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भंडगे मंड.गे मुखं कुर्यात् हस्तौ दृष्टि च वर्तते
हस्तकार्य भवेल्लोके कर्मणो मिनयेत्किलम् ॥१॥ (देवतामूर्ति प्रकरण) नृत्य में हस्त, पाद, मुख और शरीर के अन्य अवयवों की मुद्राएँ भावाभिव्यक्तिके परम साधन है। विशेषतः भाव भाषा द्वारा प्रकट होते हैं, लेकिन नृत्य की मुद्राएँ मूक होते हुए भी भावाभिव्यक्ति का सर्वोत्तम साधन है।
नृत्य करते समय ज्यों-ज्यों अंगभंगी होती जाती है, वैसे ही मुख, हस्त और दृष्टि का हलन-चलन होता है। हस्त, मुख और दृष्टि यह अभिनय का कारण है। (देवमूर्ति प्रकरण)
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