SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir षोडशाभरण (अलंकार) ३ ३ GRIVA ग्रीवा HARA GRIVA ग्रीवा HARA SUTRA हारसूत्र 12.OR GRIVA ग्रीवा २ (UTC COM GOOOPER మంలో 00000000 Nepal 'शब्दामालायम्' ग्रंथ में नीचे लिखी हुई मालाओं का उल्लेख विशेष तौर से हुआ है : (अ) वनमाला : विष्णु की माला को कहते हैं। वह पैर के घुटनों तक लंबी, मध्य में सहज, स्थूल और छोरों पर पतली होती है। (ब) मुंडमाला:असुरों के मस्तकों से ग्रथित माला को रुंडमाला (मुंडमाला)कहते हैं। इसे रुद्र तथा कालिका धारण करती हैं। ५हीणमालाः यह माला उदरबंध तक लंबी तीन या पांच की संख्या (लड़ी) में होती है। इन सब संख्याओं ( लड़ियों) को बीच-बीच से जोड़ते रत्नजड़ित बंध होते हैं जिन्हें पदक कहते हैं। मोती की लड़ियों (संख्या) के अनुसार नाम दिये गये हैं। जैसे-एकावली, निसरी, पंचसरी या सप्तसरी, आदि कहते हैं। गुजरात में इसे रायणमाला कहते हैं। ६ उरुसूत्र (स्तनसूत्र): यह हीक्का सूत्र से ६ इंच नीचे और स्तनसूत्र के मध्यभाग तक चार पुंजे (बहेत) लंबाई का और एक यव (जो) मोटा होता है। ऐसे अनेक मणियुक्त सुवर्ण के हार को उरुसूत्र कहते हैं। स्तन से आठ अंगुल जितना ( यज्ञोपवीत की तरह ) वह लंबा होता है। दोनों स्कंद पर धारण किया हुआ और स्तन को पूर्णतया प्रावृत्त करने वाला यह आभूषण खास तौर पर देवी प्रतिमा के लिए होता है । इस सूत्र के पीछे पीठ पर गांठ बांधी जाती है। For Private And Personal Use Only
SR No.020123
Book TitleBharatiya Shilpsamhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherSomaiya Publications
Publication Year1975
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy