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भारतीय शिल्पसंहिता
SKANDHA MALA
स्कंध माला
STAN SUTRA
स्तनसून
कटीसूत्र | KATI SUTRA URUDDAM
)
SUTRA
44 उरूद्दाम
प्राRAD
कटकवलय KATAK VALAY
७ केयूर (बाजूबंद):
अष्टपन्न कमलयुक्त अनेक रत्नों से शोभित, शैवाल जैसी हरी कांतिवाला, बाहु के मध्य में कड़े जैसा चौड़ा आभूषण केयूर या बाजूबंद के नाम से पहचाना जाता है। यह प्राभूषण बाहु को वलयित किए हुए तीन, चार या पांच मात्रा प्रमाण से, रत्न पूरित विस्तार
केमूर
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वाला बनाना चाहिए। 'पद्म-संहिता' में ऐसा कहा है कि वह मोती की लटकती लड़ियोंवाला होता है। कई जगह दो-तीन वलय-कड़े जैसे उसके छोर पुष्पमुखी, सिंहमुखी या नागफली वाले भी होते हैं। शिव की बाहुनों पर सर्पाकार केयूर पहनाये जाते हैं। भरत नाट्य में केयूर का अपरनाम 'अंगद' कहा है। ८ उदरबंद:
पेडू (नाभि) से ऊंचा, छाती के नीचे पेट पर आवृत्त आभूषण को उदरबंद कहते हैं। वह 'छन्नवीर' से जुड़ा हुआ होता है। कई उसे उरुसूत्र भी मानते है । पेट के आगे से पीछे जानेवाला आभूषण स्तनसूत्र कहलाता है। ९ छन्नवीर या चन्नवीर :
यज्ञोपवीत की तरह दोनों स्कंध से उतरते हुए आभूषण को 'छन्नवीर' कहते हैं। हीणमाला के नीचेसे वह छाती और उदर के बीच मिलकर पीछे जाता है । और जहां वह आगे-पीछे जोड़ा जाता है, वह 'पदक' रत्न से जड़ा हुआ होता है। उदरबंद और कटिसूत्र की तरह उसके ऊपर मोती और सुवर्ण जड़े हुए होते हैं। उस आभूषण को छन्नवीर कहा जाता है।
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