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षोडशाभरण (अलंकार)
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उदरबंध
गुप्तकाल
१० स्कंधमालाः
दोनों स्कंध पर, दोनों ओर अनेक प्रकार के मोतियों की सुवर्ण-पुष्प-युक्त लटकती माला को स्कंध माला कहते हैं। संस्कृत साहित्य में उसे बगल तक लटकती बताया है। चालुक्य काल में इलोरा आदि स्थलों की प्रतिमाओं में और चौल राज्यकाल की प्रतिमानों में यह देखी जाती है । गुप्तकाल की और पल्लव राज्यकाल की मूर्तियों में यह स्कंध माला दिखाई नहीं देती है। ११ कटक वलय दो प्रकार के होते हैं:
१. हस्तवलयः हाथ की कलाई का आभूषण २. पादवलय : पैर के टखने का आभूषण. (अ) हस्तवलयः हाथ की कलाई के आभूषण को हस्तवलय कहते हैं।
गोलबलयः दो-तीन यव मोटे या अंतिम अंगुली जितने पतले होते हैं। चित्र-विचित्र रत्नों से शोभित वलय की जोड़ी बनाई जाती है। दो से पाठ वलय तक, यह देवी प्रतिमाओं होती है। कटक वलय का मतलब है हाथ के कड़े।
(ब) पादवलयः पैर के टखने पर प्रावृत्त पादवलय
गोल कड़े जैसे आभूषण को पादवलय कहते हैं। शिव को और अन्य सूचित देवी-देवताओं के पैर में भुजंग वलय पहनाया जाता है। उसकी लंबाई १२
अंगुल से अधिक होती हैं। उसकी pount फेन ७ अंगुल चौड़ी और १ अंगुल
मोटी होती है। उस फणी का मुख चांदी का, जिह्वा और उसकी दो आंखें रत्न से जड़ित करनी चाहिए। प्रान्त व देश के अनुसार इसमें थोड़ा वैविध्य
देखने को मिलता है। १२ यज्ञोपवीत: __बायें स्कंध से लटकते सूत्र को जनोई-यज्ञोपवीत कहते हैं। कई शिवमूर्तियों पर यज्ञोपवीत नहीं होती है। प्राचीनकाल में मृग की चमड़ी शरीर पर तिरछी बांधी जाती थी। यज्ञोपवीत की प्रथा उस काल में नहीं होगी, तभी ऐसा चमड़ा बांधने की प्रथा रही होगी।
यज्ञोपवीत . द्रविड पल्लव और चौल मूर्तियों में यज्ञोपवीत सिर्फ वस्रों के चिथड़े के रूप में
YAGNYOPAVIT दिखाई देते हैं। चौलकाल में सूत की तीन डोरियां एक जगह गांठ मारी हुई स्थिति
गुप्तकाल
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