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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतीय शिल्पसंहिता MUND KARTIKA कर्तिका KAPAL कपाल SARP सर्प SHING DANTHAL शींग दंत हल KUNT कृत PUSTAK पुस्तक AKSHAMALA अक्षमाला KAMANDALA कमंडल SUCHI सखा शूचि देवी-देवताओं ने अपनी प्रकृति के अनुसार प्रायुध धारण किये हैं। शुक्राचार्य ने इस विषय में कहा है कि देवों को मूर्तियों के परिचय के लिए यह आयुध प्रतीक के रूप में महत्त्वपूर्ण हैं। रामायण महाभारत और पुराणों में वर्णित अग्न्यस्त्र, पाशुपतास्त्र, ब्रह्मास्त्र, नारायणास्त्र, अचकणय-संमोहनास्त्र, वायवास्त्र, इन सबको अस्त्र कहा जाता है। इनके द्वारा यंत्र विद्या से अग्नि, बाण, जहरीला वायु उत्पन्न होकर, शत्रु या उनकी सेना का संहार करता है। अर्वाचीन समय में करोड़ों रुपये के व्यय से एक अणु-बम या हाइड्रोजन बम तैयार होता है, और जैसा विनाश ये कर सकते हैं, उसी प्रकार का विनाश प्राचीन काल के ये अस्त्र यंत्र-शक्ति से कर सकते थे। वह विद्या भारत में थी। मंत्रशक्ति से उत्पन्न होनेवाले मंहारक को अस्त्र कहते है। शारीरिक बल से उपयोग में लिये जाने वाले धनुष, त्रिशूल, परशु आदि को शस्त्र कहा जाता है। महर्षि भारद्वाज ने बहुत प्राचीनकाल में "यंत्रसर्वस्व" नामक बड़ा ग्रंथ लिखा था। उसमें अनेक यंत्रों के प्रकारों की रचनाएं, शस्त्र, विमान आदि विषयक प्रकरण थे। महाभारत काल में केवल "वैमानिक प्रकरण" बचा था। उस पर वदव्यास के शिष्य बोधायन ने वृत्ति लिखी है। १. यंत्रम-जिससे नियमन किया जाये, जिसे किसी निश्चित पात्र में निश्चित शब्दक्षरों से साधा जाये । २. मंत्रम्-जिससे देवों का आह्वान-स्तुति करके इच्छित वस्तु प्राप्त की जा सके । ३. तंत्रम्-जिससे देवों को चोड़ दिया जाये-तंत्रग्रंथों के आधार से उन्हें तंत्र कहा जाता है । ४. उसका थोड्डा अंश बचा है। उस अद्भुत और आश्चर्यजनक ग्रंथ की एक हस्तलिपि मेरे हस्तलिखित ग्रंथों के संग्रह में है। For Private And Personal Use Only
SR No.020123
Book TitleBharatiya Shilpsamhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherSomaiya Publications
Publication Year1975
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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