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भारतीय शिल्पसंहिता
हस्त इन सबके भंगवाली मूर्तियों को प्रतिभंग युक्त मुद्रा की मूर्ति कहते हैं। नटराज-शिवतांडव, शक्ति देवी की उम्र मूर्तियां, बुद्ध के वज्रपाणि स्वरूप की क्रोधान्वित देवी-मूर्तियां, महिषासुरमर्दिनी और युद्ध करते हुए देवी-देवताओं की मूर्तियां इस प्रकार की होती है। प्रतिभंग मुद्राओं के मरोड़ सशक्त होते हैं।
ASHA
AmA
ABHANG आशंग
TRIBHANG
त्रिभंग
ATIBHANG
अतिभंग
५ आलिढ्यः
बायाँ पैर मोड़कर ऊंचा रखकर दाहिने पैर पर खड़ी मूर्ति की मुद्रा को प्रालिढ्य मुद्रा कहते हैं। ६ प्रत्यालिड्यः
दाहिना पैर मोड़कर, उसे ऊंचा करके बायें पैर पर खड़ी मूर्ति को प्रत्यालिढ्य भंगवाली मूर्ति कहते हैं। प्रालिढ्य से विपरीत मुद्रा को प्रत्यालिढ्य मुद्रा कहा गया है। हनुमान, दशावतार के वाराह, और बलि को दबाती हुई वामन की मूर्ति, ये सब प्रत्यालिढ्य भंगवाली होती है। ७ उत्कटिकः
नरराज की नृत्य मुद्रायुक्त प्रतिमा को उत्कटिक भंगवाली प्रतिमा कहते हैं। ८ पर्यकः
विष्णु भगवान की क्षीरसागर में सोयी हुई मुद्रा को पर्यक मुद्रा कहते हैं। ९ ललाट तिलकः
द्रविड और बंग प्रदेश में ललाट तिलक मूर्तियाँ बहुत देखी जाती हैं। एक पैर ऊर्ध्व रखकर, ललाट को तिलक करती मुद्रा को ललाट-तिलक मुद्रा कहा गया हैं।
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