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प्रायुध
MURLI बंसी मुरली
AGNIJWALA अग्नीज्वाला
PAN PATRA
पानपाव
PATTISH पट्टीश
NB
BHERI भेरी
DHOLAK-MRUDANG
ढोलक मृदंग
MRUGA
MRUGA
NAKUL
NAKU
KUKUTA
KUKUTA कुक्कुट
VINA विणा
NA
KAMANDAL
मृग
नकुल
KAMANDAL
कमंडल
"अपराजित सूत्र" २३५ में प्रायुध के प्रकरण में प्रथम युद्धक्षेत्र पर शत्र के शस्त्रों के प्रहार से रक्षण के लिए योद्धानों को बज्रके देह जैसा कवच, लोहे के पतरे से बनाने को कहा गया है। द्रविड प्रदेशों में आयुधों को देवा-शक्तिरूप मानकर उनकी प्रतिमाएं द्रविड मंदिरों में उत्कीर्ण पायी जाती है। आयुधों की मूर्ति-प्रतिमा के पाठ 'श्रीतत्वनिधि' ग्रंथ में दिये है।
विष्णु की गदा को कौमोदकी कहते हैं। उनके धनुष को सारंग कहते है। शिव के धनुष को पिनाक कहते है। इसलिए शिव को पिनाक-पाणि भी कहते हैं। शिव खोपड़ी का भिक्षापात्र धारण करते हैं। इसलिए उन्हें कापालिक या कपालभृत्य भी कहते हैं। पैर की हड्डी में से बनाये हुए खट्वांग के शिरोभाग पर मनुष्य की खोपड़ी बैठाई होती है। प्राचीन काल में अस्थि-हड्डी का उपयोग आयुध के रूप में होता था। जैसे, दधीची ऋषि ने देवदानव के युद्ध में देवताओं को अपनी हड्डियाँ शस्त्र-योग के लिए दी थीं।
पाश को फांसे के रूप में उपयोग में लिया जाता है। खेटक, चर्म आदि हाल के पर्याय है। शक्ति का प्रयोग तलवार के अर्थ में भी होता है। दूसरी जगह एक वर्णन में उसे भाले के आकार का दैवी शस्त्र मानकर उसे फेंककर मारने का प्रयोग किया जाता है। पट्टिका लोह
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