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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir षोडशाभरण (अलंकार) बृहद् संहिता (वराह संहिता) में मुकुट पर कलगियां, (शिखियां) एक, तीन, या पांच रखने का आदेश है। १. पांच कलगी महाराजा के लिए २. तीन कलगी युवराज के और महारानी के लिए ३. एक कलगी सेनापति के लिए 'विष्णु धर्मोत्तर' कार देवताओं के लिये सात कलगी के मुकुट का वर्णन करते हैं। लेकिन ऐसे कलगी वाले मुकुट चित्र और नाटक में दिखाये जाते हैं। शिल्पकृतियों में ऐसी कलगियां उत्कीर्ण करना संभव नहीं है। सो ऐसी कलगियां शिल्प में देखने को नहीं मिलती। आभूषणों के प्रकार और लक्षण १ मुकुट (अ) किरीट मुकुट : एक-एक अंगुल के परिमाण के, एक के ऊपर एक, चारों भोर से लपेटे हुए भावरण वाले, प्रष्ट मंगुल ऊंचे मौर उज्ज्वल मुकुट को किरीट मुकुट कहते हैं। १६ अंगुल से २४ अंगुल ऊंचे, प्रकाशमय मुकुट को भी किरीट मुकुट कहते हैं। इस मुकुट को खास तौर से विष्णु धारण कहते हैं। तीन, पांच या सात पेचवाला मुकुट योग्य लगता है। शिखर की प्राकृति वाले, कमल के समान, या छत्न के समान, एक पर दूसरा यों उत्तरोत्तर चढ़ते वृत्ताकार के किरीट मुकुट में कौस्तुभमणि लगा रहता है। यह मुकुट दूसरे अनेक रत्नों से जड़ित होता है। (ब) करंड मुकुटः नीचे से मूल भाग के क्रम की परिधि को छोटा करते हुए, ऊपर का अग्रभाग, मुकुलाधार-खिले हुए कमल जैसा-तीन, पांच, या सात पेचवाला टोकरी की प्राकृति जैसा जो सुशोभित होता है, उस मुकुट को करंड मुकुट कहा है। बाकी अन्य बातें ऊपर जैसी बताई हैं, उसी प्रकार होती हैं। उसके नीचेवाले तीन पट्टे रत्न जड़ित करने चाहिये। उसमें कान के लंबे कर्ण-पुष्प-रत्न पट्ट, कान पर लटकते तोरे मादि करने चाहिये। करंड मुकुट अन्य देव-देवियों तथा चक्रवर्ती राजाओं के लिये होता है। (क) जटा मुकुटः ___बत्तीस अंगुल से एक-एक अंगुल की वृद्धि करते ६१ अंगुल उँचाई तक के जटा मुकुट होते हैं। जटा की ऊंचाई दो अंकोवाली पौर समांगुल करनी चाहिये। जटा का नीचे का हिस्सा बड़ा करना चाहिए। एक दूसरे के ऊपरी क्रम से जटाबंध की जटा की चौड़ाई उतरते क्रम में रखनी चाहिए। जटा की लट की चौड़ाई का परिमाण छोटी (अंतिम) उंगली जितना रखना चाहिए। जटामुकुट की ऊंचाई २४ से १६ अंगुल तक की रखनी चाहिए। इसके पांच प्रकार वर्णित हैं। बाल के अंत भाग से मुकुट के नीचे के मूल भाग में ललाट पर पांच पट्टे करने चाहिए। ४ से १२ भाग तक की ऊंचाई का यह मुकुट करना चाहिये। शिव के जटामुकुट में धतूरे के फूल, नाग और मस्तक पर गंगाजी और अर्धचंद्र करने चाहिए। मुकुट के मध्य में मकरकूट और दूसरे पत्रकूट को रत्नफूट भी कहते हैं। उग्र प्रतिमा के जटा मुकुट में मुंड भी किये जाते हैं। खास तौर से शिव, ब्रह्मा, उमा, सरस्वती और सावित्री जटामुकुट धारण करते हैं। नीचे दिये हुए कुतल और जटाकुन्तल गुप्तकाल के है। जटा कुंतल कुंतल IRIN SRO (SION 'ललित रहस्य' ग्रंथ में और 'उत्तरकामिका ग्रंथ' में शिरस्राण के पांच भेद कहे गये है। १. शिव और ब्रह्मा के मुकुट को धम्मिला और जटामुकुट कहते है। . २. सरस्वती के मुकुट को कुन्तल कहते हैं । ३. सावित्री और उमा के मुकुट को केशबंध कहते हैं। ४. शिव का धम्मिला मुकुट होता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020123
Book TitleBharatiya Shilpsamhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherSomaiya Publications
Publication Year1975
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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