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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २ भारतीय शिल्पसंहिता 69 प्रलक चूड़क जटामुकुट सभी प्रकार के मस्तक के बाल की रचना के प्रकार हैं। जटामुकुट के पांचों प्रकार के स्पष्ट स्वरूप दिखाई पड़ते हैं। २ कुण्डल कान के आभूषणः १. पत्रकुंडल २. रत्नकुंडल ३. सिंह कुंडल ४. शंखपन्न कुंडल ५. सर्पकुंडल ६. गज कुंडल ७. वृत्तकुंडल ८. मकर कुंडल इस तरह के कुंडलों की आठ प्रकार की प्राकृति तैयार की जाती है। पत्र कुंडल तीन, चार या पांच मात्रा प्रमाण के अनुसार चौड़ा करना चाहिये । एक यव चौड़ाई के गोल, सफेद सरल शंख-पत्र कुंडल करने चाहिये। मकराकृति, सिंहाकृति या गजाकृति के कुंडल दो, चार या पांच मात्रा परिमाण के करने चाहिये। कुंडल के आकार भेद के अनुसार उसकी ऊंचाई, और उसका व्यास रखना चाहिये । तमिल में कुंडल को तोडु और सौराष्ट्र में ठोलिया कहते हैं। वृत्तकुंडल १८ यव प्रमाण के और चार अंगुल की ऊंचाई के, कमल जैसे विकसित, स्कंध पर लटकते करने चाहिए। शंख को बीच में से काटकर शंखकुंडल बनाया जाता है। शिव के सर्पकुंडल और विष्णु के मकरकुंडल किये जाते हैं। प्राणी की आँखें लाल रत्न की करनी चाहिए। JATAMUND जटामुंड KUNDAL कुंडल ३ उपग्रीवा-ौवेय-गले के आभूषणः कंठमाला : रुद्राक्ष या रत्न से इस सुवर्णमणि शोभायमान की जाती है। गुजरात सौराष्ट्र में इस उपग्रीवा को 'कंठा' भी कहते हैं। कर्ण बंध HEAL ४ हक्किासूत्र-हार : __ यह गले का प्राभूषण है। उपग्रीवा से नीचे और छाती के बीच में लटकता रहता है। विस्तार में यह आभूषण चार अंगुल और चौडाइमें तीन यव चौड़ा है । यह रत्न-जड़ित अलंकार है। १. सर्पकुंडल २. मत्स्य कुंडल ३. मघर , ४. सूर्यवृत कुंडल ५. मयूर , ६. सिंह , For Private And Personal Use Only
SR No.020123
Book TitleBharatiya Shilpsamhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherSomaiya Publications
Publication Year1975
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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