका लोह For Private And Personal Use Only
SR No.020123
Book TitleBharatiya Shilpsamhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherSomaiya Publications
Publication Year1975
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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